ललित सुरजन की कलम से— धर्म :पुल या खाई?
मुस्लिम धर्मगुरुओं का तर्क है कि रास गरबा एक धार्मिक उत्सव है और किसी को भी दूसरे धर्म के उत्सव में क्यों जाना चाहिए।

मुस्लिम धर्मगुरुओं का तर्क है कि रास गरबा एक धार्मिक उत्सव है और किसी को भी दूसरे धर्म के उत्सव में क्यों जाना चाहिए। इस तर्क का अनुमोदन उदारवादी हिन्दू भी करते हैं कि सब अपने-अपने धर्म के अनुसार आचरण करें। एकबारगी यह तर्क अपील कर सकता है, लेकिन इससे बहुत सारे नए प्रश्न खड़े होते हैं। हमने भारत की उदार व बहुलतावादी सामाजिक परंपरा के बारे में जो कुछ जाना है, उसके अनुसार यहां एक लंबे समय से विभिन्न धार्मिक समुदायों द्वारा एक-दूसरे के अनुष्ठानों में भाग लेने की न सिर्फ परंपरा रही है, बल्कि उसे सदैव सराहा भी गया है। आज भी ईद, दीवाली और क्रिसमस जैसे पर्वों पर नागरिक एक-दूसरे से मिलते ही हैं। हमने हिन्दुओं के द्वारा मोहर्रम के समय ताजिये उठाने के किस्से भी अपने बड़े-बूढ़ों से सुने हैं।
(देशबन्धु में 25 सितम्बर 2014 को प्रकाशित)
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