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ललित सुरजन की कलम से - आप किसे वोट देंगे?

'जब राजनीति व्यक्ति केंद्रित हो जाए तो विचारों की बलि अपने आप चढ़ जाती है। हमें चारों दिशाओं में एक भी ऐसा नेता दिखाई नहीं देता जो मीडिया को अपने अंगूठे के नीचे न रखना चाहता हो

ललित सुरजन की कलम से - आप किसे वोट देंगे?
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'जब राजनीति व्यक्ति केंद्रित हो जाए तो विचारों की बलि अपने आप चढ़ जाती है। हमें चारों दिशाओं में एक भी ऐसा नेता दिखाई नहीं देता जो मीडिया को अपने अंगूठे के नीचे न रखना चाहता हो।

आम जनता भले ही आज भी अखबार पर भरोसा करती हो, हकीकत यही है कि मीडिया को अब जनहित की परवाह नहीं है। राजनेता यह समझने में असमर्थ हैं कि इस नियंत्रण-नीति में उनका ही नुकसान है।

उन तक सही सूचनाएं सही वक्त पर नहीं पहुंच पातीं। वे प्रचारतंत्र का शिकार हो जाते हैं। जनमत परखने के इस बहुमूल्य साधन की अवज्ञा या तिरस्कार का स्वाभाविक परिणाम होता है कि जो लोकहितकारी योजनाएं पूरे पांच साल समगति से जारी रहना चाहिए, वे चार साल ठंडे बस्ते में पड़ी रहती हैं और जब चुनाव सिर पर आते हैं तो उनका ढोल पीटा जाता है। इस बीच की अवधि में सत्तासीन दल दूसरी कलाबाजियों में व्यस्त रहा आता है।

मतदाता यदि सचमुच इतना भोला है तो इससे प्रभावित हो सकता है। हां, यदि वह अपने विवेक का इस्तेमाल करे तो नीर-क्षीर विवेचन कर उचित निर्णय पर पहुंच सकता है।'

(देशबन्धु में 11 अक्टूबर 2018 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2018/10/blog-post_10.html


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