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ललित सुरजन की कलम से - कौन देस को वासी

'विगत तीसेक सालों में भारतीय समाज के एक वर्ग विशेष में अमेरिका के प्रति पहले से किसी मात्रा में चला आ रहा आकर्षण और प्रबल हुआ है

ललित सुरजन की कलम से - कौन देस को वासी
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'विगत तीसेक सालों में भारतीय समाज के एक वर्ग विशेष में अमेरिका के प्रति पहले से किसी मात्रा में चला आ रहा आकर्षण और प्रबल हुआ है। देश के उच्च शिक्षण संस्थानों से पढ़कर निकलने वाले प्रतिभावान युवाओं के मन में बात बैठ गई है कि उनके स्वप्न अमेरिका जाकर ही पूरे हो सकते हैं।

जो अमेरिका नहीं जा पाते, वे इंग्लैंड, जर्मनी, सिंगापुर, हांगकांग या आस्ट्रेलिया में अवसर मिलने से संतोष हासिल कर लेते हैं। यह प्रवृत्ति कैसे पनपी है, इसे लेकर खूब विश्लेषण हुआ है और लगातार हो रहा है। फिलहाल वह हमारा विवेच्य बिन्दु नहीं है।

भारत और अमेरिका (या उसके प्रतिरूप) में कई तरह के अंतर हैं- निजी स्तर पर, आर्थिक स्तर पर, पारिवारिक माहौल में, कार्यस्थल के वातावरण में, प्राकृतिक परिवेश में, कार्य संस्कृति में और ये सब अपनी-अपनी तरह से नए-नए तनावों को जन्म देते हैं।

एक नए माहौल में खुद को ढालने की चुनौती, पीछे छूट गए लेकिन नाभिनालबद्ध परिवेश को संजोने या बिलगाने की द्विविधा, सपना पूरा होने का उल्लास तो कहीं स्वप्न भंग से उपजा अवसाद, ये सब मिलकर एक नया रंगमंच खड़ा कर देते हैं जिसमें हरेक को अपनी भूमिका निभानी पड़ती है।'

(अक्षर पर्व नवम्बर 2018 अंक की प्रस्तावना)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2018/12/blog-post_25.html


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