ललित सुरजन की कलम से- रायपुर में रंगशाला?
राजधानी में स्वाभाविक ही प्रदेश का पहला मेडिकल कॉलेज और सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है

'चौड़ी-चौड़ी सड़कें, चौराहों पर विद्युत सिग्नल, भव्य अस्पताल, पांच सितारा होटल, चमकते-दमकते शो रूम, मॉल और मल्टीप्लेक्स, अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की वातानुकूलित इमारतें, सड़कों पर दौड़तीं मंत्रियों, अफसरों और नवधनाढ्यों की गाडिय़ां- क्या नहीं है इस शहर में? शायद सिर्फ एक प्रेक्षागृह जहां देश-विदेश की नाटक मंडलियां आकर अपना प्रदर्शन कर सकें और उन्हें देख कर अभिजात समाज स्वयं को सुरुचि-सम्पन्न होने का प्रमाण पत्र दे सके! लेकिन क्या बात सिर्फ इतनी ही है? राजधानी में स्वाभाविक ही प्रदेश का पहला मेडिकल कॉलेज और सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है, किन्तु जिन्हें नाटक देखने के लिए प्रेक्षागृह चाहिए क्या वे उस अस्पताल में जाकर इलाज करने की हिम्मत जुटा पाते हैं? प्रदेश का सबसे पुराना विश्वविद्यालय भी यहीं है और अब तो पांच-छह विश्वविद्यालय हो गए हंै, किन्तु क्या किसी ने पूछा कि इन्हें कितनी स्वायत्तता प्राप्त है? इनका काम-काज कैसा चल रहा है? इनकी कौन सी आवश्यकताएं हैं जिनकी ओर सरकार ध्यान न देना ही मुनासिब समझती है? यहां जो बाग-बगीचे बनाए गए थे उनके क्या हाल-चाल है? इस बात में क्या बुद्धिमानी थी कि अनुपम उद्यान और सौरभ उद्यान के नाम बदलकर धर्मगुरुओं के नाम पर रख दिए जाएं?'
(देशबन्धु में 20 नवंबर 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/11/blog-post_19.हटम्ल


