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ललित सुरजन की कलम से - कलम पर भरोसा रखने की ज़रुरत

'अगर हमें ठीक-ठीक याद है तो 1908 में कांग्रेस पार्टी के सूरत अधिवेशन में नरमपंथियों और गरमपंथियों के बीच जूते चले थे

ललित सुरजन की कलम से - कलम पर भरोसा रखने की ज़रुरत
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'अगर हमें ठीक-ठीक याद है तो 1908 में कांग्रेस पार्टी के सूरत अधिवेशन में नरमपंथियों और गरमपंथियों के बीच जूते चले थे। यह देश की राजनीति में जूते के इस्तेमाल की शायद पहली घटना मानी जाएगी।

इसके कुछ साल बाद अपने तीखे व्यंग्य के लिए मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने लिखा था कि डासन कंपनी का बनाया जूता चल गया लेकिन मेरी कलम से निकला लेख नहीं चला। इससे अनुमान लगता है कि राजनीति में जूते का प्रयोग उनके समय तक आकर मान्य हो गया होगा। इसके बाद हमने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही जूते का प्रयोग होते देखा जब अक्टूबर 1969में संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा में भाग लेते हुए रूसी राष्ट्रपति निकिता कु्रश्चेव ने अपना जूता दिखलाते हुए अमेरिकी प्रतिनिधि को धमकाया। उसके कुछ समय बाद ही मध्यप्रदेश विधानसभा में ऐसा ही नजारा देखने मिला जब धमतरी के जनसंघी विधायक पंडरीराव कृदत्त ने सदन के भीतर जूता फेंका। छत्तीसगढ़, बल्कि अविभाजित मध्यप्रदेश के लोग इस तरह स्वतंत्र भारत में जूता संस्कृति का पहला उदाहरण पेश करने का श्रेय ले सकते हैं।'

(15 अप्रैल 2009 को देशबन्धु में प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/05/blog-post_21.html



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