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ललित सुरजन की कलम से - जनता के लिए कुछ सुझाव

समाज के एक वर्ग ने इस मुद्दे पर अन्ना हजारे की आलोचना की कि जो बहस संसद में होना चाहिए

ललित सुरजन की कलम से - जनता के लिए कुछ सुझाव
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समाज के एक वर्ग ने इस मुद्दे पर अन्ना हजारे की आलोचना की कि जो बहस संसद में होना चाहिए, वे उसे सड़क पर ला रहे हैं: इसे लोकतांत्रिक संस्थाओं पर मंडराते एक खतरे के रूप में निरूपित किया गया। यह तर्क मुझे समझ नहीं आया।

हम जिन्हें चुनकर भेजते हैं उनसे सुशासन की ही अपेक्षा करते हैं। यदि वे जब अपेक्षा पर खरे न उतरें तो उसकी अनदेखी क्यों की जाए? सहज बुद्धि कहती है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों से सवाल पूछना हमारा अधिकार है तथा इसके लिए जनतांत्रिक तरीके से यदि आन्दोलन करना पड़े तो वह जायज है।

ऐसे किसी जन आन्दोलन की आलोचना तभी होना चाहिए जब वह जनतांत्रिक रास्ते से भटक जाए अथवा उससे जुड़े लोगों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा हो। अन्ना हजारे ने अपना अनशन तोड़ते समय नरेन्द्र मोदी को जो प्रमाणपत्र दिया, उससे उनकी साख में कमी आई, यह एक उदाहरण है।

( 21 अप्रैल 2011 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/04/8_22.html



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