Top
Begin typing your search above and press return to search.

ललित सुरजन की कलम से - स्वातंर्त्योत्तर हिन्दी कविता:दशा और दिशा

वर्तमान समय की कविता के दूसरे चरण में याने 1964 के बाद से लेकर लगभग 1984 तक हम पाते हैं कि देश अनेक प्रकार के झंझावातों से जूझ रहा था

ललित सुरजन की कलम से - स्वातंर्त्योत्तर हिन्दी कविता:दशा और दिशा
X

वर्तमान समय की कविता के दूसरे चरण में याने 1964 के बाद से लेकर लगभग 1984 तक हम पाते हैं कि देश अनेक प्रकार के झंझावातों से जूझ रहा था। इस अवधि में एक गहरी निराशा का वातावरण भी बन रहा था।

यद्यपि शुरूआत सन् 1960 के आसपास हो चुकी थी। इस दौर में जहां अमेरिका की सीआईए द्वारा प्रायोजित फोरम फॉर कल्चरल फ्रीडम जैसी संस्थाएं अपने एजेंडे के अनुसार सक्रिय थीं तो इन्हीं दिनों कविता में भांति-भांति के आंदोलन प्रारंभ हुए।

मसलन अकविता, दिगंबर कविता, नवगीत, भुभुक्षु कविता, सनातन सूर्योदयी कविता इत्यादि। कुछ बीटल कवि भी थोड़े समय पूर्व ही भारत आए थे, एलेन गिंसबर्ग का नाम मुझे ध्यान आ रहा है, और वे कविता नहीं, बल्कि अपने क्रियाकलापों के चलते भारत में चर्चित हुए थे। यही समय था जब भोगा हुआ यथार्थ व अनुभूति की प्रामाणिकता जैसे नारे प्रचलन में आए। इस कालावधि में अनास्था, अविश्वास व संशय का जो स्वर मुखर हुआ उसके प्रमुख कवियों में शायद रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा, राजकमल चौधरी व धूमिल आदि नाम लिए जा सकते हैं।

धर्मवीर भारती की अंधा युग भी इसी दौरान प्रकाशित-चर्चित हुई। दूसरी ओर त्रिलोचन, शमशेर, केदारनाथ अग्रवाल, केदारनाथ सिंह आदि की प्रगतिशील कवियों के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा मुकम्मल तौर पर हुई। इसी समय में प्रतिभाशाली कवियों की उस पीढ़ी ने अपनी पहिचान बनाना प्रारंभ किया, जो वर्तमान दौर में शीर्ष पर माने जाते हैं। इनमें विनोदकुमार शुक्ल, मलय, चंद्रकांत देवताले, अरुण कमल, सोमदत्त, भगवत रावत, राजेश जोशी, विजेंद्र, प्रयाग शुक्ल, अशोक वाजपेयी आदि के नाम प्रमुखता से लिये जा सकते हैं।

(अक्षर पर्व अगस्त 2015 अंक की प्रस्तावना)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/08/blog-post_9.html


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it