Begin typing your search above and press return to search.
ललित सुरजन की कलम से - संसद की सर्वोच्चता कायम रखने की जरूरत
'मेरा सदैव से मानना रहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था सिर्फ कानून से नहीं चलती, जबकि हमारी विडंबना यह है कि कुछ भी गड़बड़ होने पर हम तुरंत एक नया कानून बनाने की मांग करने लगते हैं

'मेरा सदैव से मानना रहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था सिर्फ कानून से नहीं चलती, जबकि हमारी विडंबना यह है कि कुछ भी गड़बड़ होने पर हम तुरंत एक नया कानून बनाने की मांग करने लगते हैं।
जब कानून बन जाता है तो उस पर अमल हो भी रहा है या नहीं, यह देखने की सुध किसी को नहीं रहती। जहां अधिनायकवाद, राजतंत्र या सैन्यतंत्र है वहां शासन चलाने में न तो इतिहास की परवाह की जाती और न भविष्य की।
सत्ताधीश की जुबान से निकली बात ही प्रथम और अंतिम होती है। इसके विपरीत जनतंत्र आम सहमति के आधार पर एक दीर्घकालीन दृष्टि को लेकर चलता है, जिसमें इतिहास से सबक लेकर वर्तमान की जमीन पर भविष्य के सपने बुने जाते हैं।'
(देशबन्धु में 3 अक्टूबर 2013 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2013/10/blog-post_2.html
Next Story


