ललित सुरजन की कलम से- विश्व चेतना के कवि मुक्तिबोध
'बीसवीं सदी ने हमारे समूचे जीवन को प्रभावित ही नहीं किया, बल्कि कई तरह से बदल भी दिया। ये जो बदलाव आए इनके ब्यौरे इतिहास की पुस्तकों में उपलब्ध हैं।

'बीसवीं सदी ने हमारे समूचे जीवन को प्रभावित ही नहीं किया, बल्कि कई तरह से बदल भी दिया। ये जो बदलाव आए इनके ब्यौरे इतिहास की पुस्तकों में उपलब्ध हैं। ज्ञान-विज्ञान की अलग-अलग शाखाओं में भी इनका विषय-केन्द्रित दस्तावेजीकरण हुआ है। साहित्यकार भी इन युगांतरकारी परिवर्तनों से दूर और तटस्थ कैसे रह पाता? विश्व की तमाम भाषाओं के साहित्य में इस बदले हुए समय की तस्वीरें देखने मिलती हैं। हिन्दी साहित्य में इस दृष्टि से विचार करें तो हम पाते हैं कि बीसवीं सदी के विश्व समाज में जो नई पदचापें, ध्वनियां और धडक़नें सुनाई पड़ रही थी उन्हें अगर किसी लेखक ने पकड़ा था तो वह गजानन माधव मुक्तिबोध ही थे। जिस तरह कोई सयाना धरती से कान लगाकर दूर से आती घोड़ों की थाप सुनकर गांव को सतर्क कर देता था, कुछ वैसी ही बात मुक्तिबोध जी में है। वे बदलते समय की आहटों को बहुत ध्यान के साथ सुन और समझ रहे थे।'
'इसका प्रमाण उनके लेखों और निबंधों में मिलता है। क्लॉड ईथरली जैसी कहानी में और तमाम कविताओं में यहां से वहां तक उनकी विश्व दृष्टि को देखा जा सकता है। मैं समझता हूं कि उनके समकालीनों में ही नहीं, बल्कि बीसवीं सदी के हिन्दी लेखकों में एक अज्ञेय ही थे जिनके लेखों में और दिनमान के संपादन में इस दृष्टि का आभास होता है।'
(अक्षर पर्व जून 2017 अंक की प्रस्तावना)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/06/blog-post_9.हटम्ल


