ललित सुरजन की कलम से - दीपावली पर सिलयारी व कोनी के संदेश
'दीपावली के साथ धूम-धड़ाका, चकाचौंध और पूजा-पाठ जुड़ा है, उसे थोड़ी देर के लिए नजरअंदाज कर दें तो फिर समझ में आता है कि यह त्यौहार भारत के सामाजिक जीवन में भौतिक प्रगति की कामना को, सुख-समृध्दि की आशा को व्यक्त करने का सबसे महत्वपूर्ण अवसर है

'दीपावली के साथ धूम-धड़ाका, चकाचौंध और पूजा-पाठ जुड़ा है, उसे थोड़ी देर के लिए नजरअंदाज कर दें तो फिर समझ में आता है कि यह त्यौहार भारत के सामाजिक जीवन में भौतिक प्रगति की कामना को, सुख-समृध्दि की आशा को व्यक्त करने का सबसे महत्वपूर्ण अवसर है।
जिनके पास सब कुछ या काफी कुछ है, उनकी कोशिश होती है कि लक्ष्मी रूठ कर न जाएं और जिनके पास कुछ नहीं अथवा बहुत कम है वे मनाते हैं कि लक्ष्मी एक बार तो उनकी देहरी लांघ कर भीतर आ जाएं।
गरज यह है कि सब अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार ऐश्वर्य की देवी को रिझाने में लगे रहते हैं। यह साल का एकमात्र अवसर होता है जब औसत भारतीय उस आडंबर का लबादा उतार देता है कि भारत भौतिकवादी नहीं, बल्कि आध्यात्मवादी समाज है।
यह अलग बात है कि वह अपनी भौतिक इच्छा को भी कर्मकांड में लपेट कर पेश करता है।'
(देशबंधु में 31 अक्टूबर 2013 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2013/10/blog-post_30.html


