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ललित सुरजन की कलम से - खुशी के पैमाने पर भारत
'यूपीए के दस साल के दौरान अगर मनमोहन सरकार पूंजीमुखी निर्णय लेती थी तो सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद उन पर या तो अंकुश लगाती थी या ऐसी नीतियां प्रवर्तित करती थी जो लोकोन्मुखी हों

'यूपीए के दस साल के दौरान अगर मनमोहन सरकार पूंजीमुखी निर्णय लेती थी तो सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद उन पर या तो अंकुश लगाती थी या ऐसी नीतियां प्रवर्तित करती थी जो लोकोन्मुखी हों।
किसानों की सत्तर हजार करोड़ की ऋण माफी एक ऐसा बड़ा उदाहरण था। वर्तमान मोदी सरकार की सोच बिल्कुल भिन्न है। इस सरकार को वायदे करना बहुत आता है, लेकिन निभाना नहीं।
इसे न जनमत की परवाह है और न संसदीय परंपराओं की। बिना बहस के बजट पारित करना इस सरकार की अहम्मन्यता का बड़ा उदाहरण है। वित्त मंत्री से आम जनता की कौन कहे, व्यापारी और उद्योगपति भी त्रस्त हैं।'
(देशबन्धु में 22 मार्च 2018 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2018/03/blog-post_21.html
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