ललित सुरजन की कलम से सरकार बनाम संस्थाएं
मैं यह स्वीकार करता हूं कि लोकतंत्र में एक चुनी हुई सरकार को अपनी नीतियों व सिद्धांतों के अनुरूप निर्णय लेने का अधिकार होता है।

मैं यह स्वीकार करता हूं कि लोकतंत्र में एक चुनी हुई सरकार को अपनी नीतियों व सिद्धांतों के अनुरूप निर्णय लेने का अधिकार होता है। इसमें यह भी शामिल है कि सरकार अपने अधीनस्थ संस्थाओं का संचालन भी अपनी इच्छा से करे व शीर्ष पदों पर ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति करे जो उसके अनुकूल हों। लेकिन लोकतंत्र का अर्थ बहुमतवाद नहीं होता, इस सत्य को ध्यान में रखकर सरकार का यह उत्तरदायित्व भी बनता है कि इन संस्थाओं के जो मूल लक्ष्य हैं, उनकी अनदेखी न की जाए तथा संचालन उन व्यक्तियों के हाथों में हो, जो अपनी वैचारिक/सांगठनिक प्रतिबद्धता के बावजूद उस विषय विशेष में निपुण हों। यह सोचकर मुझे हैरानी होती है कि क्या भाजपा/संघ में प्रतिभाशाली व्यक्तियों का टोटा पड़ गया है! मोदी सरकार के गठन के बाद से ही विभिन्न संस्थाओं के कामकाज में जिस तरीके से हस्तक्षेप किया गया है, वह हमें निराश करता है। इसके अलावा यह संदेह होता है कि लोकसभा में स्पष्ट बहुमत का अहंकार सरकार को जनतांत्रिक परंपराओं का सम्मान करने से रोक रहा है।
(देशबन्धु में 13 अगस्त 2015 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/08/blog-post_12.हटम्ल


