Top
Begin typing your search above and press return to search.

ललित सुरजन की कलम से- पन्द्रह मिनट की बहस

'एक समय विश्वविद्यालय, छात्रसंघ, श्रमिक संघ, यहां तक कि गणेशोत्सव और दुर्गोत्सव जैसे मंच नागरिकों को उपलब्ध थे

ललित सुरजन की कलम से- पन्द्रह मिनट की बहस
X

'एक समय विश्वविद्यालय, छात्रसंघ, श्रमिक संघ, यहां तक कि गणेशोत्सव और दुर्गोत्सव जैसे मंच नागरिकों को उपलब्ध थे, जिनमें ज्वलंत मुद्दों पर खुली व खरी चर्चा हो सकती थी।

अपने ही प्रमाद में हमने इन्हें तिरस्कृत कर दिया है। हमारी व्यवस्था में इस बात की भी भरपूर गुंजाइश है कि राजनीतिक दल आम सभाएं करें और उनके माध्यम से समाज के जरूरी प्रश्नों पर लोक शिक्षण करें।

ऐसी सभाएं जब आम चुनाव के पहले होती हैं तब उनका स्वर अलग होता है। उस समय वोट बटोरने के लिए लच्छेदार बातें की जाती हैं, लेकिन जब चुनाव का मौका न हो तब इन मंचों का उपयोग तर्कपूर्ण बहसों के लिए होना चाहिए।

लेकिन हमें याद नहीं पड़ता कि पिछले बीस साल में कम्युनिस्ट पार्टियों के अलावा अन्य किसी दल ने इन अवसरों का उपयोग लोक शिक्षण अथवा जनजागरण के लिए किया हो।

इस अवधि के दौरान कांग्रेस, भाजपा व क्षेत्रीय दलों ने अगर आम सभाएं की हैं तो संकीर्ण और तात्कालिक लाभ पाने की दृष्टि से।'

(देशबन्धु में 13 सितम्बर 2012 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/09/blog-post_12.html


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it