ललित सुरजन की कलम से - स्वच्छ प्रशासन की चिंता
'यूं देश में ऐसे अफसरों की कमी नहीं है, जिन्होंने अपने सरकारी कार्यकाल के अनुभव लिखे हैं

'यूं देश में ऐसे अफसरों की कमी नहीं है, जिन्होंने अपने सरकारी कार्यकाल के अनुभव लिखे हैं। इनमें सबसे पहला नाम तो आर.एस. वी.पी. नरोन्हा का है जो मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव थे। सत्तर के दशक में प्रकाशित उनकी आत्मकथा का शीर्षक है- 'अ टेल टोल्ड बाइ एन इडियट।' इसमें उन्होंने बेहद रोचक शैली में निर्वाचित सरकार तथा अफसरशाही के आपसी व्यवहार को चित्रित किया है।
श्री नरोन्हा की ख्याति एक बेहद सुलझे हुए ईमानदार, कर्मठ व कुशल अफसर की थी। वे चीफ सेक्रेटरी थे तब लूना या ऐसी किसी मोपेड से अपने घर से वल्लभ भवन आया करते थे। कहना होगा कि अपने समय में ऐसे गुणों वाले वे अकेले अधिकारी नहीं थे। यह बात और है कि वे अपने अनुभवों को लिपिबध्द कर गए।'
'मध्यप्रदेश में ही उनके बाद एक और मुख्य सचिव हुए श्री सुशीलचंद्र वर्मा। वे 1960 की शुरुआत में रायपुर में कलेक्टर थे। श्री वर्मा ने 1984-85 के आसपास 'एक कलेक्टर की डायरी' शीर्षक से अपने अनुभव लिखे जो उन दिनों देशबन्धु में धारावाहिक रूप से प्रकाशित भी हुए।
श्री वर्मा की शैली भी बहुत रोचक और किस्सागोई थी। नरोन्हाजी की ही तरह वर्माजी ने भी रेखांकित किया कि अगर अधिकारी ठान ले तो वह भय अथवा राग से मुक्त होकर कैसे काम कर सकता है, और साथ ही साथ अपने अधीनस्थों को भी स्वच्छ वातावरण में काम करने के लिए प्रेरणा दे सकता है।'
(देशबन्धु में 7 नवम्बर 2013 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2013/11/blog-post.html


