ललित सुरजन की कलम से - परिवर्तन
'भाजपा के मुखिया डॉ. रमन सिंह इस बार जनता के मन को नहीं पढ़ पाए। वे अपने इर्द-गिर्द के कुछ अफसरों पर सीमा से अधिक विश्वास कर बैठे

'भाजपा के मुखिया डॉ. रमन सिंह इस बार जनता के मन को नहीं पढ़ पाए। वे अपने इर्द-गिर्द के कुछ अफसरों पर सीमा से अधिक विश्वास कर बैठे। सत्तारूढ़ भाजपा और उसके नेताओं का अहंकार, सीमाहीन भ्रष्टाचार और नेताओं की एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति ने भी भाजपा का नुकसान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
मुझे आश्चर्य और अफसोस है कि डॉ. रमन सिंह जैसे जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति ने कैसे जमीनी सच्चाइयों से मुंह मोड़ लिया। भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने करेला पर नीम चढ़ा की कहावत सिद्ध की।
चुनाव लड़ा जा रहा था रमन सिंह के नेतृत्व में, लेकिन टिकट वितरण में उनकी नहीं चली और योगी आदित्यनाथ जैसे कथित स्टार प्रचारक की दो दर्जन सभाएं भी किसी काम नहीं आई। वैसे भी प्रदेश की जनता पिछले पन्द्रह साल में भाजपा के निरंतर बढ़ते हुए कुशासन से आजिज आ चुकी थी।
इस तरह कहें तो एक ओर कांग्रेस और उसकी नेताओं की सकारात्मक सोच और दूसरी ओर भाजपा की नकारात्मक छवि और तीसरी ओर जनता की परिवर्तन की आकांक्षा ने देखते ही देखते मंजर बदल दिया।'
(देशबंधु में 12 दिसम्बर 2018 को प्रकाशित विशेष सम्पादकीय)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/11/blog-post_28.html


