Top
Begin typing your search above and press return to search.

ललित सुरजन की कलम से - केन्द्र-राज्य संबंध और क्षेत्रीय दल

'भारत में केन्द्र-राज्य संबंधों को लेकर एक लंबे समय से बहस चलते आई है। केन्द्र-राज्य संबंधों में तनाव भी कोई नई बात नहीं है

ललित सुरजन की कलम से - केन्द्र-राज्य संबंध और क्षेत्रीय दल
X

'भारत में केन्द्र-राज्य संबंधों को लेकर एक लंबे समय से बहस चलते आई है। केन्द्र-राज्य संबंधों में तनाव भी कोई नई बात नहीं है। इसे हमने सबसे पहले 1957 में देखा, जब केरल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी और दो साल बीतते न बीतते 1959 में उस सरकार को अपदस्थ कर दिया गया।

यह अगर एक अपवादस्वरूप प्रसंग ही था तो एक बड़ी लहर 1967 में उठी जब गैर-कांग्रेसवाद के नाम पर बहुत से प्रदेशों में संविद सरकारों का गठन हुआ। इस प्रयोग से तत्कालीन जनसंघ को ही सबसे ज्यादा फायदा हुआ और कितने ही धुरंधर कांग्रेसियों की सत्ता लोलुपता का परिचय भी इसमें मिला।

खैर! इसके बाद इंदिरा गांधी के लगभग एकछत्र शासनकाल में अनेक प्रदेशों में एक ओर यदि विपक्षी सरकारों के बर्खास्त करने के प्रकरण घटित हुए तो दूसरी ओर तमिलनाडु में एक या दूसरी क्षेत्रीय पार्टी के सामने कांग्रेस के झुक जाने के उदाहरण भी सामने आए।

विपक्षी सरकारों को बर्खास्त करने का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय तक गया और बहुचर्चित बोम्मई फैसला आया जिसमें बिना पर्याप्त कारण के राष्ट्रपति शासन लागू करना अवैधानिक करार दिया गया। इस बीच में न्यायमूर्ति आर.एस. सरकारिया की अध्यक्षता में केन्द्र राज्य संबंधों की समीक्षा करने के लिए सरकारिया आयोग बना जिसकी सिफारिशों को कोई तवज्जो नहीं दी गई।'

(देशबन्धु में 21 मार्च 2013 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2013/03/blog-post_26.html


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it