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ललित सुरजन की कलम से - सेंसरशिप:प्लेटो से अब तक

'जनतंत्र की पहिली शर्त अभिव्यक्ति की आजादी है। एक जनतांत्रिक समाज में ही नाना विचारों का प्रस्फुटन और असहमति का आदर संभव है।

ललित सुरजन की कलम से - सेंसरशिप:प्लेटो से अब तक
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'जनतंत्र की पहिली शर्त अभिव्यक्ति की आजादी है। एक जनतांत्रिक समाज में ही नाना विचारों का प्रस्फुटन और असहमति का आदर संभव है। ऐसे में जब कोई एक समूह या समुदाय किसी कलात्मक अभिव्यक्ति के प्रति अपना विरोध दर्ज करने के लिए सड़कों पर उतर आता है तो वह सीधे-सीधे जनतंत्र की मूल भावना पर ही आक्रमण करता है। इसके अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं। पुस्तकों को जलाना, लाइब्रेरी में तोडफ़ोड़ करना, लेखक-विचारक-शिल्पी के खिलाफ फतवा जारी करना, उसके साथ मारपीट, यहां तक कि उसकी हत्या करना, मूर्तियों को खंडित करना, मस्जिद को ढहाना, नाटक का प्रदर्शन बीच में रोक देना, सिनेमाघर में फिल्म न चलने देना, प्रकाशकों-आयोजकों को व्यापार करने से रोकना, कलाकारों को देश छोडऩे पर मजबूर करना, सामान्य कानूनी कार्रवाई करने के बजाय परेशान करने के लिए मुकदमेबाजी करना जैसी घटनाएं भारत में आम हो गई हैं। इनके चलते जनतंत्र, भेड़तंत्र, भीड़तंत्र अथवा जंगलतंत्र में तब्दील हो जाता है।'

(अक्षर पर्व अप्रैल 2015 अंक की प्रस्तावना)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/04/blog-post_7.हटम्ल


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