ललित सुरजन की कलम से - बॉब डिलन : जन कवि, नोबल विजेता
जैसा कि हर पुरस्कार के साथ होता है बॉब डिलन को पुरस्कार देने के निर्णय की भी कहीं-कहीं आलोचना की गई है

जैसा कि हर पुरस्कार के साथ होता है बॉब डिलन को पुरस्कार देने के निर्णय की भी कहीं-कहीं आलोचना की गई है। कुछ का कहना है कि नोबल कमेटी ने सस्ती लोकप्रियता भुनाने के चक्कर में यह पुरस्कार दे दिया है।
अन्य का कहना है कि बॉब तो पहले से ही इतने लोकप्रिय हैं उन्हें पुरस्कार देने की क्या आवश्यकता थी। अप्रसन्न कुछ विद्वान कह रहे हैं कि बॉब डिलन ने जो लिखा है वह साहित्य है ही नहीं, वे तो सिर्फ एक गायक हैं।
इनके अनुसार बॉब डिलन की रचनाओं को साहित्य के दायरे में मान्य करना एक अतिरेक भरा कदम है। इनमें से किसी ने कहा कि यह वैसा ही निर्णय है जैसा विंस्टन चर्चिल को साहित्य का नोबल देते समय किया गया था।
चर्चिल के इतिहास लेखन व मुहावरेदार अंग्रेजी भाषणों को ही साहित्य मान लिया गया था। इस निर्णय से पुस्तक प्रकाशकों को भी बहुत निराशा हुई है। उनके किसी लेखक को पुरस्कार मिलता तो उसकी पुस्तकों की भारी बिक्री होती और वह प्रकाशक अच्छा खासा मुनाफा कमा लेता।
(देशबन्धु में 20 अक्टूबर 2016 को प्रकाशित)
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