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ललित सुरजन की कलम से - ''उसमें प्राण जगाओ साथी'' - 1

'अगर मुझे ठीक याद है तो गोंदिया में 1955 में मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन हुआ था

ललित सुरजन की कलम से - उसमें प्राण जगाओ साथी - 1
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'अगर मुझे ठीक याद है तो गोंदिया में 1955 में मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन हुआ था। शायद बाबूजी भी उसमें गए होंगे। गोंदिया से लौटकर पटना जाते हुए रामवृक्ष बेनीपुरी जबलपुर आए।

हमारे घर पर उनके सम्मान में प्रीतिभोज रखा गया। मुझे इतना स्मरण है कि हॉलनुमा बड़े से कमरे में खूब सारे लेखक पाटे पर बैठकर भोजन कर रहे हैं और साहित्य चर्चा चल रही है। इसके आस-पास ही सोवियत संघ से हिन्दी के परम विद्वान व रामचरित मानस के अनुवाद प्रोफेसर प्यौत्र वारान्निकोव जबलपुर आए।

रामेश्वर गुरू के घर उनके लिए भोज का आयोजन हुआ। बाबूजी मुझे वहां ले गए। प्रोफेसर वारान्निकोव ने बघारी हुई दाल में जीरा देखकर पूछा- क्या इसी को दाल में काला कहते हैं? अगले दिन नवभारत में पहले पन्ने पर बाक्स में यह रोचक टिप्पणी छप गई।

ऐसे अनुभवों ने मुझे रचनाकार और रचनाशीलता का सम्मान करना सिखाया।'

(25 अक्टूबर 2009 को देशबन्धु में प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/04/blog-post.html


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