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ललित सुरजन की कलम से - रिहाई के बाद
'यह देखना कठिन नहीं है कि दण्डकारण्य में स्वाधीन, लोकतांत्रिक, भारत गणराज्य का इतिहास एक नई धारा में लिखा जा रहा है

'यह देखना कठिन नहीं है कि दण्डकारण्य में स्वाधीन, लोकतांत्रिक, भारत गणराज्य का इतिहास एक नई धारा में लिखा जा रहा है। इसे चाहे तो प्रति-इतिहास या काउंटर-हिस्ट्री की संज्ञा दे सकते हैं या फिर प्रात्याख्यान या काउंटर-नेरेटिव की।
दण्डकारण्य से मेरा आशय यहां सिर्फ बस्तर से नहीं है, उसकी भौगोलिक सीमा का विस्तार आज की सामाजिक, राजनीतिक सच्चाई के समानुपात में करने से बात जमेगी। इस इतिहास के कुछ पुराने अध्याय हम पढ़ चुके हैं। एक नया अध्याय अभी समाप्त हुआ है।
इसमें आगे कितने अध्याय जुड़ेंगे, क्या कोई सही-सही भविष्यवाणी कर सकता है?'
(10 मई 2012 को देशबन्धु में प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/05/12.html
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