दिग्विजय का ट्वीट और कांग्रेस में नई हलचल
आरएसएस के संगठन और कांग्रेस के संगठन में फर्क है। कांग्रेस एक आजादी के आंदोलन से निकली पार्टी है

भारत की राजनीति में यह तीन विचारधाराएं ही मुख्य रही हैं। लेफ्ट, राइट और सेंटर। सेंटर की पार्टी कांग्रेस जो मूलत: जन आंदोलन से उपजी। आजादी की लड़ाई का नेतृत्व के गौरव के साथ। संयोग से आज जब हम यह लिख रहे हैं तो इसका स्थापना दिवस भी है। 140 वां। लेफ्ट राइट दोनों की पार्टियों से ज्यादा पुरानी। और पुरानी है तो इसके साथ लोगों की भावनाएं भी पुरानी है और उम्मीदें भी।
आरएसएस के संगठन और कांग्रेस के संगठन में फर्क है। कांग्रेस एक आजादी के आंदोलन से निकली पार्टी है। उसका संगठन किसी और पार्टी की तरह नहीं हो सकता। चाहे वह भाजपा आरएसएस हो या लेफ्ट। भारत में लेफ्ट की मूल पार्टी सीपीआई भी सौ साल की हो गई है। और उसकी ठीक विपरीत विचारधारा राइट की आरएसएस भी सौ साल की हो गई है।
भारत की राजनीति में यह तीन विचारधाराएं ही मुख्य रही हैं। लेफ्ट, राइट और सेंटर। सेंटर की पार्टी कांग्रेस जो मूलत: जन आंदोलन से उपजी। आजादी की लड़ाई का नेतृत्व के गौरव के साथ। संयोग से आज जब हम यह लिख रहे हैं तो इसका स्थापना दिवस भी है। 140 वां। लेफ्ट राइट दोनों की पार्टियों से ज्यादा पुरानी। और पुरानी है तो इसके साथ लोगों की भावनाएं भी पुरानी है और उम्मीदें भी।
क्या दिग्विजय सिंह का ट्वीट भी इन्हीं भावनाओं और उम्मीदों से प्रेरित है? कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक। जिनकी आरएसएस और भाजपा से लड़ाई किसी से छुपी नहीं है। जो हर मौके बेमौके पर आरएसएस भाजपा पर हमला करते रहते हैं। श्रीनगर में भी उस समय कर दिया था जब राहुल अपनी भारत जोड़ो यात्रा का वहां समापन कर रहे थे। और दिग्विजय इस यात्रा के संयोजक थे। वहां उन्होंने पुलवामा हमले का सवाल उठा दिया था।
इसे कांग्रेस में बेमौके का सवाल माना गया था। क्योंकि भाजपा को दिग्विजय के बहाने राहुल की यात्रा पर हमला करने का मौका मिल गया था।
ऐसे ही शनिवार को कांग्रेस की सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई सीडब्ल्यूसी की मीटिंग से ठीक पहले दिग्विजय ने मोदी का आडवानी की कुर्सी के नीचे जमीन पर बैठे होने का एक पुराना फोटो ट्वीट करते हुए उनके संगठन की तारीफ कर दी थी। जिसे लेकर कांग्रेस में बड़ा विवाद शुरू हो गया है। और बीजेपी खुश होकर इसे कांग्रेस के अंदरूनी संघर्ष के रूप में पेश कर करने लगी।
राजनीति अजीब शै है। इस ट्वीट के पहले तक कोई सोच नहीं सकता था दिग्विजय कभी संघ भाजपा की तारीफ कर सकते हैं। अभी आठ- दस दिन पहले राज्यसभा में चुनाव सुधार की बहस पर दिग्विजय ने मोदी और अमित शाह पर बहुत कड़े हमले किए थे।
मगर इस ट्वीट के बाद दिग्विजय कांग्रेस में भी निशाने पर आ गए हैं। वैसे कांग्रेस में दिग्विजय का निशाने पर आना कोई खास बात नहीं है। यूपीए के समय में मीडिया डिपार्टमेंट रोज उन्हें चेतावनियां देता था। उस समय के चैयरमेन जनार्दन द्विवेदी उनके बयानों को व्यक्तिगत बताते हुए कहते थे पार्टी का इससे कोई संबंध नहीं है।
मगर वह समय अलग था। सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थीं। जिन्हें याद था कि 2004 से पहले कांग्रेस चलाने में दिग्विजय कितनी मदद करते थे। 2003 तक दिग्विजय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। और उस समय केवल दो राज्यों में कांग्रेस सरकार थी। मध्य प्रदेश और केरल। और केरल के मुख्यमंत्री थे ए के एंटोनी। जिन्हें पार्टी में ही नहीं पार्टी के बाहर भी ईमानदारी का अवतार माना जाता है। पार्टी चलाने का सारा खर्चा दिग्विजय वहन करते थे। 1998 में सोनिया गांधी ने जब कांग्रेस की बागडोर संभाली तब उनका भारी विरोध हो रहा था। उन्हें स्वीकार्यता दिलाने के लिए दिग्विजय ने 1998 में कांग्रेस का पहला चितंन शिविर पचमढ़ी में आयोजित किया था। जिसके बाद ही सोनिया पार्टी की एकमात्र नेता के रूप में स्थापित होना शुरू हो गईं थीं।
तो 2004 की लोकसभा जीत के बाद सोनिया के दिल में दिग्विजय का विशेष स्थान रहा। यह इस बात से और बढ़ गया कि उन्होंने यूपीए सरकार में मंत्री पद लेने से मना कर दिया।
राजनीति में कोई पद के लिए मना करे ऐसा होता नहीं। और कांग्रेस में तो खासतौर से नहीं। मगर दिग्विजय ने प्रण किया था कि अगर 2003 विधानसभा में कांग्रेस हार जाएगी तो वे दस साल तक कोई सरकारी पद नहीं लेंगे। और उन्होंने ऐसा किया भी।
मगर अब जनरेशन चेंज हो गया है। सोनिया गांधी डीसिजन में कहीं नहीं हैं। कई वरिष्ठ नेताओं के साथ दिग्विजय की पीड़ा भी यही है कि कभी संगठन में इतनी महत्वपूर्ण स्थिति में रहने के बाद अब अवांछनीय हो गए हैं।
इस बेमौके ट्वीट के पीछे यह दर्द हो सकता है। उन्होंने ट्वीट के बाद खुद कहा कि वे आरएसएस भाजपा के घोर विरोधी हैं। संगठन के एक पहलू की तारीफ करना विचारधारा की तारीफ नहीं है। लेकिन उनकी राज्यसभा खत्म होने की कहानी सुनाई जा रही है। हालांकि पता नहीं कितने लोगो को मालूम है वे साफ कह चुके हैं कि अब वे राज्यसभा नहीं लेंगे।
लेकिन जाते हुए 2025 में यह एक नया विवाद हो गया है। साल शुरू से ही कांग्रेस के लिए अच्छा नहीं रहा। एक भी विधानसभा चुनाव नहीं जीती। 2024 में लोकसभा का चुनाव छोड़ दिया जाए तो राज्यों में भी उसे कोई सफलता नहीं मिली। केवल झारखंड में वह मिलीजुली सरकार में वापस आ पाई। सबसे ज्यादा अप्रत्याशित नतीजे हरियाणा के रहे। जहां सब कांग्रेस की जीत मान रहे थे। वहां भी बीजेपी जीत गई। महाराष्ट्र और बिहार में मुकाबला बराबरी का माना जा रहा था मगर वहां नतीजे एकदम इकतरफा रहे।
लेकिन इन सारी हारों के बाद भी लोगों की कांग्रेस से उम्मीदें कम नहीं हुईं। क्या है वजह?
वजह यह है कि लोग आज चाहे जितने नफरत और विभाजन की सनसनी में जी रहे हों मगर अंदर से प्रेम शांति सुख चाहते हैं। और कांग्रेस इन्हीं मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है। 140 साल में बहुत उतार चढ़ाव आए मगर कांग्रेस के मूल सिद्धांत वही रहे। गरीब समर्थक और सांप्रदायिक सौहार्द्र। निर्भयता और आशावाद।
और यही वजह है कि जनता को अगर उम्मीदें हैं तो उसी से। और इसी से ताकत पाकर कांग्रेस लड़ती है। 2026 के लिए दो बड़े आंदोलनों का कार्यक्रम उसने जारी कर दिया। 5 जनवरी से मनरेगा हटाए जाने के खिलाफ और 7 जनवरी से अरावली बचाओ। दोनों सीधे जनता से जुड़े मुद्दे हैं। और अब जनता को यहां खासतौर से ग्रामीण जनता को सोचना चाहिए कि वह मनरेगा चाहती है या सामंतों के यहां बेगारी या शहर आकर सस्ता मजदूर बनकर बड़े उद्योगपतियों का मुनाफा बढ़ाना।
ऐसे ही अरावली के मामले में सोचना चाहिए कि एयरपोर्ट, बंदरगाह, रेल्वे स्टेशन दूसरे सरकारी उपक्रम बेचते बेचते यह पर्वतमालाएं भी बेचने लगे। नदियां, जंगल, पहाड़ सब बिक जाएगा। और फिर हवा जमीन पानी कुछ भी देश का सरकार का नहीं रहेगा। सब जैसा राहुल कहते हैं अडानी अंबानी को दे दिया जाएगा।
हवा के बारे में आजकल आप सुन ही रहे हैं कि कोर्ट कह रहा है एयर प्यूरी फायर से टैक्स कम करो। सरकार कह रही है यह हमारे हाथ में नहीं है। जीएसटी कौंसिल है वह देखती है। मगर यह बहस ही बेकार और खतरनाक है।
मुद्दा यह होना चाहिए कि जनता को साफ हवा मुहैया करवाओ। यह क्या हुआ कि प्यूरी फायर दो चार सौ रूपए सस्ता करो। कितना भी सस्ता कर दो हजारों में ही रहेगा। और क्या जनता प्यूरी फायर लगाकर घर में ही बैठी रहेगी? ऐसे ही हमने पढ़ा कि स्कूलों में लगाओ। क्या मजाक है। बच्चे क्लास रूम में ही बैठे रहेंगे।
हवा पानी साफ करो। यह आवाज होना चाहिए। ना कि हवा और पानी साफ करने वाली मशीनें सस्ती करो।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


