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लोक शिक्षण के लिए समर्पित : पन्नालाल सुराणा

पन्नालाल सुराणा, सादगी, ईमानदारी, आदर्श की मिसाल थे। लिंगराज भाई ने बताया कि वे पूरे देश में घूम-घूमकर युवाओं को प्रशिक्षित करते रहते थे।

लोक शिक्षण के लिए समर्पित : पन्नालाल सुराणा
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— बाबा मायाराम

पन्नालाल सुराणा, सादगी, ईमानदारी, आदर्श की मिसाल थे। लिंगराज भाई ने बताया कि वे पूरे देश में घूम-घूमकर युवाओं को प्रशिक्षित करते रहते थे। इसके लिए लिखना और पढ़ना जीवनभर करते रहे। उन्होंने कुछ समय पत्रकारिता भी की और एक समाचार पत्र के संपादक भी थे। ऐसे लोगों से यह भी सीखा जा सकता है कि कार्यकर्ताओं का जीवन कैसा होना चाहिए।

हाल ही में महाराष्ट्र के जाने-माने समाजवादी पन्नालाल सुराणा का निधन हो गया। वे 93 वर्ष के थे। वे एक ऐसे समर्पित व प्रतिबद्ध समाजवादी थे, जिन्होंने आदर्शवादी जीवन जिया। पूरे देश भर में घूम-घूमकर लोक शिक्षण करते रहे और कई किताबें भी लिखीं।

मुझे एक बार ही उन्हें सुनने का मौका मिला, जब हमारे कस्बे पिपरिया में आए थे। वहां एकलव्य संस्था के पुस्तकालय में एक छोटी गोष्ठी हुई थी, उसमें उनके विचार जानने को मिले। लेकिन मैं उनके बारे में कई लोगों से सुनता रहा हूं।

पिछले कुछ महीनों से मैं ओडिशा के बरगढ़ शहर में हूं और यहां समता भवन में मेरा प्रवास है। यह समता भवन, प्रख्यात समाजवादी किशन पटनायक की याद में बना है। किशन पटनायक की पहल पर वर्ष 1995 में समाजवादी जन परिषद की स्थापना हुई थी, उससे भी पन्नालाल सुराणा जुड़े रहे हैं। वे राष्ट्र सेवा दल के भी पूर्व अध्यक्ष थे।

कल सामाजिक कार्यकर्ता लिंगराज भाई से पन्नालाल सुराणा के बारे में बात हो रही थी, तो उन्होंने बताया कि वे कई बार पन्नालाल सुराणा से मिले हैं। बैठकों और कार्यक्रम में साथ रहे हैं। उनके द्वारा लातूर भूकंप से पीड़ित बच्चों के लिए बनाए गए आपलां घर ( अपना घर) में भी गए हैं। इस भूकंप में बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे और भारी तबाही हुई थी। सुराणा जी ने भूकंप पीड़ित बच्चों के लिए घर बनाया है, यहां बच्चों का शिक्षण व पालन-पोषण होता है।

उन्होंने बताया कि वे आजादी आंदोलन के समय के बहुत ही समर्पित समाजवादी थे। किशन पटनायक, सुरेन्द्र मोहन, भाई वैद्य सभी एक ही पीढ़ी के थे। इन्होंने आजादी आंदोलन से लेकर जीवनपर्यंत तक देश को बनाने, युवाओं का शिक्षण करने और देश भर घूम-घूम कर लोगों को जगाने का काम किया। जीवन भर विचारों के लिए समर्पित रहे। वे बताते हैं कि किशन पटनायक के साथ वे कई बार महाराष्ट्र गए हैं और भाई वैद्य, जी.जी.पारिख, भाई वैद्य से मिलते रहे हैं।

लिंगराज भाई बताते हैं कि महाराष्ट्र में सामाजिक कामों की लम्बी परंपरा है। उन्होंने इस संदर्भ हाल ही समाजवादी दिवंगत जी.जी. पारिख को भी याद किया। जिन्होंने युसूफ मेहर अली केन्द्र के माध्यम से कई रचनात्मक काम किए। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में रचना और संघर्ष की महत्वपूर्ण परंपरा रही है।

उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में सामाजिक कार्यकर्ताओं के जीवकोपार्जन के लिए सहयोग की भी परंपरा है। ऐसे कार्यकर्ता, जो समाज कार्य में अपना समय लगाते हैं, यानी पूरावक्ती कार्यकर्ता होते हैं, उन्हें सहयोग देने में यह राज्य अग्रणी रहा है। वहां ऐसी कई संस्थाएं व समूह हैं, जो ऐसा सहयोग देते रहे हैं।

मुझे किशन पटनायक, सुनील भाई जैसे समाजवादी विचारों के लिए समर्पित विचारकों से मिलने, सुनने और उनके साथ समय गुजारने का मौका मिला है। जहां एक तरफ ये लोग देश के सामयिक मुद्दों, ज्वलंत सवालों से जूझते रहते थे, संघर्षरत थे, आंदोलनरत रहे हैं, सोचने का वैकल्पिक नजरिया दिया, वहीं दूसरी तरफ इन्होंने एक सादगीपूर्ण और आदर्शवादी जीवन की मिसाल भी पेश की है।

पन्नालाल सुराणा, सादगी, ईमानदारी, आदर्श की मिसाल थे। लिंगराज भाई ने बताया कि वे पूरे देश में घूम-घूमकर युवाओं को प्रशिक्षित करते रहते थे। इसके लिए लिखना और पढ़ना जीवनभर करते रहे। उन्होंने कुछ समय पत्रकारिता भी की और एक समाचार पत्र के संपादक भी थे।

ऐसे लोगों से यह भी सीखा जा सकता है कि कार्यकर्ताओं का जीवन कैसा होना चाहिए। इस संदर्भ में किशन पटनायक की याद करना उचित होगा। उनका कोई घर नहीं था, न कोई जमीन, न संपत्ति और न ही कोई बैंक बैलेंस। न उन्होंने लोकसभा सदस्य के नाते पेंशन ली। 60 वर्ष की आयु के बाद रेलवे का पास लिया था। उन्होंने अपनी जरूरतें बहुत ही सीमित कर ली थी। लेकिन सामाजिक बदलाव की चाह में रात-दिन लगे रहते थे।

किशन जी से मेरा संपर्क 80 के दशक में हुआ। मुझे लगातार उनसे मिलने, बात करने और साथ में यात्रा करने का मौका मिलता रहा। वे मितभाषी थे और समय के बहुत पाबंद। अक्सर बैठकों में पीछे बैठते थे और सबको चुपचाप सुनते रहते थे और अंत में बोलते थे।

इसी प्रकार मैं समाजवादी विचारक सुनील भाई की याद करना चाहूंगा, जिनके साथ मुझे लम्बे समय तक काम करने का मौका मिला। उनके विचार व जीवनशैली में कोई फांक नहीं थी। यहां मैं उनके रचनात्मक व उत्पादक कामों की चर्चा करना चाहूंगा। उन्होंने एक आदिवासी गांव में बहुत ही साधारण जीवनशैली में जीवन व्यतीत किया। एक साधारण ग्रामीण की तरह जीवन जिया।

सुबह-शाम उनके घर पर गांव के कई साथी जुटते थे। कई बार मैंने सुनील भाई को गांव के लोगों के साथ मिलकर खाना खाते देखा था। जब लम्बे आंदोलन चलते थे तो गांव के लोग घर से मक्के की रोटी, महुआ का भुरका, भुना चून ( आटा), मिर्ची की चटनी और कांदा (प्याज) लाते थे। सुनील भाई गांव वालों के साथ ही खाना खाते थे, चाहे वह दो-दिन का बासा भी हो। उन्होंने एक सादगी व आदर्शपूर्ण जीवन जिया।

मध्यप्रदेश के एक और समाजवादी ओमप्रकाश रावल का जिक्र करना उचित रहेगा, जिन्होंने जीवन भर सिद्धांतों व विचारों से समझौता नहीं किया। मैंने उनके साथ लम्बा समय गुजारा है। मुझे दो साल तक उनके घर में ही रहने का मौका मिला था। वे वर्तमान की तामझाम व जीवनशैली के पक्ष में नहीं थे।

उन्होंने अपने एक लेख में लिखा है कि न्यूनतम आवश्यकताओं पर आधारित सतत चलने वाली विकास की पद्धति जो विकेंद्रित व्यवस्था एवं पर्यावरण के संरक्षण पर ही संभव है, यदि नहीं अपनाई गई तो मनुष्य जाति जिंदा नहीं रह सकेगी। शीघ्र ही नई पीढ़ी तथाकथित विकास के लंबरदारों से सवाल करेगी कि तुम्हें ऐशो-आराम के लिए भावी पीढ़ी की संपत्ति को लूट लेने और नष्ट-भ्रष्ट कर डालने का क्या हक है? इस प्रश्न को समझ कर विकास की ऐसी वैकल्पिक नीति चलानी होगी जो हमेशा-हमेशा के लिए कायम रहे तथा जो पर्यावरण की भी रक्षा करे और सामाजिक न्याय भी स्थापित करें।

कुल मिलाकर, देश में एक आदर्शवादी समाजवादी परंपरा रही है। इसमें कई और नाम जोड़े जा सकते हैं। इन सब लोगों का जीवन सिद्धांत व मूल्यों से संचालित रहा है, जिसमें पन्नालाल सुराणाजी भी शामिल थे। यह ऐसी पीढ़ी थी, जिन्होंने दिया ज्यादा और लिया बहुत कम। ऐसे दौर में जब समाज में जीवन मूल्य इतने गिर गए हों, कोई बिना लोभ-लालच के सार्वजनिक व राजनैतिक काम न करता हो, पन्नालाल सुराणा जैसे लोगों को देखकर किसी भी देशप्रेमी का दिल उछल सकता है। उन्होंने बच्चों के लिए स्कूल, रचनात्मक लेखन, लोक शिक्षण जैसे रचना के काम किए हैं, जो प्रेरणादायी हैं, और सदैव रहेंगे। क्या हम उनके जीवन और विचार से कुछ सीख सकते हैं?



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