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ललित सुरजन की कलम से - मैगी बात सिर्फ इतनी नहीं है

अब यात्राएं करना पहिले की अपेक्षा अत्यन्त सुगम है तथा सूचनाओं व वस्तुओं के विनिमय में भी अभूतपूर्व तेजी आ गई है

ललित सुरजन की कलम से - मैगी बात सिर्फ इतनी नहीं है
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अब यात्राएं करना पहिले की अपेक्षा अत्यन्त सुगम है तथा सूचनाओं व वस्तुओं के विनिमय में भी अभूतपूर्व तेजी आ गई है। इस नई परिस्थिति ने मनुष्य के मन में नई इच्छाएं एवं नई लालसाएं जागृत कर दी हैं।

इतिहास के पथ पर हम आगे बढ़ आए हैं और उसी रास्ते पर वापिस लौटना नामुमकिन है। इसलिए आज ऐसी बात करने का कोई अर्थ नहीं है कि भारत की जनता पाश्चात्य देशों के खाद्यान्नों का सेवन न करे।

अगर इस सलाह को मान लिया तो मक्का, आलू, टमाटर बैंगन, मिर्ची, चीकू, बिही या अमरूद जैसी वस्तुओं का त्याग करना होगा, क्योंकि इनका मूलस्थान लैटिन अमेरिका में है। हमें लीची, शक्कर या चीनी, चाय का भी सेवन बंद करना पड़ेगा, क्योंकि ये चीन से आई हैं। और क्या हमने अन्य देशों को अपने उत्पाद निर्यात नहीं किए? याने मामला दोतरफा है।

जहां जिसे जो सामग्री जंच जाए, वह प्रचलन में आ जाती है।

(देशबन्धु में 11 जून 2015 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/06/blog-post_11.html


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