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ललित सुरजन की कलम से - भगवत रावत की कविताये
एक बड़ी मंचसिद्ध कलाकार महाभारत की पुनर्रचना कर रही है, लेकिन कवि धीरे से कहता है कि इसके बाद भी कुछ नहीं बदला और अदृश्य चौपड़ पर खेल अभी भी जारी है

एक बड़ी मंचसिद्ध कलाकार महाभारत की पुनर्रचना कर रही है, लेकिन कवि धीरे से कहता है कि इसके बाद भी कुछ नहीं बदला और अदृश्य चौपड़ पर खेल अभी भी जारी है। यहीं भगवत रावत के व्यक्तित्व का एक और पहलू स्पष्ट होता है। एक तरफ कवि है, एक तरफ गायिका। वे दो कलाकारों के बीच एक आत्मीय संबंध जोड़ते हैं और उस अधिकार से तीजन बाई को इन पंक्तियों में सलाह देते हैं-
तुम दुनिया-जहान में घूम आना
गुंजा आना जगह-जगह अपना छत्तीसगढ़ी गाना
लेकिन उनके बीच जाना मत छोड़ना
जो तुम्हारा एक-एक बोल सच मानते हैं
जो न्याय और अन्याय
तुम्हारी ही बोली में
पहचानते हैं।
(अक्षर पर्व सितम्बर 2015 अंक की प्रस्तावना)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/09/blog-post.html
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