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इतिहास को तोड़मरोड़ कर मोदी का गांधी पर भी हमला

बारदोलोई और मोदी का बयान यह सच है कि कांग्रेस नेता गोपीनाथ बोरदोलोई ने असम को बंगाल के साथ जोड़ने का विरोध किया

इतिहास को तोड़मरोड़ कर मोदी का गांधी पर भी हमला
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  • अनिल जैन

बारदोलोई और मोदी का बयान यह सच है कि कांग्रेस नेता गोपीनाथ बोरदोलोई ने असम को बंगाल के साथ जोड़ने का विरोध किया। उन्होंने योजना का विरोध करने का संकल्प लिया, लेकिन पहले गांधीजी से परामर्श किया और अपने दूतों को उनसे मिलने भेजा। मोदी कह रहे हैं कि बारदोलोई ने अपनी पार्टी के खिलाफ खड़े होकर असम बचाया। तथ्य बता रहे है कि बारदोलोई, गांधी और नेहरू असम के मुद्दे पर एक थे।

राजनेता के तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही एक कामयाब मजमा जुटाऊ भाषणबाज के तौर पर 'विख्यात' हों, लेकिन उन पर यह 'आरोप' कतई नहीं लग सकता है कि वे आमतौर पर एक शालीन और गंभीर वक्ता हैं! चुनावी रैली हो या संसद, लाल किले की प्राचीर हो या फिर विदेशी धरती, मोदी की भाषण शैली अमूमन एक जैसी रहती है- वही अहंकारयुक्त हाव-भाव, राजनीतिक विरोधियों पर वही छिछले कटाक्ष, वही स्तरहीन मुहावरे। आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर गलत बयानी, तथ्यों की मनमाने ढंग से तोड़-मरोड़, सांप्रदायिक तल्खी और नफरत से भरे जुमलों और आत्मप्रशंसा से भरपूर रहते हैं उनके भाषण।

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की आलोचना व निंदा करने का तो मोदी पर मानों जुनून सवार रहता है। इस सिलसिले में जो मुंह में आता है वह बोल जाते हैं। ऐसा करने में वे इस बात की भी परवाह नहीं करते हैं कि उनकी अशोभनीय गलतबयानी से देश-दुनिया में उनकी खिल्ली उड़ेगी और लोग उनकी पढ़ाई-लिखाई व उनकी मानसिक स्थिति पर सवाल उठाएंगे।

भारत का विभाजन, जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय, भारत-चीन युद्ध आदि के बारे में तो ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ते-मरोड़ते हुए मोदी कांग्रेस और नेहरू को अक्सर कठघरे में खड़ा करते ही रहते हैं। इसके अलावा भी देश की मौजूदा तमाम समस्याओं के लिए वे नेहरू और कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराते हैं, बावजूद इसके कि पिछले 11 साल से वे खुद प्रधानमंत्री हैं और अपनी सरकार का पर्याय भी। हद तो यह है कि नेहरू के साथ-साथ अब महात्मा गांधी के नाम से भी उनकी नफ़रत उजागर होने लगी है।

हाल ही में मोदी ने असम को लेकर एक चौंकाने वाला भाषण दिया है। उन्होंने 20 दिसंबर को गुवाहाटी में एक सभा को संबोधित के दौरान असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बारदोलोई की तारीफ करते हुए कहा कि 'देश आजाद होने से पहले कांग्रेस ने असम की पहचान मिटाने की साजिश रची गई थी।' यानी इस बार उन्होंने किसी का नाम लिए बगैर नेहरू के साथ-साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर भी निशाना साधा है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महात्मा गांधी से पुराना बैर है। मोदी ने कहा, ''जब मुस्लिम लीग और ब्रिटिश हुकूमत भारत को बांटने की जमीन तैयार कर रही थी, उस समय असम को भी पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की योजना बनी थी। कांग्रेस भी उस योजना का हिस्सा बनने वाली थी लेकिन बारदोलोई जी ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े होकर असम की पहचान मिटाने की इस कोशिश का जोरदार विरोध किया और असम को भारत से अलग होने से बचाया।''

प्रधानमंत्री ने इतिहास को लेकर मनमानी बयानी की है, इसलिए इतिहास के उस घटनाक्रम की पड़ताल जरूरी हो जाती है और जरूरी हो जाता है यह जानना कि मोदी कितना सच बता रहे हैं?

दूसरे विश्व युद्ध के समय और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की हार के बाद भारत से ब्रिटिश शासकों की वापसी तय मानी जा रही थी। चर्चिल के बाद प्रधानमंत्री बने लॉर्ड एटली ने 1946 में भारत को यथाशीघ्र स्वतंत्रता देने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और भारतीयों से संविधान बनाने की प्रक्रिया में जुड़ने का आग्रह किया। इसके तहत उन्होंने भारत में तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन (तीन मंत्रियों का मिशन) भेजा ताकि सत्ता हस्तांतरण और भारत की एकता बनाए रखने की योजना तैयार की जा सके। 24 मार्च, 1946 को ब्रिटिश कैबिनेट के तीन मंत्री- लॉर्ड पेथिक लॉरेंस (भारत सचिव), सर स्टैफोर्ड क्रिप्स (बोर्ड ऑफ ट्रेड के अध्यक्ष) और एवी. अलेक्जेंडर (एडमिरल्टी के फर्स्ट लॉर्ड) वायसरॉय लॉर्ड आर्चिबाल्ड वेवेल के साथ भारत आए।

कैबिनेट मिशन ने ब्रिटिश भारत के लिए एक त्रिस्तरीय संवैधानिक ढांचा प्रस्तावित किया- शीर्ष पर फेडरल ढांचा, स्वायत्त प्रांत और बीच में प्रांतों के कुछ समूह। इन समूहों को तीन श्रेणियों में संगठित किया गया था- समूह (ए) उत्तर-पश्चिमी प्रांत पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान, समूह (बी) में पूर्वी प्रांत असम और बंगाल तथा समूह (सी) में भारत के शेष मध्य क्षेत्र। इस श्रेणी प्रणाली में असम और बंगाल को एक साथ रखा गया था।

यह भारत को एकजुट रखने की अंतिम कोशिश थी। हालांकि इसमें विरोधाभास थे। कांग्रेस ने सिद्धांत रूप से एक अविभाजित भारत के लिए इस ढांचे का समर्थन किया और मुस्लिम लीग ने भी इसे स्वीकार कर लिया।

विवाद का कारण- समूह ए में बंगाल मुस्लिम बहुल था, जबकि असम हिंदू बहुल। मुस्लिम लीग चाहती थी कि पूरा गु्रप ए बाद में पाकिस्तान का हिस्सा बने। असम के नेताओं को डर था कि बंगाल के साथ जुड़ने पर असम की पहचान और डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी) खत्म हो जाएगी।

इस प्रस्ताव पर गांधी और नेहरू के विचार- गांधी, नेहरू और कांग्रेस के अन्य नेताओं ने असम के नेताओं को यह योजना अस्वीकार करने की सलाह दी। बोरदोलोई द्वारा भेजे गए दूत बिजयचंद्र भगवती और महेंद्र मोहन चौधरी से महात्मा गांधी ने कहा- ''अगर आप सही समय पर सही काम नहीं करेंगे तो असम खत्म हो जाएगा। बोरदोलोई को बताओ कि मुझे जरा भी बेचैनी नहीं है। मेरा मन बना हुआ है। असम को अपनी आत्मा नहीं खोनी चाहिए। उसे पूरी दुनिया के खिलाफ भी इसे बचाना चाहिए। वरना मैं कहूंगा कि असम में केवल पुतले थे, आदमी नहीं।''

''यह बेहूदा सुझाव है कि बंगाल किसी भी तरह असम पर हावी हो... लोगों को बताओ कि अगर गांधीजी हमें रोकने की कोशिश भी करें तो भी हम नहीं मानेंगे।'' गांधी की यह सलाह 29 दिसंबर, 1946 के 'हरिजन' अखबार में 'गांधीजी की असम को सलाह' शीर्षक से प्रकाशित हुई थी।

अब इस ऐतिहासिक तथ्य की रोशनी में प्रधानमंत्री मोदी के बयान को देखा जाए। उन्होंने गांधी और नेहरू पर आरोप लगाया कि वे असम को पाकिस्तान को सौंपना चाहते थे।

असम पर जवाहरलाल नेहरू का बयान- असम को जबरन समूहीकरण में डालने का नेहरू ने सख़्त विरोध किया था। उन्होंने 22 जुलाई, 1946 को बारदोलोई को पत्र में लिखा- ''समूह के खिलाफ फैसला करना सही और उचित था।'' 23 सितंबर, 1946 को लिखा, ''किसी भी हालत में हम असम जैसे प्रांत को उसकी इच्छा के खिलाफ़ कुछ करने के लिए मजबूर करने पर सहमत नहीं होंगे।''

अप्रैल, 1946 में बीबीसी को दिए इंटरव्यू में नेहरू ने कहा था- ''उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में मुस्लिम बहुल होने के बावजूद लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया है। असम भी स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के खिलाफ है।''

10 जुलाई, 1946 को बॉम्बे में प्रेस कॉन्फ्रेंस में नेहरू ने कहा, ''बहुत संभावना है कि असम बंगाल के साथ समूहीकरण के खिलाफ फैसला करेगा। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अंत में वहां कोई समूहीकरण नहीं होगा, क्योंकि असम इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेगा।'' नेहरू ने अंग्रेजों की योजना को 'जिन्ना का चेहरा बचाने' की कोशिश माना।

असम कांग्रेस कमेटी भी खिलाफ थी असम की प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने भी समूहीकरण (गु्रप सी प्रस्ताव) को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया, क्योंकि डर था कि असम को लीग को खुश करने के लिए मुस्लिम बहुल क्षेत्र से जोड़ दिया जाएगा। इस प्रकार गांधी और नेहरू के साथ ही असम की कांग्रेस कमेटी का भी इस बारे में रूख साफ था।

बारदोलोई और मोदी का बयान यह सच है कि कांग्रेस नेता गोपीनाथ बोरदोलोई ने असम को बंगाल के साथ जोड़ने का विरोध किया। उन्होंने योजना का विरोध करने का संकल्प लिया, लेकिन पहले गांधीजी से परामर्श किया और अपने दूतों को उनसे मिलने भेजा। मोदी कह रहे हैं कि बारदोलोई ने अपनी पार्टी के खिलाफ खड़े होकर असम बचाया। तथ्य बता रहे है कि बारदोलोई, गांधी और नेहरू असम के मुद्दे पर एक थे।

कांग्रेस के जबरदस्त विरोध के बाद अंग्रेजों ने असम को पाकिस्तान मे मिलाने की योजना को रद्द कर दिया। कैबिनेट मिशन प्लान को कांग्रेस ने पूरी तरह नाकाम कर दिया। इतिहास का यह महत्वपूर्ण घटनाक्रम झुठलाया नहीं जा सकता क्योंकि बातें बहुत पुरानी नहीं हैं। उस समय के अखबार आर्काइव्स में मौजूद हैं। सच यही है कि अगर गांधी, नेहरू , बारदोलोई और कांग्रेस एकजुट होकर विरोध नहीं करते तो असम पाकिस्तान का हिस्सा बन जाता। कुल मिलाकर मोदी ने अपनी आदत के मुताबिक अथवा अपने अज्ञान के चलते ऐतिहासित तथ्यों को छिपाकर उसका एक ही पहलू बताया। इतिहास का सत्य कुछ और है, पीएम मोदी का बयान कुछ और है, जिसका एक अहम संकेत यह भी है कि अब वे नेहरू के साथ-साथ गांधी को भी नहीं बख्शेंगे।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)


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