पूर्वोत्तर भारत पर बांग्लादेश की धमकी- खोखली धमकियां, या कुछ और?
बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा भारत के पूर्वोत्तर इलाके के सात बहनी राज्यों को छीनने का नारा नई दिल्ली के लिए कितना गंभीर है

- आशीष विश्वास
प्रधानमंत्री के तौर पर, हसीना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खुद को अलग-थलग करने के अलावा, बांग्लादेश के अंदर आम लोगों के बीच बढ़ते अलगाव को बर्दाश्त नहीं कर सकती थीं। उन्होंने हिफाजत-ए-इस्लाम (एचआई) जैसे नए उभरते हुए संगठनों को बढ़ावा दिया, जिसका इस्तेमाल उन्होंने बीएनपी को हराने के लिए एक छड़ी की तरह किया!
बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा भारत के पूर्वोत्तर इलाके के सात बहनी राज्यों को छीनने का नारा नई दिल्ली के लिए कितना गंभीर है? भारत के लिए इससे जो राजनीतिक चुनौती खड़ी होती है, उसका सही अंदाज़ा लगाने के लिए, इसकी पृष्ठभूमि की जानकारी का थोड़ा अध्ययनआवश्यक है।
बांग्लादेश ने शेख हसीना के प्रधानमंत्री के तौर पर 2019-24 के कार्यकाल के आखिर में पाकिस्तान के साथ पुराने रिश्ते फिर से बनाने की कोशिश की। इस बीच, इस्लामाबाद में सत्ताधारी सरकार भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अपने कमज़ोर गुप्तचर नेटवर्क को बढ़ा रही थी। एक तरह से, पाकिस्तान की पहले से ही पूर्वोत्तर इलाके के पास पकड़ थी। उसकी ताकतवर गुप्तचर संस्था, आईएसआई, ने नेपाल में अपनी मज़बूत मौजूदगी बना ली थी। वहीं पर 1999 में इंडियन एयरलाइंस के एक हवाई जहाज को हाईजैक करने की सोची थी और उसे अंजाम दिया गया था।
बांग्लादेश ने तुर्की के साथ अपने राजनयिक रिश्ते भी बेहतर किए थे, जो कश्मीर पर भारत के साथ अपने विवाद में पाकिस्तान का लगातार समर्थक रहा है। अंकारा और ढाका के बीच रिश्ते करीबी थे, क्योंकि दौरे पर आए तुर्की के प्रतिनिधिमंडल और अधिकारियों ने बांग्लादेश में हथियार बनाने के केन्द्र बनाने का सुझाव दिया था।
इस बीच, अपने बांग्लादेश में सत्तारूढ़ अवामी लीग (एएल) अपने कथित भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन के खराब रिकॉर्ड की वजह से अपनी ज़मीन खो रही थी, जिससे पश्चिम उससे अलग-थलग पड़ गया था। अवामी लीग को भारत को छोड़कर, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत कम समर्थन मिला। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी), जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) वगैरह जैसी विरोधी ताकतों के आंदोलन और ज़्यादा जोरदार होते जा रहे थे, जिससे उन्हें और समर्थन मिल रहा था।
प्रधानमंत्री के तौर पर, हसीना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खुद को अलग-थलग करने के अलावा, बांग्लादेश के अंदर आम लोगों के बीच बढ़ते अलगाव को बर्दाश्त नहीं कर सकती थीं। उन्होंने हिफाजत-ए-इस्लाम (एचआई) जैसे नए उभरते हुए संगठनों को बढ़ावा दिया, जिसका इस्तेमाल उन्होंने बीएनपी को हराने के लिए एक छड़ी की तरह किया!
उसमें भारत में अकाली दल को दबाए रखने के लिए जे.एस. भिंडरावाले के उग्रवादी सिखों का समर्थन करने के लिए दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की झलक थी!
साफ़ है, सुश्री हसीना ने श्रीमती गांधी की दुखद मौत में छिपे कड़वे राजनीतिक संदेश को गलत समझा- राजनीतिक कट्टरता के साथ खिलवाड़ करने की अदूरदर्शी नीति धर्मनिरपेक्ष सत्ताधारी पार्टियों के लिए लंबे समय तक काम नहीं आई।
बांग्लादेश में पहले से ही संकेत बुरे थे- शेख हसीना और अवामी लीग के लिए, 5 अगस्त, 2025 से बहुत पहले से।
हिफ़ाज़त समर्थक तत्वों ने अवामी लीग सरकार को प्रमुख जगहों से धर्मनिरपेक्ष थीम पर बनी सार्वजनिक मूर्तियों और दीवारों पर बनी पेंटिंग हटाने के लिए मजबूर किया। उन्होंने न्यायपालिका पर दबाव डाला। वे विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्र कार्यकर्ताओं के बीच बड़े पैमाने पर फैले हुए थे, जिससे अवामी लीग से जुड़ी छात्र लीग के लिए खतरा पैदा हो गया।
एचआईऔर जेईआईके कट्टरपंथी युवाओं ने 2021 में ही बांग्लादेश में अपने नए हासिल किए गए दबदबे का संकेत दे दिया था। उन्होंने लगातार दो दिनों तक बहुत ज़्यादा हिंसक भारत विरोधी प्रदर्शन किया, जिससे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने तय प्रोग्राम कम करने पड़े। जहां तक अवामी लीग की बात है, तो जिन्न बोतल से बाहर निकल चुका था।
भारत विरोधी प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश पुलिस, उसकी रैपिड एक्शन बटालियन या बीजीबीगार्ड्स की लाचारी को सामने ला दिया था। इसके अलावा, उन्होंने भारत सरकार को भी अपने बढ़ते दबदबे के बारे में बताया। हैरानी की बात है कि ढाका में भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को जो सार्वजनिक तौर पर बुरा-भला कहा गया, उस पर भारत सरकार की तरफ से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आयी।
बांग्लादेशी विश्लेषकों ने बताया कि ढाका और जिलों में उभरते युवा नेताओं से मिलने वाले पाकिस्तानी एजंटों ने खुलेआम अपना काम बहुत अच्छे से किया। बांग्लादेश में भारत के पूरे दबदबे को पहली बार चुनौती दी गई थी और नई दिल्ली कुछ खास नहीं कर सकी।
पीछे मुड़कर देखें तो, ढाका और नई दिल्ली दोनों जगह के नीति बनाने वालों को बांग्लादेशी युवाओं में इस्लामी कट्टरता के तेज़ी से बढ़ते खतरे के सामने उनकी लापरवाही और नाकाबिलियत के लिए बुरा-भला कहा जा सकता है। उन्होंने एशिया और अफ्रीका में उभर रहे नए बड़े राजनीतिक रूझान को नजऱ अंदाज़ कर दिया, जिसमें छात्रों और युवाओं ने दूसरे देशों में पश्चिम-प्रायोजित 'कलररेवोल्यूशन' में बड़ी भूमिका निभाई, जिससे एक के बाद एक सत्तारूढ़ सरकारें गिरीं।
सत्तारूढ़ पार्टियों के लिए आधारभूत लाइन यह है कि उन्हें राजनीतिक अतिवाद के साथ कोई तालमेल नहीं करना चाहिए, जो ज़्यादातर अपने प्रायोजक को ही खा जाता है।
हालांकि, यह नहीं मान लेना चाहिए कि बांग्लादेश में डॉ. यूनुस और नेशनल सिटिज़न्स पार्टी (एनसीपी) जैसी पार्टियों के रूप में सामने आए नए भारत विरोधी नेताओं और संगठनों ने अपनी मौजूदा शक्ति पहले ही मज़बूत कर ली है। यह बिल्कुल भी सही नहीं है। भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को काटने और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा करने के बारे में उनकी सभी भड़काऊ बातों के बावजूद, भारत के सामने उनकी कोई खास ताकत नहीं है, भले ही वे पाकिस्तान के साथ मिल जाएं।
यह ज़रूरी है कि अब तक चीन द्वारा 'सात बहनी राज्यों को आज़ाद करने' की बांग्लादेशी अपील पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गयी है। रूस का कहना है कि बांग्लादेश के साथ संबंध पहले की तरह ही जारी रहेंगे। यूरोपियन यूनियन और अमेरिकी ब्लॉक के देशों की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आयी है। खास बात यह है कि बांग्लादेश के अंदर भी किसी बड़े नेता या पार्टी ने भारत से पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों को अलग करने की यूनुस की मांग पर टिप्पणी करने की ज़हमत नहीं उठाई है। दुनिया के बाकी हिस्सों से इस मुद्दे पर पूरी तरह चुप्पी को देखते हुए, यह लगता है कि भारत सरकार को यूनुस की हरकतों को ज़्यादा गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है।
पूर्वोत्तर भारत के बड़े छात्र और युवा संगठन, जैसे एएएसयू, खासी स्टूडेंट्स यूनियन, एनईएसओऔर एजेवाईसीपी, हमेशा बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ का विरोध करते रहे हैं। वे बांग्लादेश से घुसपैठ के खिलाफ बड़े आंदोलनों में सबसे आगे रहे हैं।
इसलिए, सही दस्तावेज के साथ भारत (जिसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र भी शामिल है!) में यात्रा करने वाले बांग्लादेशियों को छोड़कर, यह कहना गलत नहीं होगा कि संदिग्ध गैर-अप्रवासी बांग्लादेशी आम तौर पर यहां के आम लोगों में शक और अविश्वास पैदा करते हैं,जिसे बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ. यूनुस को ध्यान रखना चाहिए।


