गज़ा में शांति की एक और योजना की सफलता संदिग्ध
युद्ध के दो साल गुजरने के साथ आधुनिक युग के रक्तरंजित इतिहास में उत्तरी सीमा के दोनों किनारों पर जश्न मनाया गया

- डॉ. मलय मिश्रा
शांति बेहद नाज़ुक है, ट्रम्प इम्प्रिमेटर के तहत चतुराई से तैयार की गई योजना को अरब देशों द्वारा आसानी से समर्थन दिया गया जिसके पीछे उनकी अपनी कोई योजना नज़र आती है। पिछले दो वर्षों में फिलिस्तिनियों पर किए गए अत्याचारों के बाद भी फिलिस्तीनी प्रतिरोध के खत्म होने का कोई संकेत नहीं दिखा रहा है।
युद्ध के दो साल गुजरने के साथ आधुनिक युग के रक्तरंजित इतिहास में उत्तरी सीमा के दोनों किनारों पर जश्न मनाया गया क्योंकि अमेरिकी नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था द्वारा फिलिस्तीन पर 'ऐतिहासिक' गज़ा शांति योजना 'थोपी' गई थी। इस योजना के पिछली योजना की तरह मिट्टी में मिलने की संभावना है। इसमें जनवरी समझौता भी शामिल है जिसका इज़रायल ने केवल दो महीने बाद उल्लंघन किया था। सत्ता में बने रहने के लिए इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू समझौते को (जिसके केवल पहले चरण के लिए अंतिम रूप दिया गया) नष्ट करने की कोशिश करेंगे क्योंकि इज़रायली सुप्रीम कोर्ट उन्हें पद से हटाने के लिए इंतजार कर रहा है। वास्तव में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पहले चरण की योजना पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि, वे इस बात की गारंटी नहीं दे सकते कि इज़रायल हमास पर फिर से हमला नहीं करेगा। इज़रायल के रक्षा मंत्री इज़राइल काट्ज़ ने इज़रायल डिफेन्स फोर्स (आईडीएफ) को शांति योजना का मामला हल होने के बाद हमास के आतंकवादियों का शिकार करने का आदेश दिया है।
शांति योजना का पहला चरण पूरा हो चुका है तथा हमास की कैद से जीवित 20 बंधकों को रिहा कर दिया गया है जबकि इज़रायल ने लगभग दो हजार फिलिस्तीनी आतंकवादियों और नागरिकों को मुक्त करने के अपने समझौते को पूरा किया है। 13 अक्टूबर को मिस्र एवं अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से मिस्र के रिसॉर्ट शहर शर्म अल-शेख में आयोजित समारोह में पश्चिमी दुनिया के साथ-साथ इस क्षेत्र के लगभग बीस विश्व नेता अमेरिकी राष्ट्रपति की सराहना करने के लिए एकत्र हुए। इस वर्ष का नोबेल शांति पुरस्कार वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को दिया गया जिन्होंने 'शांति के लिए अथक प्रयासों' के लिए ट्रम्प को यह पुरस्कार समर्पित किया। नोबेल शांति पुरस्कार के लिए मचाडो के नाम पर उंगलिया उठ रही हैं क्योंकि मचाडो ने न केवल गज़ा में नेतन्याहू के नरसंहार कार्यों का समर्थन किया बल्कि वेनेज़ुएला में लोकतंत्र वापस लाने की आड़ में राष्ट्रपति निकोलस मादुरो से लड़ने के लिए समर्थन भी मांगा है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गज़ा पर प्रशासन करने के लिए अधिकृत संयुक्त राष्ट्र और कथित तौर पर वेस्ट बैंक पर शासन कर रहे फिलिस्तीन प्राधिकरण से शांति योजना पर किसी भी तरह से परामर्श नहीं किया गया। उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष नवी पिल्ले ने दावा किया कि फिलिस्तीन इस योजना का एक पक्ष नहीं था। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग वह निकाय है जिसने इज़रायल को नरसंहार के लिए जिम्मेदार पाया था। बाद में दक्षिण अफ्रीका इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले गया था।
हमास के निरस्त्रीकरण और गज़ा के भविष्य के शासन से निपटने वाली योजना का दूसरा चरण अधर में लटका हुआ है क्योंकि हमास योजना के बाद के चरणों के लिए सहमत नहीं हुआ है। हमास का यह कदम नेतन्याहू के नेतृत्व वाली धुर दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी के लिए उपयुक्त है क्योंकि वह आगामी सभी समस्याओं के लिए हमास की हठधर्मिता की ओर अंगुली दिखाएगा। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि गुरिल्लाओं ने सभी बाधाओं का सामना किया है और अरब ब्लॉक के भीतर अपनी छवि के अलावा बड़े पैमाने पर लोगों व हथियारों को खो दिया है। जिन लोगों के पास रहने के लिए जगह नहीं है, जिनके पास रहने के लिए घर नहीं थे, जहां 67 हजार से अधिक निर्दोष लोगों की जान चली गई, महिलाओं और बच्चों की हत्याएं कर दी गईं, कई अपंग हो गए, बलात्कार किया गया और उन्हें भूखा मार डाला गया। अस्पतालों, स्कूलों, सामुदायिक केंद्रों पर बमबारी की गई, भोजन व चिकित्सा आपूर्ति को हथियारों से उड़ा दिया गया, आखिरकार उनके पास क्या विकल्प हो सकते थे?
उपनिवेशवाद से मुक्ति के प्रणेता 'द रेच ऑफ द अर्थ' के लेखक फ्रांज़ फै़नन कहते हैं- 'उपनिवेशवाद से मुक्ति वास्तव में नवनिर्माण है लेकिन इस रचना की वैधता का श्रेय किसी भी अलौकिक शक्ति को नहीं है; जिस चीज को उपनिवेश बनाया गया है, वह उसी प्रक्रिया के दौरान मजबूत हो जाता है जिसके द्वारा वह खुद को मुक्त करता है।' हमास ने फिलिस्तीनी लोगों के अपने लिए, अपने आत्मनिर्णय और संप्रभुता के लिए बोलने के अधिकार का आत्मसमर्पण करना उचित नहीं समझा है। गज़ा पर शासन करने की हमास की वैधता 2006 के चुनावों में मिले जनादेश से प्राप्त होती है इसलिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अब फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देने की मांग करने वाली पश्चिमी शक्तियां इसे एक आतंकवादी समूह के रूप में मानती हैं या नहीं।
पीएम मोदी ने 9 अक्टूबर को पीएम नेतन्याहू और राष्ट्रपति ट्रम्प दोनों को कई बार बधाइयां दीं लेकिन दिल्ली की राजनीतिक सोच में स्पष्ट रूप से गज़ा या हमास अनुपस्थित रहा है। यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि भारत ने अब तक हमास को आतंकवादी समूह घोषित नहीं किया है। फिर, सार्वजनिक स्थान पर गज़ा का उल्लेख या नागरिक समाज की बातचीत में खतरे की घंटी क्यों बजती है? यह ध्यान देने वाली बात है कि 1974 में पीएलओ को मान्यता देने वाले पहले गैर-अरब देशों में से भारत एक था। उसने 1998 में फिलिस्तीन को एक सम्प्रभु देश के रूप में मान्यता दी थी और 1946 में संयुक्त राष्ट्र में आत्मनिर्णय और रंग-भेद के उन्मूलन के मुद्दे को उठाने के लिए गुटनिरपेक्ष समूह कानेता रहा था।
नवंबर, 1938 में 'हरिजन' में गांधीजी ने लिखा था, 'यहुदियों के प्रति मेरी सहानुभूति मुझे न्याय की आवश्यकताओं के प्रति अंधा नहीं करती है। यहूदियों को अरबों पर थोपना गलत और अमानवीय है।' भारत ने 1947 की संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना के आधार पर तैयार संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 181 का विरोध किया था। इज़रायल के नरसंहार कार्यों की आलोचना करने और गज़ा में तत्काल युद्धविराम के प्रस्ताव को वीटो करने वाले कई प्रस्तावों के संदर्भ में 153 सदस्य देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र के पटल पर 'द्वि-राष्ट्र सिद्धांत' के समर्थन में इसकी तुलना भारत के मतदान के वर्तमान पैटर्न से करें तो यह दिल्ली के लिए एक असुविधाजनक प्रस्ताव रहा है। जब 'फिलिस्तीन' सार्वजनिक चर्चा में निषिद्ध हो गया है तो यह स्थिति इतिहास और फिलिस्तीनी मुद्दे के लिए भारत के समर्थन की लंबी परंपरा को नकारने के समान है।
ट्रम्प शांति योजना, हमास के लिए आत्मसमर्पण का एक चतुराई से हेर-फेर की गई योजना है जो फिलिस्तीनी स्वायत्तता के लिए अभी या भविष्य में किसी भी प्रकार की और न ही संघर्ष के बाद के पुनर्निर्माण में इसकी भागीदारी के लिए कोई गुंजाइश छोड़ता है। योजना की अस्पष्टता के लिए इसकी आलोचना की गई है और यह वैश्विक नियम-आधारित गिरोह द्वारा वैश्विक पूंजीवाद की मिलीभगत के साथ दूर-दराज़ ईवैन्जलिज़्म और ज़ायोनी समर्थन (ज़ायोनीवाद एक राष्ट्रवादी आंदोलन है जो यहूदियों के लिए उनकी ऐतिहासिक मातृभूमि, इज़रायल में एक यहूदी राज्य की स्थापना और उसके अस्तित्व का समर्थन करता है) के वैचारिक पोषण के साथ ऊपर से नीचे थोपना है। इस प्रकार शांति शिखर सम्मेलन और गज़ा की निकटवर्ती परिधि से आईडीएफ की वापसी के तुरंत बाद इजरायली जेल से रिहा किए गए आतंकवादियों ने सार्वजनिक रूप से कई तथाकथित काफिरों का कत्लेआम कर दिया है। इन घटनाओं के बाद खाद्य सहायता रोक दिए जाने के कारण गज़ा इलाके में फिर से अराजकता का माहौल है।
शांति बेहद नाज़ुक है, ट्रम्प इम्प्रिमेटर के तहत चतुराई से तैयार की गई योजना को अरब देशों द्वारा आसानी से समर्थन दिया गया जिसके पीछे उनकी अपनी कोई योजना नज़र आती है। पिछले दो वर्षों में फिलिस्तिनियों पर किए गए अत्याचारों के बाद भी फिलिस्तीनी प्रतिरोध के खत्म होने का कोई संकेत नहीं दिखा रहा है। इजरायल पर 7 अक्टूबर, 2023 को किए गए हमास के हमले के अन्यायपूर्ण प्रतिशोध के रूप में अत्याचार हुए हैं।
वैश्विक व्यवस्था को यह समझने की जरूरत है कि थोपी गई शांति कभी भी मातृभूमि की न्यायसंगत मांगों की बढ़ती चुनौती का सामना नहीं कर सकती है।
(लेखक सेवानिवृत्त राजनयिक और राजनीतिक विश्लेषक हैं। सिंडिकेट : द बिलियन प्रेस)


