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बिहार में मुस्लिम उप मुख्यमंत्री? जनाब वहां तो मुस्लिम मुख्यमंत्री बन चुके हैं!

जो मुस्लिम के नाम, जबान, कपड़े, त्यौहार, खाने-पीने सब को संदेह के घेर में लाने की कोशिश कर रहे हों वे अचानक इस बात के लिए फिक्रमंद हो गए कि बिहार में महागठबंधन मुस्लिम के लिए उप मुख्यमंत्री पद की घोषणा नहीं कर रहा है

बिहार में मुस्लिम उप मुख्यमंत्री? जनाब वहां तो मुस्लिम मुख्यमंत्री बन चुके हैं!
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  • शकील अख्तर

मगर क्या इस पद से आज जो मुस्लिम के सामने समस्याएं बना दी गई हैं उनका कोई हल होगा? समस्याएं वास्तविक हैं और यह पद एक भावनात्मक रीलिफ। केवल एक जबर्दस्ती का गोल दे दिया कि इसे हासिल करके बताओ। उसका कोई मतलब नहीं है। मुस्लिम को राजनीतिक रूप से सचेत होने की बहुत जरूरत है। जज्बाती सवालों से दूर होने की।

जो मुस्लिम के नाम, जबान, कपड़े, त्यौहार, खाने-पीने सब को संदेह के घेर में लाने की कोशिश कर रहे हों वे अचानक इस बात के लिए फिक्रमंद हो गए कि बिहार में महागठबंधन मुस्लिम के लिए उप मुख्यमंत्री पद की घोषणा नहीं कर रहा है!

इसमें सबसे ज्यादा दु:ख और फिक्र की बात यह है कि मुस्लिमों का एक हिस्सा इस दुष्प्रचार में फंस रहा है। वे भी ऐसी बातें करने लगे जैसी बीजेपी, प्रशांत किशोर, चिराग पासवान, नीतीश कुमार की पार्टी, गोदी मीडिया, भक्त वगैरह वगैरह कर रहे हैं।

मुस्लिम यह नहीं सोच रहा कि यह हमारे अचानक हमदर्द कहां से बन गए? और अगर बन गए हैं तो पहले उन गिरिराज सिंह से क्यों नहीं पूछ रहे जो मुस्लिम को नमकहराम कह रहे हैं। पाकिस्तान तो वे हमेशा से भेजते रहते हैं! मुस्लिम को यह सोचना चाहिए कि उप मुख्यमंत्री एक इतनी सामान्य, स्वाभाविक चीज है जो तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने पर उनके समुदाय को मिलना ही है।

मगर क्या इस पद से आज जो मुस्लिम के सामने समस्याएं बना दी गई हैं उनका कोई हल होगा? समस्याएं वास्तविक हैं और यह पद एक भावनात्मक रीलिफ। केवल एक जबर्दस्ती का गोल दे दिया कि इसे हासिल करके बताओ। उसका कोई मतलब नहीं है।

मुस्लिम को राजनीतिक रूप से सचेत होने की बहुत जरूरत है। जज्बाती सवालों से दूर होने की। अफसोस मुस्लिम का एक हिस्सा इस उपमुख्यमंत्री पद के झमेले में फंसकर कांग्रेस और आरजेडी से ऐसे सवाल पूछ रहा है जैसे बीजेपी और उसके समर्थक। ऊपर जो नाम हमने लिखे चिराग, प्रशांत किशोर, नीतीश यह सब प्रच्छन्न रूप से बीजेपी ही हैं। ओवैसी भी इसमें शामिल हैं। उनकी पार्टी के लोग और ज्यादा तुर्शी से सवाल पूछ रहे हैं।

हमने ऊपर यह भी लिखा कि तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने के साथ एक मुस्लिम उप मुख्यमंत्री भी बनेगा। यह एक इतनी बड़ी सच्चाई है जो सबको मालूम है। सवाल उठाने वाले भाजपा और उसके सहयोगियों को भी। मगर क्या वे ऐसा चाहते हैं? कभी नहीं! फिर क्यों सवाल उठा रहे हैं? बस यही मुस्लिमों को सोचना चाहिए। वे इसलिए एक नान इशु को इशु बना रहे हैं कि इसी के जरिए वे मुस्लिम के खिलाफ और माहौल बना सकते हैं। और मुस्लिम के खिलाफ माहौल बनाने का मतलब उसके जरिए हिन्दुओं का धु्रवीकरण।

वही पुराने झूठ का राग फिर से अलापना कि देखो कांग्रेस आरजेडी मुस्लिम तुष्टिकरण कर रहे हैं। मुस्लिम की पार्टी है यह। किसी वर्ग विशेष की पार्टी बनाकर दूसरे बड़े समुदाय को भड़काना इनका पुराना खेल है। यूपी में सपा को खुलेआम यादवों की पार्टी कहा जाने लगा है। बिहार में इतना खुलकर यादवों के खिलाफ नहीं बोला जा रहा है मगर मुस्लिम को उनके साथ टेग करके हिन्दुओं के दूसरे वर्गों को भड़काया जा रहा है। एमवाय एक ऐसा ही नाम है जो मीडिया ने लालू के खिलाफ इस्तेमाल किया। एमवाय कहकर लिखकर बाकी लोगों को आरजेडी से दूर करने का प्रयास किया। इसलिए राहुल गांधी ने कहा कि हम गरीब सवर्णों के भी साथ खड़े हैं।

आज के वक्त में सबसे बड़ी जरूरत झूठी धारणाओं से बचने और बचाने की है। अगर उप मुख्यमंत्री मुस्लिम को देंगे की घोषणा हो जाती तो अभी तक पूरा चुनाव एक नया टर्न ले चुका होता। यहां महागठबंधन ने राजनीतिक समझदारी का परिचय दिया। मगर उस हद तक मुस्लिम नहीं दे पाए। सिर्फ बीजेपी कहती तो वे समझ भी जाते कि इस पार्टी ने तो जो दो नेता मुस्लिम थे मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन और जिनकी भाजपा भक्ति किसी भाजपा के नेता से कम नहीं थी उन्हें भी मंत्री पद तो छोड़िए सांसदी से भी हटा दिया। बिहार में एक मुस्लिम को टिकट नहीं दिया। वह मुस्लिम उप मुख्यमंत्री का मुद्दा केवल इसलिए उछाल रही है कि अगर दबाव में आकर घोषणा कर दें तो तुष्टिकरण का राग फिर से शुरू और अगर नहीं करें तो मुस्लिम को भड़काना शुरू कि तुम तो किसी गिनती में ही नहीं हो।

मगर बीजेपी के सुर में सुर मिलाकर जिस तरह ओवैसी की पार्टी इस मुद्दे को तूल देने में जुटी उससे मुस्लिम कु छ हद तक बहक गया। मुस्लिम को यह समझना चाहिए कि ओवैसी अभी सबसे आगे आगे मोदी का प्रचार करने वर्ल्ड टूर पर गए थे। इस झूठ का पर्दाफाश हो चुका है कि दुनिया को भारत की स्थिति बताने के लिए विभिन्न डेलिगेशन जिनमें ओवैसी के जाने का सबसे ज्यादा प्रचार किया गया, गए थे। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने आपरेशन सिंदूर का राजनीतिक लाभ लेना शुरू करके बता दिया कि विभिन्न देशों में डेलिगेशन पहुंचाने का उद्देश्य भारत की नहीं अपनी छवि बनानी थी।

ओवैसी मोदी को ही राजनीतिक लाभ पहुंचा रहे थे। और अब बिहार में मुस्लिम बहुल इलाके सीमांचल से अपनी पार्टी के 25 से ज्यादा उम्मीदवार लड़वाकर वे केवल महागठबंधन को नुकसान पहुंचाने की ही कोशिश कर रहे हैं। पिछली बार 2020 में उनकी पार्टी ने पांच सीटें जीती थी। वहां 36 साल और 16 साल से जीत रहे कांग्रेस के उम्मीदवारों को हरा दिया। मगर उससे भी खास बात यह रही कि जीते हुए 5 में 4 विधायक बीजेपी समर्थित नीतीश के साथ चले गए।

तो मुस्लिम को ओवैसी को भी अच्छी तरह समझने की जरूरत है। उनकी जज्बाती तकरीरें मुस्लिम को अच्छी तो बहुत लगती हैं मगर उनकी वास्तविक समस्याओं के निरावरण के लिए उनमें कुछ नहीं होता है। केवल लफ्ज़ ही लफ्ज़! भड़काई हुई भावनाएं ही भावनाएं !

मुस्लिम को आज क्या चाहिए? सबसे पहले तो उसे 2014 से पहले के सामाजिक हालात चाहिए। और उसे ही नहीं सबको चाहिए। 2014 के बाद मुस्लिम पर तो अत्याचार बढ़े ही हैं दलित, पिछड़े आदिवासी पर भी बढ़े हैं। पहले प्रेम समावेश एक दूसरे के सम्मान का माहौल था। अब नफरत विभाजन एक दूसरे का उपहास अपमान का माहौल है। लींचिग जैसा शब्द पहले सुना भी नहीं था। मगर अब मुस्लिम दलित किसी पर भी कोई झूठा आरोप लगाकर सत्ता समर्थित भीड़ उसकी पीट-पीट कर हत्या कर सकती है।

यूपी में पुलिस इंसपेक्टर सुबोध कुमार सिंह की लीचिंग हुई, हरियाणा में छात्र आर्यन मिश्रा की। बाकी दलित मुस्लिम पिछड़ों आदिवासियों की तो लंबी फेहरिस्त है। इनके अलावा दूसरों की भी जो समाज में ऊंचा स्थान रखते हैं मगर कहीं न कहीं कोई भी समाज दूसरे से कमजोर होता है तो उसका नंबर भी लग जाता है कि लिस्ट छोटी नहीं है।

यह समाज की देश की मूल समस्या है। आपस में एक दूसरे से नफरत करता, लड़ता समाज खोखला हो जाता है। मगर बीजेपी को इसकी चिंता नहीं है। उसे इसी में वोट दिखाई देता है।

आज बिहार का चुनाव पूरे देश के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर मोदी जीत गए तो फिर नफरत और विभाजन की राजनीति और तेज होगी। इसके बाद बंगाल है वहां भी फिर वे वही हिन्दू-मुस्लिम, घुसपैठिए का सवाल ही लेकर जाएंगे। और अगर हार गए तो सीधा मैसेज यह जाएगा कि यह चुनाव महागठबंधन ने रोजगार, सरकारी नौकरी के मुद्दे पर मोदी से छीन लिया।

फिर इसके बाद बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी जहां अगले साल चुनाव होना है वहां नफरत विभाजन के मुद्दे कमजोर हो जाएंगे। देश को इस समय इसी की जरूरत है कि जनता से जुड़े असली मुद्दों पर सरकार बात करे। हवा हवाई बातों पर नहीं कि 50 साल पहले यह क्यों हुआ था और 500 साल पहले क्यों?

इसलिए उप मुख्यमंत्री का सवाल बेमानी है। खास तौर से उस बिहार में जहां आज से पचास से ज्यादा साल पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री बन चुका हो। अब्दुल गफूर 1973 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए थे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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