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इंसानियत बचाने के लिए एक पत्रकार की दारुण पुकार

11 अगस्त को गजा सिटी में पत्रकारों के शिविर पर किए गए एक लक्षित इजरायली हमले में अल-जजीरा के पत्रकार अनस अल-शरीफ और उनके चार सहकर्मियों की मौत हो गई

इंसानियत बचाने के लिए एक पत्रकार की दारुण पुकार
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  • सर्वमित्रा सुरजन

11 अगस्त को गजा सिटी में पत्रकारों के शिविर पर किए गए एक लक्षित इजरायली हमले में अल-जजीरा के पत्रकार अनस अल-शरीफ और उनके चार सहकर्मियों की मौत हो गई। युद्धों में सारी क्रूरता के बावजूद पत्रकारों, चिकित्सकों, सहायता पहुंचाने वाले कर्मियों आदि पर हमले नहीं किए जाते थे, लेकिन इजरायल इतनी नैतिकता और साहस भी नहीं दिखा सका। पांच पत्रकारों की इस हत्या पर दुनिया भर के मीडिया में पुरजोर निंदा की जा रही है।

रक्तपिपासु बेंजामिन नेतन्याहू के शासन में इजरायल ने गज़ा को पूरी तरह लील लिया है। फिर भी उसकी प्यास नहीं बुझ रही है। सैकड़ों मासूम बच्चों के कत्ल और हजारों-लाखों जिंदगियों को तबाह करने का ऐसा गुनाह नेतन्याहू के सिर पर है, जिसके लिए कोई भी सज़ा कम पड़ेगी। यह बड़ी विडंबना ही है कि दुनिया हिटलर की नृशंसता को याद करती है, अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर जो बम गिराए, उसकी विभीषिका से सबक लेने की बात करती है, अमेरिका में 11 सितंबर के बड़े आतंकी हमले पर त्राहिमाम करती है। लेकिन मौजूदा वक्त में जिस तरह का आतंकवाद इजरायल ने कायम किया है और पूरी सीनाजोरी के साथ गज़ा को खत्म करने और पूरे फिलीस्तीन पर कब्जा करने की बात नेतन्याहू कर रहे हैं, उस पर रोक लगाने की कोशिशें जुबानी जमाखर्च से आगे ही नहीं बढ़ पा रही हैं। यह तो समझ आ गया कि संयुक्त राष्ट्र संघ सिरे से अनुपयोगी हो चुका है। विश्वशांति के जिस मकसद से इसकी स्थापना दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की गई थी, उसे प्राप्त करने में संरा संघ नाकाम रहा है। लेकिन केवल इस संस्था पर ठीकरा फोड़ने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि आखिर में यह उन तमाम देशों की साझा नाकामी है, जिनसे इस संस्था का गठन हुआ है। इस समय शक्तिशाली देशों की सरकारें व्यापार के हितों से संचालित हो रही हैं, लिहाजा उनसे इंसानियत की उम्मीद बेकार है। छोटे देशों में अधिकतर इस पाले या उस पाले बैठे हुए हैं। नेहरू-गांधी जैसे नेता इस समय वैश्विक परिदृश्य में नहीं हैं, जो दुनिया को नया विचार, नयी दिशा दे सकें। इंसानियत मानो आखिरी सांसें ले रही है और इस कठिन समय में अनस अल-शरीफ जैसे पत्रकारों उम्मीद लेकर आते हैं कि जान की बाजी लगाकर भी गलत को गलत और सही को सही कहने का जज़्बा दिखाया जाएगा। लेकिन इजरायल ने अनस अल शरीफ की भी जान ले ली।

11 अगस्त को गजा सिटी में पत्रकारों के शिविर पर किए गए एक लक्षित इजरायली हमले में अल-जजीरा के पत्रकार अनस अल-शरीफ और उनके चार सहकर्मियों की मौत हो गई। युद्धों में सारी क्रूरता के बावजूद पत्रकारों, चिकित्सकों, सहायता पहुंचाने वाले कर्मियों आदि पर हमले नहीं किए जाते थे, लेकिन इजरायल इतनी नैतिकता और साहस भी नहीं दिखा सका। पांच पत्रकारों की इस हत्या पर दुनिया भर के मीडिया में पुरजोर निंदा की जा रही है। हालांकि भारत का मीडिया इस मामले में भी काफी पिछड़ चुका है। बहरहाल, मौत से पहले अनस का आखिरी संदेश सार्वजनिक किया गया है, जिसे उनकी मौत के बाद सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया है। 6 अप्रैल 2025 को अनस ने यह संदेश लिख कर रखा था। उन्हें पता था कि कर्तव्य पथ पर उनके साथ क्या हो सकता है, फिर भी वे पीछे नहीं हटे।

इस आखिरी पैगाम में अनस ने कहा है कि.... ये मेरी इच्छा और मेरा अंतिम संदेश है। अगर मेरे ये शब्द आप तक पहुंच गए हैं तो आप समझ जाएं कि इजरायल ने मुझे मार डाला है और मेरी आवाज को खामोश करने में कामयाब रहे हैं। अल्लाह जानता है कि मैंने हरसंभव कोशिश की कि मैं अपने लोगों की ताकत और उनकी आवाज बन सकूं। जब से मैंने जबालिया रिफ्यूजी कैंप की गलियों में आंखें खोली हैं। मेरी उम्मीद रही है कि अल्लाह मुझे लंबी उम्र दे ताकि मैं अपने परिवार के पास अपने शहर असकलान (अल-मज्दल) लौट सकूं। लेकिन अल्लाह की मर्जी पहले होती है और उनका फैसला अंतिम होता है। मैंने कई बार दर्द को हर रूप में जिया है, कई बार पीड़ा सही है। लेकिन फिर भी मैंने एक बार भी सच्चाई को बिना तोड़-मरोड़ या झूठ के सामने लाने में संकोच नहीं किया ताकि उन लोगों को अल्लाह के सामने खड़ा किया जा सके, जिन्होंने चुप्पी साधे रखी, जिन्होंने निर्दोषों की हत्याओं को मुंह सिल कर स्वीकार कर लिया और जिनके दिल हमारे बच्चों और महिलाओं के बिखरे हुए अवशेषों को देखकर भी नहीं पसीजे, और जिन्होंने डेढ़ साल से अधिक समय से मारे जा रहे हमारे लोगों के नरसंहार को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।

मैं आपको फिलीस्तीन सौंपता हूं, जो मुस्लिम दुनिया का अनमोल रत्न है और इस दुनिया के हर आजाद शख्स के दिल की धड़कन है। मैं आपको यहां के लोगों, मासूम बच्चों की जिम्मेदारी सौंपता हूं, जिन्हें कभी सपने देखने या सुरक्षा और शांति के साथ जीने का मौका नहीं मिला। उन पर हजारों टन इजरायली बम और मिसाइलें गिराई गईं, जिनसे उनके चिथड़े हो गए।

मैं आपसे आग्रह करता हूं कि इन बेड़ियों को अपनी आवाज को खामोश न करने दो, न ही सरहदों को तुम्हें रोकने दो। तुम उस जमीं और उसके लोगों की आजादी के लिए पुल बनो, जब तक हमारी चोरी की गई मातृभूमि पर की आजादी का सूरज न उग आए। मैं तुम्हें अपने परिवार की जिम्मेदारी सौंपता हूं। मैं तुम्हें अपनी प्यारी बेटी शम को सौंपता हूं, जो मेरी आंखों का तारा है जिसे मैं बड़ा होते हुए कभी देख ही नहीं सका। मैं तुम्हें अपने प्यारे बेटे सलाह को सौंपता हूं, जिसे मैं जीवन भर सहारा देना और उसके साथ रहना चाहता था, जब तक वह इतना मजबूत न हो जाए कि मेरा बोझ उठा सके और इस मिशन को आगे बढ़ा सके।

मैं तुम्हें अपनी प्यारी मां को सौंपता हूं, जिनकी दुआओं ने मुझे यहां तक पहुंचाया है, जहां मैं हूं। जिनकी दुआएं मेरी ढाल बनीं और जिनके नूर ने मेरा रास्ता रोशन किया। मैं दुआ करता हूं कि अल्लाह उन्हें ताकत दे और मेरी ओर से उन्हें सबसे बेहतरीन इनाम अता करे। मैं तुम्हें अपनी जीवनसंगिनी, अपनी प्यारी पत्नी उम्म सलाह (बयान) को भी सौंपता हूं, जिससे युद्ध ने मुझे महीनों तक जुदा रखा। फिर भी वह हमारे रिश्ते के प्रति वफादार रहीं, जैतून के पेड़ के तने की तरह अडिग रही, सब्र करने वाली, अल्लाह पर भरोसा रखने वाली और मेरी गैरमौजूदगी में पूरे हौसले और ईमान के साथ जिम्मेदारी निभाने वाली।

मैं तुमसे आग्रह करता हूं कि तुम उनके साथ खड़े रहो, अल्लाह ताला के बाद उनका सहारा बनो। अगर मैं मरता हूं, तो अपने उसूलों पर अडिग रहकर मरूंगा। मैं अल्लाह को गवाह बनाकर कहता हूं कि मैं उसके फैसले से राजी हूं, उससे मिलने के यकीन के साथ और इस भरोसे के साथ कि जो अल्लाह के पास है, वह बेहतर और हमेशा रहने वाला है।

ऐ अल्लाह! मुझे शहीदों में शामिल कर, मेरे पिछले और आने वाले गुनाह माफ कर और मेरे खून को मेरी कौम और मेरे परिवार के लिए आजादी का रास्ता रोशन करने वाली एक रोशनी बना दे। अगर मुझसे कोई कमी रह गई हो तो मुझे माफ कर और मेरे लिए रहमत की दुआ करना क्योंकि मैंने अपना वादा निभाया और उसे कभी बदला या तोड़ा नहीं। गजा को मत भूलना... और मुझे अपनी दुआओं में मत भूलना।

अनस अल शरीफ का यह आखिरी पैगाम सत्ता के नशे में डूबे तमाम स्वार्थी नेताओं के मुंह पर बड़ा तमाचा है। और उन लोगों पर लानत है जो नेतन्याहू का साथ देने वाले ट्रंप के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की बात करते हैं या ट्रंप से दोस्ती के लिए देश की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाते हैं। अनस अल शरीफ वास्तविक अर्थों में उस सैनिक की तरह शहीद हुए हैं, जो जान की बाज़ी लगाकर मोर्चे पर जाता है। अनस ने अपनी जिंदगी के आखिरी वक्त तक दुनिया को बताया कि गज़ा में क्या चल रहा है। उनका 11 तारीख की ही एक पोस्ट है, जिसमें उन्होंने कहा था कि लगातार बमबारी हो रही है। दो घंटे से गाजा शहर पर इज़रायली हमला तेज हो गया है।

इसी तारीख की एक और पोस्ट है, जिसमें अनस ने चेतावनी वाले निशान के साथ लिखा है, सर्वसंबंधितों के लिए,

आक्रांता अब खुले तौर पर गज़ा पर पूर्ण आक्रमण की धमकी दे रहा है। 22 महीनों से, शहर ज़मीन, समुद्र और हवा से लगातार बमबारी से क्षत-विक्षत है। हज़ारों लोग मारे गए हैं और लाखों घायल हुए हैं। अगर यह पागलपन नहीं रुका, तो गज़ा खंडहर में तब्दील हो जाएगा, उसके लोगों की आवाज़ें दबा दी जाएंगी, उनके चेहरे मिटा दिए जाएंगे - और इतिहास आपको उस नरसंहार के मूक गवाह के रूप में याद रखेगा जिसे आपने रोकने का फ़ै सला नहीं किया।

कृपया इस संदेश को शेयर करें और उन सभी को टैग करें जिनके पास इस नरसंहार को रोकने की ताकत है। चुप्पी का मतलब सहभागिता है।

इज़रायल की क्रूरता को अनस अल शरीफ ने दुनिया के सामने खोल कर रख दिया है। उनकी तरह और भी बहुत से लोग इस समय गज़ा की सच्चाई दिखाने और पीड़ितों की मदद करने में लगे हैं। ऐसे लोगों का साथ देना, उन्हें हिम्मत बंधाना भी इस समय बड़ी बात है। लेकिन जिन लोगों के पास सत्ता की ताकत है, वे इतनी हिम्मत भी नहीं दिखा पा रहे हैं।

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने इस पर आवाज़ उठाई, तो इजरायल के राजदूत ने उन पर पलटवार करते हुए नैतिकता का वास्ता दे दिया। देश की विदेश नीति इतनी कमजोर कभी नहीं रही और कोई भी सरकार इतनी लाचार नहीं रही कि किसी देश का राजदूत सांसद पर अवांछित टिप्पणी कर सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या विदेश मंत्री एस जयशंकर चाहते तो फौरन इजरायली राजदूत की निंदा करते, लेकिन उनकी चुप्पी बता रही है कि देश किस तरफ जा रहा है।


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