Top
Begin typing your search above and press return to search.

पापा जब बच्चे थे

इस सन्नाटे में पिता के ख्यालों में अपने बचपन की दो घटनाएँ कौंध गयीं

पापा जब बच्चे थे
X

- अशोक भाटिया

इस सन्नाटे में पिता के ख्यालों में अपने बचपन की दो घटनाएँ कौंध गयीं। तब वे नवीं-दसवीं के छात्र थे।पिता के पास समय कम होता था। एक बार उसके बूट खरीदे जाने थे। पिता ने उसे खुद ही खरीद लाने को कह

दिया था।

कुछ दिन पहले ही बेटी ने कॉलेज में प्रवेश लिया था। माता-पिता ने उसे बड़े चाव से मोबाइल फोन ले दिया था। मोबाइल के अपने फायदे हैं।देर-सबेर हो जाए या कोई दु:ख-तकलीफ या कोई उंच-नीच हो जाए तो फौरन घर बता सकते हैं। बारह सौ का मोबाइल था, माँ-बाप की हैसियत से बढ़कर। बेटी के आत्मविश्वास को चार चाँद लग गए। 'थैंक यू पापा।' बेटी खुश थी।

लेकिन आज कॉलेज से उसका फोन आया। बड़ी परेशान लग रही थी। 'पापा,मैं दूसरे नंबर से फोन कर रही हूँ।आप मुझे डान्टोगे तो नहीं ?...'

उसके पिता एकबारगी घबरा गए।किसी अनहोनी के लिए तैयार होने लगे ...कल्पना के घोड़े चारों तरफ बदहवास-से भाग पड़े...मोबाइल खो गया होगा...किसी ने छीन लिया होगा...पर यह दूसरा नंबर..बड़े डर और परेशानी वाली आवाज़ थी..कहीं कुछ और ...

इतने में बेटी बोली-पापा मेरा मोबाइल खो गया है।सब जगह ढूंढा,कहीं नहीं मिला।पापा,आप मुझे डान्टोगे तो नहीं। सॉरी पापा..।'

कहकर बेटी चुप हो गई। दोनों तरफ चुप्पी पसर गयी थी। बेटी की आवाज़ में डर इस कदर समाया था कि उसके पिता भी सिहर गए -उसकी बेटी इतना डरती है उससे !

इस सन्नाटे में पिता के ख्यालों में अपने बचपन की दो घटनाएँ कौंध गयीं। तब वे नवीं-दसवीं के छात्र थे।पिता के पास समय कम होता था। एक बार उसके बूट खरीदे जाने थे। पिता ने उसे खुद ही खरीद लाने को कह दिया था। वे बड़ी उमंग से बूट ले आए थे। रात को पिता ने बूट देखकर कहा था-क्या कुत्ते के मुंह जैसे उठा लाया है। $फदौड़ हैं।'पिता की बात सुन उनका सारा उत्साह ठंडा पड़ गया था।उन्हें भी वे बूट बिलकुल बेकार लगने लगे थे।

तब बूटों की पॉलिश का काम भी माँ ही किया करती थी। हफ्ते में एक बार ही पॉलिश होती थी। तब हफ्ते बाद उन्हें बूट पोलिश करने का भी अवसर मिल गया था।आती तो थी नहीं,न ही माँ को पॉलिश करते देखा था।बस,खूब सारी पॉलिश की परत चिपका दी। तभी बड़े भाई ने देख लिया।गुस्से में बूट उठा लिए-इसे पिताजी को दिखाऊंगा। आ लेने दे रात को।' भाई ने बूट छिपा दिए थे। तब से लेकर रात पिताजी के आने तक के वक्त में उन्होंने महसूस किया कि डर क्या होता है..शेर के मुंह जैसा भयानक....

वे वर्तमान में आये—वही डर आज बेटी के मन में गरज रहा है।'वे फौरन बोले-'कोई बात नहीं खो गया तो।चीज़ें खो जाया करती हैं। और ले लेंगे,परेशान न हो ,घर आ जा।'

पिता के मन से बचपन का वह बोझ भी उतर गया। बेटी के मन से भी डर की भारी परत छंट गयी। 'थैंक यू पापा' उसने उमंग से कहा।

उस दिन से बाप-बेटी आपस में दोस्त बन गए हैं।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it