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ताल तो भोपाल ताल

'ताल तो भोपाल ताल ब़ाकी सब तलैयाँ'

ताल तो भोपाल ताल
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  • भगवत रावत

'ताल तो भोपाल ताल बाकी सब तलैयाँ'

इसी कहावत से जाना जाता था पूरे देश में भोपाल

वह तो करमजली गैस क्या फूटी चौरासी में

कि सारी दुनिया कहने लगी उसे 'गैस ट्रेजेडी वाला भोपाल'

पचास साल पहले आया जब बसने भोपाल में तो

यह पता लगा पाना मुश्किल था कि ताल के भीतर

बसा है भोपाल या भोपाल के भीतर बसा है ताल

दरअस्ल तब भोपाल का दिल और दिमाग ही हुआ

करता था भोपाल ताल

कभी कोई जब अपनी उदासी में जा बैठता उसके किनारे

तो वह ऐसे ऐसे लतीफे उसे सुनाता

कि वह हॅंसे बिना नहीं रह सकता था

और जब कोई उससे बातचीत के मूड में

उसके किनारे बैठा हो तो वह

उसे अपने ऐसे-ऐसे रहस्य बताता

कि वह हैरत में आए बिना रह नहीं सकता था

कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि कभी-कभी

देर रात गए भोपाल का ताल कमला पार्क छोड़कर

इब्राहिमपुरा और लखीमपुरा की गलियों से होता हुआ

चिन्तामणि चौक के पटियों तक पहुँच जाता था

और किसी को पता नहीं चलता था

बहरहाल, भोपाल का ताल तो आज भी है

पर जबसे उसे घेरना शुरू कर दिया ऊँचे-ऊँचे मकानों ने

तब से उसकी लहरों ने उस तरह मचलना छोड़ दिया

अब सपना-सा लगता था भोपाल का ताल

लोग अब उसे दूर से देखने आते हैं

या मशीनी बोटों पर सैर करते हैं

डोंगिया मुश्किल से दिखती है अब भोपाल के ताल पर

अब दो घड़ी उसके किनारे बैठकर उसके हाल-चाल कोई नहीं पूछता

इस दुख में कई सालों से

भदभदा से बाहर ही नहीं निकला भोपाल का ताल

आप जब भी आएँ भोपाल

मुझे मिलें ना मिलें

सारी आपाधापी छोड़कर

भोपाल के ताल के पास ज़रूर जाएँ

उसके पास बैठकर उसका हल जानें

य$कीन माने वह आपको इस तरह गले लगाएगा

कि आप भीतर से बाहर तक पूरी तरह भीग जाएँगे

और आपको पता ही नहीं चलेगा

कि कब आप मन ही मन गुनगुनाने लगे हैं —

ताल तो भोपाल ...!


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