चाय की गुमटी
आज सुबह से रूक-रूककर तेज बारिश हो रही थी। सितंबर माह का पहला सोमवार व भादो की बरखा पूरे रंग में।

भूपेन्द्र भारतीय
आज सुबह से रूक-रूककर तेज बारिश हो रही थी। सितंबर माह का पहला सोमवार व भादो की बरखा पूरे रंग में। तहसील के सामने वाली चाय की गुमटी में बैठा- नयाराम तहसीलदार की बाट देख रहा था। आज तहसील में ज्यादा भीड़ नहीं थी। दोपहर की घड़ी आ गई थी। लग रहा था जैसे सूरज देवता बादलों के पार आराम कर रहे है। अब तक तहसील में कोई ज्यादा चहलपहल नहीं। सुबह से बरस रहे भादो के कारण तहसील के आसपास वाली दुकानें भी बंद थी। कुछ ही लोग दिख रहे थे। नयाराम को अपने गाँव से तहसील आये दो घंटे बीत चुके थे। इन दो घंटों में उसने दो चाय व आठ-दस बीड़ी पी ली। नयाराम उसके हल्के के पटवारी को भी निरंतर मोबाइल लगा रहा था लेकिन पटवारी का सुबह से मोबाइल बंद आ रहा था। दो-तीन बार तहसील के चपरासी से तहसीलदार के आने के बारे में पूछ चुका था। चपरासी का एक ही जवाब रहता- “साहब क्षेत्र में दौरे पर है, कोई भरोसा नहीं कब तक आऐंगे।”
नयाराम, ‛चपरासी के एक पंक्ति के जवाब को सुनकर गर्दन लटकाते हुए फिर चाय की गुमटी की ओर चल देता।’ “वह आज की बरखा को देखकर सोच रहा था कि ऐसी बारिश में तहसीलदार साहब क्षेत्र का दौरा कैसे कर लेते है! देखो, अधिकारियों को भी कितनी परेशानियां हैं।"
नयाराम के पिता की मृत्यु हुए करीब एक वर्ष से ऊपर हो गया था, लेकिन नयाराम के पिता उसकी बातों व उनकी पुश्तैनी भूमि के कागजों में अब तक जिंदा थे। गुमटी में बैठे-बैठे उसे अपने ‛जीसाहब’ की बहुत सी बातें रह-रहकर याद आ रही थी। नयाराम अपने पिता को ‛जीसाहब’ संबोधित करके बोलता था। बारिश एक बार फिर तेज हो गई थी। बीड़ी का करीब आधा बंडल वह फूंक चुका था। मन बहलाने व समय काटने के लिए नयाराम के पास बीड़ी ही अंतिम साधन उपलब्ध था। चाय का बजट लगभग समाप्त हो चुका था। आधे दिन से ऊपर का समय बीत चुका था। चाय की गुमटी वाला नयाराम की बेचैनी को देखकर उससे बातचीत करने लगा ;-
क्यों भाई - कबसे बैठे हो ? किसका इंतजार कर रहे हो ? पटवारी-तहसीलदार या फिर किसी दलाल का...!
नयाराम बोला- अरे भाई तहसीलदार व हमारे पटवारी दोनों की बाट देख रहा हूँ। लेकिन देखो, आधा दिन से ऊपर हो गया है किसी के दर्शन नहीं है अब तक। इतनी भी बारिश नहीं हो रही है कि तहसील तक नहीं पहुंच सकते। “सरकारी अधिकारी होकर कोई जिम्मेदारी नाम की भी चीज होती है या फिर जनता जाए भाड़ में।”
चाय वाला हल्की मुस्कान के साथ बोला- अरे भाई यहां तो ऐसा ही चलता है। लगता है तुम्हें अभी तक यहां के कामकाज का ढंग पता नहीं है। यहां सीधे-सीधे काम करवाना श्रीहरि के दर्शन प्राप्त करने जैसा है भाई !
नयाराम, चायवाले को अपनी कहानी बताने लगा। उसके पिता की मृत्यु से लेकर पीछले एक वर्ष से ऊपर अपनी भूमि का मृतक नामांतरण करवाने के लिए पटवारी, तहसीलदार, चपरासी आदि के चक्कर लगा रहा था।
चायवाले ने नयाराम को एक ओर चाय देते हुए कहा कि- ‛पहले शांति से यह चाय पी लो, फिर मैं तुम्हें आगे का रास्ता बताता हूँ।'
नयाराम ने चाय पीने के बाद एक ओर बीड़ी जला ली। इसबार उसने चायवाले की ओर भी बीड़ी का बंडल बढ़ाया। चायवाले ने भी उसमे से एक बीड़ी जला ली। बीड़ी पीते हुए चायवाला कहने लगा;- देखो भाई आज का दिन तो गया। अब साहब का आना मुश्किल लगता है। लगता है साहब आज क्षेत्र के दौरे पर लंबे निकल गए है! तुम कल जल्दी आ जाना, मैं तुमको एक व्यक्ति से मिलवा दूंगा। वह तुम्हारा काम बहुत आसानी से व जल्दी कर देगा। “बस तुम्हें थोड़ा खर्चा करना होगा। चलेगा ?”
नयाराम थोड़ा चौंकते हुए उदास स्वर में बोला- लेकिन कितना भाई ?
चायवाला बोला अरे, डरो मत। ज्यादा खर्चा नहीं होगा, तुम्हारा काम कम में ही हो जाऐगा।
‛नयाराम सोच में पड़ गया।’
चायवाला, नयाराम को देखकर कहने लगा- ज्यादा विचार मत करो, कल आराम से आओ। फिर बात करते हैं। अब गाँव जाओ बारिश ओर हो सकती है। इस बार भादो अच्छा बरस रहा है।
नयाराम एक नई उम्मीद के साथ अपने गाँव को चलने के लिए उठा। उसने चायवाले को चाय के लिए पचास का नोट दिया। चायवाला बोला- “अरे भाई कल करते है सारा हिसाब, आज रख लो यह नोट। अपने बच्चों के लिए बाजार से कुछ खाने की चीज ले जाना।”
नयाराम एक ओर बीड़ी जलाते हुए, ‛कल आता हूँ कहते हुए चायवाले से राम राम करके गाँव जाने के लिए बाजार की ओर चल दिया।’
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