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लघुकथा- अविश्वास

एक आदिवासी गांव। एसडीओ अपनी टीम और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ वहां मौजूद थे।

लघुकथा- अविश्वास
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लघुकथा- अविश्वास

रविशंकर सिंह

एक आदिवासी गांव। एसडीओ अपनी टीम और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ वहां मौजूद थे। उन्होंने गांववालों की ओर देखकर मृदु स्वर में कहा, ‘आप सबको साक्षरता अभियान के तहत पढ़ना-लिखना सिखाया गया है, है न?’

सामाजिक कार्यकर्ताओं आत्मविश्वास से कहा, ‘जी हां, सर! हमने यहां के कई आदिवासी भाइयों और बहनों को अक्षर ज्ञान दिया है।

एसडीओ ने मुस्कुराकर सिर हिलाते हुए कहा, ‘बहुत अच्छा! तो क्यों न हम इसकी पुष्टि कर लें?’ सरकारी कर्मचारी आगे बढ़े। उन्होंने आदिवासियों को कागज और कलम थमा दिया। कुछ पल बीते। फिर कुछ और पल। कोई नहीं लिख रहा था।

एसडीओ ने असमंजस भरी नजरों से गांववालों को देखा। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, ‘अगर आप लोग कागज पर नहीं लिखना चाहते तो कोई बात नहीं। लीजिए, ये लकड़ी के टुकड़े हैं। जमीन पर अपना नाम और पता लिखिए।’

इस बार कोई हिचकिचाहट नहीं हुई। गांव के लोगों ने झटपट लकड़ी के टुकड़े उठाए और जमीन पर अपना नाम-पता उकेर दिया।

एसडीओ ने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘….तो आपको सच में लिखना आता है! फिर आपने कागज पर लिखने से मना क्यों किया?’

भीड़ से एक बूढ़ा आदमी आगे बढ़ा। वह शांत लेकिन दृढ़ स्वर में बोला, ‘क्योंकि हमें आप लोगों पर विश्वास नहीं है।’

एसडीओ चौंक गए, ‘क्या मतलब?’

बूढ़े की आंखें गीली हो गईं, ‘आप लोग कोरे कागज पर हमारा नाम-पता लिखवा लेते हैं, फिर उसी कागज के सहारे हमारा जंगल, हमारी जमीन और हमारा पानी छीन लेते हैं। अब वह गलती नहीं करेंगे।’

एसडीओ के पास उत्तर नहीं था।

सालडांगा, बरदही रोड, पोस्ट -रानीगंज, जिला -पश्चिम बर्धमान, पश्चिम बंगाल-713347 मो.7908569540

(वागर्थ से साभार)


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