लोक ही मूल है, लोक ही सनातन : विजया भारती
भारतीय संस्कृति की आत्मा में रचा-बसा लोक और उसकी पुकार बनकर उभरीं देश की जानी मानी लोक गायिका विजया भारती से लोक संगीत और सनातन संस्कृति पर एक विशेष साक्षात्कार

- शत्रुघ्न प्रसाद
गीतों की गूंज से भारत की आत्मा तक
'पटना के महंगी पनवा, खाइब गमकदार होज्'
'उग हो सुरज देव, अरघ के बेरियाज्'
'मोरे राजा केंवड़िया खोल, रस के बूनी पड़ेज्'
'दुनिया में छा गये बिहारी रे, बोलो जय जय बिहारी'
ये लोक गीत भारत की आत्मा की धड़कन हैं। और इन धड़कनों को चार दशकों से स्वर दे रही हैं—भारतीय लोक संगीत की शीर्ष साधिका, विजया भारती।
संगीत और हिंदी में डबल एमए व विद्यावाचस्पति विजया भारती देश की जानी मानी लोकगायिका, एंकर, कवयित्री व लोक संस्कृति की मर्मज्ञ हैं। आकाशवाणी व दूरदर्शन की टॉप ग्रेड कलाकार विजया ने देश के कोने-कोने से लेकर 20 से अधिक देशों में भारतीय लोक संस्कृति का परचम लहराया है।
तमाम टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रम के अलावा आपने महुआ टीवी पर लगातार चार साल तक प्रतिदिन 'बिहाने बिहाने' कार्यक्रम की एंकरिंग कर रिकार्ड बनाया है। अनेकों पुरस्कारों के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 'कुपोषण' और 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान में शामिल होने के लिए प्रेरित और निमंत्रित भी किया।
बिहार में जन्मी और मुंबई में पली-बढ़ी विजया भारती ने हिंदी, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका, मगही के अलावा राजस्थानी, हरियाणवी, संथाली, असमिया आदि अनेक भाषाओं में गायन कर भारतीय लोकगायिकी को वैश्विक पहचान दिलाई है। वे केवल गायिका नहीं, बल्कि लोक संस्कृति की विचारक, रचनाकार और सांस्कृतिक नीति की सजग प्रहरी हैं।
प्रश्न: लोकगीतों को आप सनातन से कैसे जोड़ती हैं?
वेदों में कहा गया है—'संगीतं ब्रह्म स्वरूपं।' लोकगीतों में वही छंद और स्वर सहज रूप से बहते हैं जो ऋग्वेद के मंत्रों में हैं। लोक ही सत्य है और सनातन भी। शास्त्रीय संगीत उसका परिष्कृत रूप है, पर मूल तो लोक ही है।
प्रश्न: छठ गीतों में आपकी विशेष पहचान रही है। कुछ उदाहरण देंगी?
इस साल मेरे दो छठगीत रिलीज हुए हैं। इंडियन फोक स्टार विजया भारती के नाम से मेरे यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध इन दोनों गीतों के बोल भी मेरे लिखे हैं। एक भोजपुरी और एक मैथिली में। इससे पहले मेरे गाये अनगिनत छठ गीत टी सीरीज और अन्य कंपनियों और चैनलों से रिलीज हुए, और यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। मैंने इन्हें न केवल गाया, बल्कि कई गीत स्वयं लिखे और संगीतबद्ध भी किए हैं।
प्रश्न: आपने मंचों से लेकर टीवी और फिल्मों तक अपनी कला का विस्तार किया है। कुछ अनुभव साझा करें?
मैंने अमिताभ बच्चन, अमरीश पुरी, गोविंदा, यश चोपड़ा, मनोज बाजपेयी जैसे दिग्गजों के साथ मंच साझा किया है। ICCR के माध्यम से रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, त्रिनिडाड जैसे 22 देशों में कार्यक्रम किए। त्रिनिडाड के एक अखबार ने मेरे कार्यक्रम को 'Electrifying Bharati' कहा—यह मेरे लिए गर्व का क्षण था।
प्रश्न: सांस्कृतिक राजनीति को लेकर आपने मुखरता दिखाई है। क्या कहना चाहेंगी?
कुछ कलाकार राजनीतिक संबंधों के बल पर मंच तय करते हैं, यह प्रतिभा के साथ अन्याय है। मुझे राजनीति से उतना ही सरोकार है जितना किसी आम नागरिक को। मैंने कभी किसी संबंध से लाभ नहीं लिया, और ना ही चाहा।
प्रश्न: लोक संस्कृति के लिए आपकी नीति-सुझाव क्या हैं?
कोविड के बाद लोक कलाकारों के कार्यक्रमों में भारी गिरावट आई है। दूरदर्शन को लोक संगीत के लिए समर्पित चैनल आरक्षित करना चाहिए। NEP 2020 में लोक-संस्कृति को शिक्षा से जोड़ने की बात है, पर क्रियान्वयन नहीं दिखता। एक समर्पित सांस्कृतिक नीति बननी चाहिए।
प्रश्न: आपकी लोकगायिकी का सार क्या है?
'विशुद्ध लोक संगीत मन को माटी की खुश्बू से भर देता है।' यह केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक मनोविज्ञान का सार है।
प्रश्न: भारत की सांस्कृतिक एकता के लिए आपकी पुकार क्या है?
उत्तर के लोक को दक्षिण से, पश्चिम के लोक को पूर्व से जोड़ना भारतीयता को बढ़ावा देगा। भारत की पुकार है—लोक का संरक्षण।
प्रश्न: आज कई कलाकार बिहार में चुनाव लड़ रहे हैं। क्या कहेंगी?
मुझे राजनीति से उतना ही सरोकार है जितना किसी आम नागरिक को। मैं उन सभी कलाकारों को शुभकामनाएं देती हूँ। पर यह भी सत्य है कि कई मंच राजनीतिक संबंधों से तय होते हैं, जो प्रतिभा के साथ अन्याय है।
प्रश्न: भारत की माटी से विश्व मंच तक आपने कहां-कहां प्रस्तुतियां दी हैं?
बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, गुजरात, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हजारों प्रस्तुतियाँ दी हैं। मुंबई में छठ के अवसर पर मेरे कार्यक्रम लगातार 17 साल हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मैंने 22 देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।
प्रश्न: सुरों की साधना से लेकर फिल्म, मंच और बॉलीवुड में आपका क्या योगदान रहा है?
मैंने रवींद्र जैन के संगीत निर्देशन में 'धर्मयुद्ध', 'गाँव आजा परदेसी' जैसी फिल्मों में गाया है। 'टूटे ना सनेहिया के डोर' में अभिनय भी किया है। जुहू बीच पर अमिताभ बच्चन, शारदा सिन्हा, मनोज तिवारी, पूनम ढिल्लो, रवीन्द्र जैन, जितेन्द्र, उदित नारायण जैसे कलाकारों के साथ मंच साझा किया है।
प्रश्न: एक लोक गायिका के तौर पर आपके लिए भारत की पुकार और लोक का संकल्प क्या है?
यह अमृत काल है। इस समय भारत को चाहिए कि वह लोक संस्कृति को केवल उत्सवों की शोभा नहीं, बल्कि नीति का हिस्सा बनाए। मेरी पुकार है—'भारत की पुकार है, लोक का संरक्षण हो, संवर्धन हो और बेहतर प्रोत्साहन भी मिले।'


