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माँ का दिल (बांग्ला कहानी)

किससे बातें हो रही थीं

माँ का दिल (बांग्ला कहानी)
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  • जॉन मार्टिन

किससे बातें हो रही थीं?''

''माँ का फोन था।''

''क्यों बोल रही थीं?''

''कुछ नहीं, बस यों ही...समय पर खाना खा लेने, समय पर सोने की हिदायतें और...''

''माँ भूल जा रही हैं कि अब हम शादीशुदा हैं, हमारा लाइफ रुटीन बदल चुका है, हमारी जिंदगी में कई बदलाव आ चुके हैं। बच्चोंवाली हिदायतों की जरूरत नहीं।''

''अभी तुम नहीं समझोगी माँ का दिल!''

''ऊँह!'' वह झटके से उठकर जूठे प्यालों को किचन में रखने चली गई। शीला की इस हरकत पर वह मुसकराकर अखबार के पन्ने पलटने में मशरूफ हो गया।

बरसों बाद।

''देख बेटा, खाने-पीने पर ध्यान देना, रात को ज्यादा जागना मत और हाँ, रात को सोने से पहले दूध ले लेना, सुबह उठकर थोड़ी कसरत कर लेना। इससे सारा दिन तरोताजा महसूस करोगे और पढ़ाई में भी ध्यान लगा रहेगा। और सुन बेटा...''

''बस भी करो शीला! रोज-रोज इतनी सारी हिदायतें देती रहती हो। तुम भूल जा रही हो कि हमारा बेटा अब बच्चा नहीं रहा। इंजीनियरिंग कॉलेज का स्टूडेंट है। उसमें मैच्योरिटी आ चुकी है।''

शीला ने उसे भरपूर नजरों से देखा, च्च्तुम नहीं समझ सकते माँ का दिल!''

बरसों पहले वाली मुसकराहट उसके होंठों पर चस्पाँ हो गई। वह रिमोट से खबरिया चैनल ढूँढ़ने लगा।


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