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साहित्य, संस्कृति और संवेदना के प्रतीक थे 'कहानी के जादूगर' चन्द्रधर शर्मा गुलेरी

साहित्य जगत के ध्रुव तारा चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी के उन चमकते सितारों में से एक हैं, जिन्होंने अपने अल्प जीवनकाल में ही अमिट छाप छोड़ी

साहित्य, संस्कृति और संवेदना के प्रतीक थे कहानी के जादूगर चन्द्रधर शर्मा गुलेरी
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नई दिल्ली। साहित्य जगत के ध्रुव तारा चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी के उन चमकते सितारों में से एक हैं, जिन्होंने अपने अल्प जीवनकाल में ही अमिट छाप छोड़ी। आधुनिक हिंदी साहित्य के 'द्विवेदी युग' के इस महान साहित्यकार ने अपनी रचनाओं विशेषकर कहानी 'उसने कहा था' के माध्यम से कथा साहित्य को नई दिशा दी। उनकी रचनाएं आज भी पाठकों के दिलो-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ती हैं।

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 7 जुलाई 1883 को जयपुर में हुआ, लेकिन उनके पूर्वज हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के गुलेर गांव से थे। उनके पिता पंडित शिवराम शास्त्री, एक सम्मानित ज्योतिषी थे जो जयपुर में राज सम्मान प्राप्त कर बसे थे। गुलेरी को बचपन से ही संस्कृत, वेद और पुराणों का वातावरण मिला, जिसने उनकी साहित्यिक रुचि को पोषित किया।

मात्र 10 वर्ष की आयु में उन्होंने संस्कृत में भाषण देकर विद्वानों को आश्चर्यचकित कर दिया था। उनकी शिक्षा जयपुर के महाराजा कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में हुई, जहां उन्होंने प्रथम श्रेणी में सफलता प्राप्त की। संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, लैटिन, मराठी, बंगाली और अन्य भाषाओं में उनकी विद्धता ने उन्हें बहुमुखी प्रतिभा का धनी बनाया।

गुलेरी का साहित्यिक योगदान उनकी कहानियों, निबंधों, व्यंग्यों और समीक्षाओं में देखा जा सकता है। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना 'उसने कहा था' (1915) को हिंदी की पहली आधुनिक कहानी माना जाता है। यह कहानी प्रेम, त्याग और मानवीय संवेदनाओं का ऐसा चित्रण प्रस्तुत करती है कि जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। इसके अतिरिक्त उनकी अन्य कहानियां जैसे 'सुखमय जीवन' और 'बुद्धू का कांटा' भी उनकी कथात्मक शैली और भाषा की सशक्तता को दर्शाती हैं।

गुलेरी की लेखन शैली में खड़ी बोली का सहज और आत्मीय प्रयोग दिखता है, जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों का भी समावेश है। उनकी भाषा में अनौपचारिकता और पाठक से सीधा संवाद स्थापित करने की कला थी।

कहानीकार के रूप में उनकी ख्याति के साथ-साथ गुलेरी एक कुशल निबंधकार, समीक्षक और पत्रकार भी थे। उन्होंने 'समालोचक' पत्रिका का संपादन किया और नागरी प्रचारिणी सभा के कार्यों में योगदान दिया। उनके निबंध इतिहास, दर्शन, पुरातत्त्व, भाषा विज्ञान और धर्म जैसे गंभीर विषयों पर हैं।

जयपुर की जंतर-मंतर वेधशाला के संरक्षण में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। मात्र 39 वर्ष की आयु में पीलिया के कारण 12 सितंबर 1922 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और रचनाएं आज भी प्रेरणादायी हैं। गुलेरी ने हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के साथ-साथ आधुनिक दृष्टिकोण और मानवतावादी मूल्यों को स्थापित किया। उनकी विरासत हिंदी साहित्य के लिए एक अमूल्य धरोहर है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।


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