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प्रेमानंद महाराज को बेटे की तरह मानते हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य : पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री

बागेश्वर धाम के प्रमुख पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने संतों के बीच आपसी मतभेदों को सनातन धर्म के लिए नुकसानदेह बताया

प्रेमानंद महाराज को बेटे की तरह मानते हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य : पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री
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मुंबई। बागेश्वर धाम के प्रमुख पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने संतों के बीच आपसी मतभेदों को सनातन धर्म के लिए नुकसानदेह बताया। भिवंडी के बागेश्वर सनातन मठ में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि कुछ लोग जानबूझकर संतों के बीच विवाद पैदा कर रहे हैं, जिससे सनातन धर्म की छवि को ठेस पहुंच रही है।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य और बाबा प्रेमानंद महाराज पर बात करते हुए बागेश्वर धाम के प्रमुख पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा, "सोशल मीडिया पर प्रेमानंद महाराज और जगद्गुरु रामभद्राचार्य को लेकर एक मुद्दा खूब वायरल हो रहा है। मैं इस मुद्दे पर यही कहूंगा कि एक महापुरुष (प्रेमानंद महाराज) ने भागती, दौड़ती, बिछड़ती पीढ़ी को भजन से जोड़ा, तो वहीं जगद्गुरु रामभद्राचार्य गुरुदेव ने सुप्रीम कोर्ट में खड़े होकर रामलला के पक्ष में बयान देकर राम मंदिर निर्माण में अहम योगदान दिया।"

धीरेंद्र शास्त्री ने गुरु रामभद्राचार्य का बचाव करते हुए कहा, "हमारे गुरुदेव कुछ छिपाते नहीं, जो मन में है, वही बोलते हैं। उनके मन में कोई गलत भावना नहीं है।"

उन्होंने जोर देकर कहा कि संतों के बीच मतभेदों को सार्वजनिक करना सनातन धर्म को कमजोर करता है।

शास्त्री ने कहा, "हमें संतों की बात को सोशल मीडिया या मीडिया का विषय नहीं बनाना चाहिए। यह आदर का विषय है। संतों की लड़ाई दिखाने से सिर्फ सनातन का ही नुकसान होगा।"

उन्होंने बताया कि रामभद्राचार्य ने खुद कहा है कि वे प्रेमानंद महाराज को अपने पुत्र की तरह मानते हैं और उनके प्रति कोई ईर्ष्या नहीं रखते। प्रेमानंद महाराज ने भी रामभद्राचार्य की बात पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन कुछ लोग जानबूझकर संतों के बीच विवाद पैदा कर रहे हैं, जिससे सनातन धर्म की छवि को ठेस पहुंच रही है।

जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने संत प्रेमानंद महाराज पर टिप्पणी की थी, जिसे लेकर संत समाज में नाराजगी देखने को मिली थी।

हालांकि, विवाद बढ़ने के बाद स्वामी रामभद्राचार्य ने सफाई पेश की थी। उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनकी टिप्पणी का गलत अर्थ निकाला गया और उनका किसी भी संत का अनादर करने का कोई इरादा नहीं था।


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