आसपास की दुनिया में विचरण का मौका देती एक किताब
लेखक शिवनारायण गौर द्वारा लिखित किताब 'बारह सौ की बाटी और अन्य किस्से' चौदह रोचक और सरस किस्सों का एक संग्रह है

लेखक शिवनारायण गौर द्वारा लिखित किताब 'बारह सौ की बाटी और अन्य किस्से' चौदह रोचक और सरस किस्सों का एक संग्रह है। गौरतलब है कि हाल ही में इस किताब को 'चिल्ड्रन बुक आफ द ईयर अवार्ड 2025', (Age group 8-12) एवं लेखक को चिल्ड्रन बुक क्रियेटर अवार्ड से रूम टू रीड इंडिया द्वारा नवाजा गया है।
यह पुस्तक पाठकों का मनोरंजन तो करती ही है साथ ही उन विशिष्ट और मौलिक किरदारों से भी परिचित कराती है, जो सामाजिक अपेक्षाओं की परवाह किए बिना अपने ढंग से जीवन जीते हैं। इन किस्सों में हास्य है, थोड़ी सनक है और भरपूर मौलिकता है। किस्सों का हर पात्र कभी हँसाता है, कभी चौंकाता है और कभी सोचने पर मजबूर कर देता है। अगर हम अपने आसपास ध्यान से देखें तो ऐसे कई लोग दिखाई देते हैं जिनमें ऐसी ही मौलिकता झलकती है। इन किरदारों की ईमानदारी, सरलता और विशिष्टता उन्हें यादगार बना देती है। यह संकलन हमारे समय और समाज का एक जीवंत रेखाचित्र प्रस्तुत करता है, जो इस किताब की एक बड़ी खासियत है।
किताब के किस्सों में स्टोरीटेलिंग की विशेष ताकत (महत्ता) दिखाई देती है। इन्हें सुनाए जाने पर ये और भी प्रभावशाली लगते हैं। हर बार सुनते या पढ़ते समय कोई नई परत खुलती है, नई भावनाएँ सामने आती हैं, और पाठक खुद को इन किरदारों के बीच अनुभव करता है। यही विशेषता इस किताब को हमारी समृद्ध मौखिक परंपरा से जोड़ती है और उसे एक नया रूप देती है। इन किस्सों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे कल्पना से नहीं, बल्कि लेखक के अपने अनुभवों और आसपास के जीवन की गहराई से उपजी हैं। प्रत्येक किस्सा किसी न किसी विशिष्ट पात्र पर केंद्रित है, जिसकी सोच, समझ और जीवन दृष्टि पाठक को सहज ही आकर्षित करती है। किस्सों में हास्य, ताजगी और गहराई का सुंदर संतुलन दिखाई देता है। किताब का शीर्षक 'बारह सौ की बाटी और अन्य किस्से' खुद में जिज्ञासा का केंद्र है। जो अंत में एक मनोरंजक मोड़ के साथ पाठक को आनंदित करता है। संकलन में शामिल किस्से बच्चों और बड़ों दोनों को समान रूप से आकर्षित करते हैं। शिक्षकों और अभिभावकों के लिए यह पुस्तक विशेष रूप से उपयोगी है, क्योंकि यह न केवल बच्चों के मौखिक और सुनने का कौशल विकसित करती है, बल्कि भाषा और अभिव्यक्ति के विकास में भी सहायक सिद्ध होती है। यह पाठकों को उनके सामाजिक व पारिवारिक परिवेश से जोड़ती है।
नीलेश गहलोत ने इस किताब में बहुत खूबसूरत चित्र बनाए हैं! चित्रों के जरिये किस्से और अधिक रोचकता के साथ प्रस्तुत होते हैं। मुखपृष्ठ पर बना चित्र 'सोनी जी की साइकिल' नामक किस्से से संबंधित है, जो एक रोचक ग्रामीण पात्र की मनमोहक छवि को प्रस्तुत करता है। हालांकि 'छपका दादा का सौ का नोट' वाले किस्से में नए नोट का चित्र उपयोग किया गया है, जबकि पुराने नोट का चित्र प्रयोग करने से प्रयुक्त चित्र की रोचकता और भी बढ़ जाती।
आजकल इस विधा की किताबें बहुत कम दिखती हैं।
यह किताब सामाजिक विविधता, मौलिकता और मानवीय व्यवहार की जटिलताओं से बच्चों व युवाओं को सहजता से परिचित कराती है। यह किताब पाठकों को न केवल बाँधती है, बल्कि उन्हें कल्पनाशील और सहानुभूतिशील भी बनाती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारे गाँवों और समाजों में अनुभवों का जो खजाना छिपा है, उसे समझना, सहेजना और अगली पीढ़ी तक पहुँचाना बेहद जरूरी है। लेखक शिवनारायण गौर का यह प्रयास निश्चित ही भाषा शिक्षण और किस्सा की परंपरा को एक नया आयाम प्रदान करता है।


