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भगवान शिव की उदारता का प्रतीक मम्मियूर मंदिर

बाबा भोलेनाथ की महिमा का बखान हर ग्रंथ में किया गया है। सृष्टि की सुरक्षा के लिए ही उन्होंने हलाहल का पान किया था

भगवान शिव की उदारता का प्रतीक मम्मियूर मंदिर
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त्रिशूर। बाबा भोलेनाथ की महिमा का बखान हर ग्रंथ में किया गया है। सृष्टि की सुरक्षा के लिए ही उन्होंने हलाहल का पान किया था।

केरल के त्रिशूर में महादेव का ऐसा ही मंदिर स्थापित है, जो उनकी उदारता का प्रतीक है। हम बात कर रहे हैं मम्मियूर महादेवा मंदिर की, जहां उन्होंने अपना स्थान भगवान श्री कृष्ण को दे दिया था।

त्रिशूर जिले के गुरुवायूर में मम्मियूर महादेवा मंदिर स्थित है, जिसे परशुराम द्वारा स्थापित 108 शिवालयों में से एक माना जाता है। यह मंदिर कई मायनों में खास है। यह पवित्र शहर गुरुवायूर के सबसे प्राचीन मंदिरों में शामिल है और इसके बिना गुरुवायूर की पवित्र यात्रा को अधूरा माना जाता है।

अगर भक्त श्री कृष्ण के श्री गुरुवायूर मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं, तो उन्हें मम्मियूर महादेवा मंदिर के दर्शन भी करने पड़ते हैं। प्राचीन समय से ही परंपरा चली आ रही है कि श्रीकृष्ण के श्री गुरुवायूर मंदिर के दर्शन तभी पूरे माने जाएंगे, जब मम्मियूर महादेवा मंदिर के दर्शन होंगे।

इस परंपरा का चलन मंदिर की पौराणिक कथा से जुड़ा है। पौराणिक कथा की मानें तो जब द्वारका नगरी डूब गई थी और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा पानी में डूब गई थी, तब भगवान गुरु और वायु देव को आदेश दिया गया था कि वे दक्षिण भारत में पवित्र जगह पर मंदिर की स्थापना करें। भगवान गुरु और वायु देव त्रिशूर के गुरुवायूर में पहुंचते हैं, जहां पहले से महादेव तपस्या में लीन थे।

आने का कारण जानकर महादेव जिस स्थान पर तपस्या कर रहे थे, उस स्थान को उन्होंने श्री कृष्ण को भेंट स्वरूप दे दिया और खुद किसी दूसरी जगह पर जाकर साधना में लीन हो गए। भगवान शिव की इसी महिमा और उदारता की वजह से मंदिर का नाम मम्मियूर महादेवा मंदिर पड़ा। मम्मियूर का अर्थ है महिमा। जिस स्थान को भगवान शिव ने छोड़ा, वहां पर श्री गुरुवायूर मंदिर बना।

श्री गुरुवायूर मंदिर और श्री मम्मियूर मंदिर में खास संबंध है। गुरुवयूर श्रीकृष्ण मंदिर के थंथरी (पुजारी) और मम्मियूर मंदिर में भी थंथरी का पद समान है। दोनों मंदिरों में लगभग सभी पूजाएं और अनुष्ठान एक समान किए जाते हैं।


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