नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति और वेतन में अनियमितताएं बरतीं गयीं
बौद्धिक ,दाशर्निक एवं आध्यात्मिक अध्ययन के अंतरराष्ट्रीय केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति और विशेष कार्याधिकारी की नियुक्ति और वेतन में अनियमितताएं बरतीं गयीं
नयी दिल्ली। बौद्धिक ,दाशर्निक एवं आध्यात्मिक अध्ययन के अंतरराष्ट्रीय केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति और विशेष कार्याधिकारी की नियुक्ति और वेतन में अनियमितताएं बरतीं गयीं तथा अब तक विश्वविद्यालय परिसर का निर्माण कार्य नहीं शुरू हुआ। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद में पेश ताजा रिपोर्ट के अनुसार में अब तक विश्वविद्यालय नियमित संचालक मंडल का गठन नहीं किया गया तथा अकादमिक स्टाफ की नियुक्ति के लिए नियम भी नहीं बनाये गये हैं।
विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों का पंजीकरण भी अनुमान से बहुत कम रहा है। विदेश मंत्रालय के तहत बिहार के राजगीर में विश्वविद्यालय की स्थापना 2010 में बाकायदा एक कानून पारित करके की गयी। कानून की धारा 15(1) के अनुसार विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति विजिटर यानी राष्ट्रपति संचालक मंडल की सिफारिश पर कम से कम तीन लोगों के एक पैनल में से करेगा।
कैग ने अपनी पड़ताल में पाया कि संचालक मंडल की बजाय नालन्दा परामर्शदाता समूह ने कुलपति के रूप में तीन के बजाय डा़ गोपा सभरवाल के रूप में एक ही व्यक्ति के नाम की सिफारिश कर दी।
परामर्शदाता समूह नवंबर 2010 में संचालक मंडल में बदल दिया गया था और उसे कुलपति के नामों की सिफारिश की शक्ति भी दी गयी लेकिन परामर्शदाता समूह ने यह शक्ति मिलने से चार माह पहले ही अगस्त 2010 में डा़ सभरवाल के नाम की सिफारिश कर दी थी।
इस प्रकार कुलपति के रूप में डा़ सभरवाल की नियुक्ति में अनियमितता बरती गयी। इसके बाद संचालक मंडल ने बिना किसी लिखित रिकाॅर्ड के मनमाने तरीके से उनका वेतन दो लाख रुपये प्रति माह से बढाकर साढे तीन लाख रुपये कर दिया। विश्वविद्यालय में विशेष कार्य अधिकारी (विश्वविद्यालय विभाग) के पद का प्रावधान नहीं था। इसके बावजूद अनियमितता बरतते हुए डाॅ. अंजना शर्मा की दो लाख रूपये मासिक वेतन पर इस पद पर नियुक्ति की गयी।
बिहार सरकार ने विश्वविद्यालय परिसर के लिए 2011 में ही 450 एकड़ जमीन आवंटित कर दी थी तथा केंद्र ने इस परियोजना के वास्ते 2010 से 2021 तक के लिए 2727 करोड़ रुपये का आवंटन भी कर दिया था लेकिन मार्च 2016 तक परिसर की सिर्फ चहारदीवारी का ही निर्माण हुआ। कैग ने चहारदीवारी के निर्माण और परिसर के पहले चरण के निर्माण की निविदा में भी अनियमितता पायी है।


