आपदा में एक और अवसर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अपने आवास पर भारत के आउटरीच कार्यक्रम के लिए कई देशों की यात्रा करने वाले प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से मुलाकात की

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अपने आवास पर भारत के आउटरीच कार्यक्रम के लिए कई देशों की यात्रा करने वाले प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से मुलाकात की। फिलहाल यह कहा नहीं जा सकता कि प्रधानमंत्री के साथ प्रतिनिधिमंडलों की यह मुलाकात अनौपचारिक थी या औपचारिक। क्योंकि कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने खुद कहा है कि यह बिल्कुल औपचारिक मुलाकात नहीं थी। हम लोगों ने जो रिपोर्ट प्रधानमंत्री को दी, वो उन्होंने प्रस्तुत भी नहीं की। गौर करने वाली बात यह है कि शशि थरूर ने यह जिक्र खेद के साथ नहीं बल्कि प्रसन्नता के साथ किया।
प्रधानमंत्री के आवास पर हुए इस मेलजोल कार्यक्रम का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें श्री मोदी के बगल में शशि थरूर दिखाई दे रहे हैं, कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी भी प्रधानमंत्री से बातचीत करते दिख रहे हैं, वहीं, आनंद शर्मा और सलमान खुर्शीद के साथ श्री मोदी मुस्कुराते हुए मिलते नजर आ रहे हैं। पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के साथ तो ठहाके लगाते तस्वीरें आई हैं। चंद कांग्रेस नेताओं से इस अंदाज में प्रधानमंत्री मोदी क्यों मिल रहे हैं, यह सवाल अब उठने लगे हैं। हो सकता है कि उनकी अन्य दलों के नेताओं से भी इसी तरह हंसी-खुशी भेंटवार्ता हुई हो, लेकिन उनके वीडियो-तस्वीरें इतने वायरल क्यों नहीं किए गए, ये भी सोचने वाली बात है। वैसे सबसे अधिक विचारणीय पहलू तो यह है कि देश के मुखिया को इतने सांसदों के साथ हंसी-ठहाके लगाते, खाते-पीते देखकर पहलगाम पीड़ितों के दिलों पर क्या बीत रही होगी। वे तो अब तक इस इंतजार में थे कि आतंकवादियों को धरती के आखिरी छोर तक जाकर पकड़ कर लाने का ऐलान करने वाले श्री मोदी अपने वादे को पूरा करेंगे। लेकिन डेढ़ महीने बाद पीड़ितों के जख्म तो हरे ही हैं, और ऐसे में सरकारी हंसी-ठट्टा उनके जख्मों पर नमक के समान लग रहा होगा।
पाठक जानते हैं कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद 6-7 मई की आधी रात में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर प्रारंभ किया था, जो 10 मई को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा युद्ध विराम की सूचना के बाद समाप्त कर दिया गया। हालांकि प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री यह कह चुके हैं कि ऑपरेशन सिंदूर अभी बंद नहीं हुआ है, लेकिन इसके तहत आगे और क्या कार्रवाई हुई, इसकी कोई जानकारी सामने नहीं आई है। राष्ट्रपति ट्रंप की तरफ से युद्धविराम की सूचना पहले कैसे आई, क्या अमेरिका ने वाकई भारत और पाकिस्तान के संबंधों में दखलंदाजी की है। क्या यह शिमला समझौते का उल्लंघन नहीं है, जिसमें यह करार हुआ था कि दोनों देशों के बीच किसी भी मामले में तीसरे पक्ष को नहीं आने दिया जाएगा। अगर पाकिस्तान ने इसका उल्लंघन किया तो क्या भारत भी उसी रास्ते पर चल रहा है। क्या नरेन्द्र मोदी ने अपने पूर्ववर्ती शासकों की बनाई विदेश नीति का त्याग कर कोई नयी विदेश नीति बनाई है, ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब की अपेक्षा सरकार से थी। लेकिन प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री ने इस बारे में कुछ नहीं कहा। बल्कि देश को बताया गया कि अब सात प्रतिनिधिमंडल अलग-अलग देशों में जाकर आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख की जानकारी देंगे। ऑपरेशन सिंदूर क्यों करना पड़ा, किस तरह पाकिस्तान की जमीन पर आतंकवादियों को पनाह दी जाती है, इस बारे में दुनिया को आगाह करेंगे। खास बात यह रही कि इन प्रतिनिधिमंडलों में सभी दलों के लोग शामिल थे।
सात प्रतिनिधिमंडलों में नेतृत्व की कमान रविशंकर प्रसाद, बैजयंत पांडा, संजय कुमार झा, कनिमोझी करुणानिधि, सुप्रिया सुले, शशि थरूर और श्रीकांत एकनाथ शिंदे को सौंपी गईं। इनके नेतृत्व में 51 नेताओं और 8 राजदूतों ने 33 देशों में जाकर भारत सरकार का पक्ष रखा। एकबारगी देखने पर यह पहल ठीक लगी कि नरेन्द्र मोदी ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर सभी दलों को साथ लेने, बल्कि नेतृत्व करने का अवसर भी दिया। लेकिन गहराई से सोचें तो इसके जरिए श्री मोदी ने एक बड़ा खेल करने की कोशिश की।
प्रतिनिधिमंडल को भेजकर वे खुद देश को जवाब देने से बचते रहे। उधर कांग्रेस के ऐसे सांसदों को प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया गया जो आसानी से भाजपा के दबाव में आ सकते हैं। इसके प्रमाण भी सामने आ गए। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे और वे लगभग हर दिन जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को लेकर झूठी बातें प्रसारित करते रहे। गलत दस्तावेजों को ऐतिहासिक तथ्य बताकर पोस्ट करते रहे, यहां तक कि मंगलवार रात जब प्रधानमंत्री आवास पर सारे लोग मौजूद थे, उस समय भी निशिकांत दुबे ने एक पोस्ट में विदेश नीति का कबाड़ा करने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। श्री मोदी के भेजे गए कांग्रेस सांसदों में से एक ने भी इसका प्रतिकार नहीं किया, श्री दुबे की आलोचना नहीं की, प्रधानमंत्री के सामने आपत्ति नहीं जताई कि एक तरफ आप सारे दलों को साथ होने की बात कर रहे हैं और आपके सांसद इस तरह गलतबयानी कर रहे हैं। सवाल ये है कि क्या श्री मोदी अब कांग्रेस में फूट डलवाने की कोशिश में हैं। पिछले 11 सालों की उनकी उपलब्धियों में एक खास बात तो यह भी है कि उन्होंने कई कांग्रेस दिग्गजों को भाजपा में शामिल करवा लिया है।
अब मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को सोचना होगा कि लंगड़े और बारात के घोड़ों को वे कैसे अलग करें।
रहा सवाल आउटरीच कार्यक्रम का, तो उसकी सार्थकता तब होती जब पाकिस्तान विश्व में अलग-थलग दिखाई देता। फिलहाल ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। श्री मोदी की विदेश नीति की विफलता तो तभी दिख गई जब उन्हें ऐसे प्रतिनिधिमंडल विदेश भेजने पड़े, अगर उनके नेतृत्व की दुनिया कायल होती तो अमेरिका समेत तमाम देश भारत और पाकिस्तान को एक ही पलड़े पर नहीं रखते। अब भी अमेरिकी राष्ट्रपति पाक के नेतृत्व को मजबूत बता रहे हैं और यह तब हुआ जब शशि थरूर के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल अमेरिका में ही था। श्री मोदी को दुनिया को संदेश देना था तो संसद का सत्र बुलाते, जितना खर्च अभी हुआ है, उससे एक चौथाई में ही मकसद पूरा हो जाता। जो बचत होती उसका उपयोग आतंकवाद से मिले जख्मों पर मलहम लगाने में किया जा सकता था। लेकिन ऐसा लग रहा है कि मोदी सरकार को अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए आपदा में एक और अवसर मिल गया है।


