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निर्भया कांड के 10 साल बाद भी भय का माहौल

दस साल पहले चलती बस में युवा महिला के साथ क्रूर गैंगरेप और हत्या ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था. इस कांड ने भारत में यौन हिंसा की उच्च दर की ओर ध्यान भी आकर्षित किया था

निर्भया कांड के 10 साल बाद भी भय का माहौल
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23 साल की ज्योति सिंह और उनके दोस्त 16 दिसंबर 2012 की शाम को बस में सवार हुए. ज्योति पर बेरहमी से हमला किया गया, लोहे की रॉड से मारा-पीटा गया और सामूहिक बलात्कार किया गया. उसके बाद ज्योति को सड़क किनारे फेंक दिया गया. हालांकि, ज्योति सिंह हमलावरों की पहचान करने के लिए काफी समय तक जीवित रहीं. इसलिए उन्हें एक उपनाम 'निर्भया' दिया गया.

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दस साल पहले निर्भया के साथ क्या हुआ?

16 दिसंबर 2012 को निर्भया अपने दोस्त के साथ सिनेमा हॉल से घर लौटने के लिए बस में सवार हुई. बस में पहले से कुछ लोग सवार थे. इन लोगों ने निर्भया के साथ बलात्कार किया और बहुत क्रूर तरीके से टॉर्चर भी किया. गैंगरेप और अमानवीय अत्याचार की शिकार इस महिला को बाद में इन लोगों ने सड़क पर फेंक दिया था. जिस दोस्त के साथ निर्भया बस में सवार हुई थी, उस दोस्त को इन आरोपियों ने पहले ही बस से उतार दिया था. इस जघन्य अपराध को झेलने के बाद निर्भया कुछ दिनों तक जीवित रहीं. उन्हें इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया जहां उन्होंने 13 दिन बाद दम तोड़ दिया. निर्भया की मां ने मीडिया को बयान दिया था और कहा था कि मरने से पहले निर्भया ने उनसे यानी अपनी मां से एक वादा लिया था कि वह उसका यह हाल करने वालों को न्याय के कठघरे में लाएगी और उनकी सजा सुनिश्चित करेगी.

16 साल की उम्र में हत्या का आरोप तो वयस्क के रूप में मुकदमा

अपराधियों का क्या हुआ?

निर्भया मामले ने भारत में विरोध और प्रदर्शनों का तूफान खड़ा कर दिया था. गैंगरेप और हत्या के इस मामले में 6 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था. उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए. एक आरोपी को नाबालिग होने के कारण कुछ देर हिरासत में रखने के बाद छोड़ दिया गया. एक अन्य आरोपी ने जेल में आत्महत्या कर ली, जबकि बाकी चार को मौत की सजा सुनाई गई. दिल्ली की तिहाड़ जेल में इन दोषियों को फांसी दे दी गई. निर्भया की मां आशा देवी ने उस वक्त कहा था, "आखिरकार मेरी बेटी को न्याय मिला."

आशा देवी ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, "जाहिर है कि घाव बहुत गहरे हैं और दर्द दूर नहीं होता है. ज्योति को 12 से 13 दिनों तक बहुत दर्द हुआ, लेकिन वो जिंदा थी. मेरी बेटी को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी."

आशा देवी कहती हैं, "एक इंसान किसी दूसरे इंसान के साथ ऐसा कैसे कर सकता है."

दस साल बाद भी महिलाएं डर का शिकार हैं

राजधानी दिल्ली में निर्भया के साथ जघन्य अपराध को एक दशक बीत चुका है, लेकिन दो करोड़ की आबादी वाले इस शहर में अभी भी कई महिलाएं रात में सफर करने से डरती हैं. निर्भया कांड के बाद से उनकी मां आशा देवी महिला सुरक्षा की प्रमुख प्रचारक बन गई हैं. यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार से बचे लोगों के परिवारों के साथ परामर्श, कानूनी लड़ाई में उनका समर्थन करना अब उनका यह काम है.

आशा देवी को अपनी बेटी के लिए संघर्ष, महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों के लिए उनके काम के लिए कई पुरस्कार मिले हैं.

उन्होंने कहा, "मेरी बेटी के दर्द ने मुझे यह लड़ाई लड़ने की ताकत दी." निर्भया मामले ने देश भर में विरोध प्रदर्शनों को भड़का दिया था जिसके बाद देश में बलात्कार के लिए सख्त दंड, ज्यादा से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे और स्ट्रीट लाइट लगाने और कुछ बसों पर सुरक्षा मार्शलों की तैनाती की गई.


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