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अमृतकाल में अमृतपाल!

आपको रोज़ एक नई कहानी मिलेगी। अमृतपाल कैसे भागा, किसने मदद की, आख़िरी बार कहां दिखा था, विदेशों के किन ठिकानों से पैसे कैसे आते थे

अमृतकाल में अमृतपाल!
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- पुष्परंजन

सिख फॉर जस्टिस का सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नून के सिर पर खालिस्तान पर मतसंग्रह कराने का जुनून सवार है। पन्नून ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, उत्तर अमेरिका, यूरोप, मलयेशिया, केन्या, फिलीपींस, सिंगापुर और मिडल इस्ट के देशों इस तरह के तथाकथित मतसंग्रह कराकर जो खेल करना चाहता है, उसे रोकने के वास्ते पीएम मोदी के पास क्या योजना है?

आपको रोज़ एक नई कहानी मिलेगी। अमृतपाल कैसे भागा, किसने मदद की, आख़िरी बार कहां दिखा था, विदेशों के किन ठिकानों से पैसे कैसे आते थे? कि़स्सागोई करने वाले बस इतना ध्यान रख रहे हैं कि सारा ठीकरा पंजाब सरकार पर फोड़ें, और केंद्र सरकार को आरोपों की आंच से बचाये रखे। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अक्टूबर 2021 में फैसला लिया था कि 15 किलोमीटर के बदले, पंजाब के 50 किलोमीटर रेडियस वाले सीमाई इलाकों की चौकसी बीएसएफ के अधीन होगी। यदि अमृतपाल पंजाब सीमा की 50 किलोमीटर परिधि को भी पार कर चुका था, तो जवाबदेही किसकी बनती है? 80 करोड़ रूपये अमृतपाल और उसके समर्थकों के पास ऑन लाइन ट्रांसफर हुए, ये तो ऑन द रिकार्ड है। हवाला से जाने कितने सौ करोड़ आये होंगे? सात वर्षों से ये सब पक रहा था, केंद्रीय एजेंसियां और उस महकमे के मंत्री की नींद तब खुली, जब उनके पाले हुए व्याघ्र ने पलटकर ललकारना आरंभ किया।

खालिस्तान का नासूर अब फैल चुका है। देश में कम, दुनिया के मुख्तलिफ हिस्सों में ज़्यादा। 1984 की ग़लतियों को सबसे पहले कांग्रेस ने भुगता, उसके हवाले से देश और समाज के अमन-चैन को समय-समय पर कुरेदा जाता रहा है। आज देश में जो बचे-खुचे सिख सुख-चैन से जैसे-तैसे आबोदाना-आशियाना बचाये हुए हैं, उन्हें सफाई देनी पड़ रही है कि वो खालिस्तान के खुरापातियों के साथ नहीं खड़े हैं। लेकिन जनरैल सिंह भिंडरावाला के गांव से लेकर पंजाब-हरियाणा के विभिन्न डेरों में विगत आठ-नौ वर्षों में क्या उन ग़लतियों की पुनरावृत्ति नहीं हो रही थी? क्या बताना पड़ेगा कि खालिस्तान के खुरापातियों को केंद्र से लेकर राज्य में राजनीति करने वाले किन लोगों से खाद-पानी मिलता रहा है?

अमृतपाल की मां बलविंदर कौर ने बयान दिया कि मेरा बेटा युवाओं को नशा मुक्त करके, उन्हें सिख धर्म में वापिस लाकर समुदाय के लिए काम कर रहा था। अमृतपाल के संरक्षक उसे 'मासूम' बता रहे हैं। मासूम है, या मक्कार इसे कौन तय करेगा? ऐसा नेक काम करने वाला इंसान देश के गृहमंत्री को जान से मारने की धमकी दे। थाने पर हमला करे, पुलिसकर्मियों को कूट डाले, हथियारों से हर समय घिरा रहे, यह बात गले नहीं उतरती।

26 जनवरी, 2021 को किसान आंदोलन के समय लाल कि़ला हिंसा मामले में दीप सिद्धू को लोग जान पाये थे। सत्ता प्रतिष्ठान ने किसान आंदोलन को कमज़ोर करने के वास्ते दीप सिद्धू का इस्तेमाल किया था, यह बात भी उन दिनों सामने आई थी। 'वारिस दे पंजाब' का नेता दीप सिद्धू 15 फरवरी 2022 को दिल्ली से सोनीपत के रास्ते एक रहस्यमय सड़क दुर्घटना में मारा जाता है। उन दिनों अमृतपाल दुबई में अपने किसी रिश्तेदार का ट्रांसपोर्ट बिजनेस देख रहा था। उसके फेसबुक अकाउंट से 'वारिस दे पंजाब' के कर्ताधर्ता जुड़े थे। दीप सिद्धू से उसकी अनबन भी हुई थी। मार्च 2022 में दावा किया गया कि अब से अमृतपाल 'वारिस दे पंजाब' का नया चीफ है। दीप सिद्धू की तथाकथित दुर्धटना के दस माह बाद, सितंबर 2022 में अमृतपाल दुबई से पंजाब लौटता है। परिस्थितियां बता रही हैं कि 'वारिस दे पंजाब' को बाकायदा हाईजैक किया गया था।

कालचक्र ने जिस अमृतपाल को हीरो बना दिया, दरअसल वह इस पूरे शतरंज का प्यादा भर है। इस प्यादे की वजह से इस समय ब्रिटेन से संबंध ख़राब होने की परिस्थितियां बन रही हैं। ब्रिटिश हाईकमीशन से बैरिकेड हटाकर वाहवाही तो बटोर ली, मगर यह भूल गये कि ब्रिटेन पाकिस्तान नहीं है, जिससे जैसे को तैसा वाला व्यवहार करें। ब्रिटेन जी-20 का प्रमुख देश है, और इस साल अध्यक्ष देश भारत शिखर बैठक करा रहा है। इस समय केवल ब्रिटेन खालिस्तान राजनीति का एपीसेंटर नहीं बना हुआ है, जी-20 के दो अन्य प्रमुख देशों कनाडा और अमेरिका में भी 'वारिस दे पंजाब' के समर्थन में विप्लवी भारतीय कूटनीतिक मिशन को घेर रहे हैं, वहां की सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं।

अमृतपाल के हवाले से हो रहे प्रदर्शनों का बुरा असर इंडियन डॉयसपोरा पर पड़ रहा है। 2021 में प्रवासी भारतीयों के बारे में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में जानकारी दी गई थी कि विदेश रहने वाले भारतीयों की संख्या 3 करोड़ 20 लाख है। साल दर साल प्रवासी भारतीयों की संख्या में दस लाख का इजाफा होता गया है। ये कहने को प्रवासी हैं, मगर इनमें खेमे बंटे हुए हैं। एक, भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान का समर्थक और दूसरा विरोधी। कुछ ऐसे भी हैं, जो इस खेमेबाजी से दूर अपने प्रोफेशन और परिवार से सरोकार रखते हैं। इंडियन डायसपोरा में यह खेमेबाजी मई 2014 के बाद से व्यापक रूप से दिखी है। जो लोग दुनियाभर में डायसपोरा को मॉनिटर करते हैं, उन्हें भी इस नये ट्रेंड पर हैरानी है। ऐसे हालात से खालिस्तान के नाम पर खेल करने वालों को फायदा हो रहा है, जिसमें कुछ शासन प्रमुख शामिल हैं।

ऑस्ट्रेलिया में कुल आबादी के 0. 8 फीसदी सिख हैं, लगभग दो लाख 25 हज़ार। उनमें से काफी सारे लोगों ने अमृतपाल को आज की तारीख़ में हीरो मान लिया है, और उसके समर्थन में प्रदर्शन कर रहे हैं। फरवरी 2022 में ऑस्ट्रेलिया के क्रेगीबर्न में श्रीगुरू सिंह सभा, मेलबॉर्न का मिरीपीरी गुरूद्वारा, तारनेट और प्लंप्टन के गुरूद्वारे खालिस्तान आंदोलन की रणनीति तय कर रहे थे। कनाडा में भारतीय प्रवासियों के बीच सिखों की संख्या 34 फीसदी है, और हिंदू 27 प्रतिशत हैं। इसी हवाले से प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने तंज करते हुए कहा था, 'हमारे कैबिनेट में जितने सिख हैं, मोदी मंत्रिमंडल में भी नहीं होंगे।' जस्टिन ट्रूडो सिख मिलिटेंसी को माचिस मारने में सबसे आगे रहे हैं। मगर, इसका साइड इफेक्ट यह हुआ कि कनाडा में सिख बनाम हिंदू की राजनीति आरंभ हुई। यह ठीक है कि इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी ने उठाया, मगर बाकी भारतवंशियों की आवाज नक्कारखाने में तूती बनकर रह गई।

संघ के लोग मानते हैं कि यूके से उत्तर अमेरिका तक उसके चालीस लाख समर्थक एक बड़ी ताकत हैं। भारत में सोशल मीडिया 2014 के बाद जाग्रत हुई है, उससे डेढ़ दशक पहले यूके से उत्तर अमेरिका तक हिंदू चेतना इंटरनेट के जरिये सुलगाई जा चुकी थी। मोदी के लिए इंवेंट के काम यही लोग आते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज की तारीख में ग्लोबल है। 'हिंदू स्वयंसेवक संघ' (एचएसएस) नाम से 39 देशों में उसकी जड़ें फैली हुई हैं। 2015 की बात है, न्यूयार्क के कोर्ट में हिंदू स्वयंसेवक संघ को आतंकी संगठन घोषित करने का एक मुकदमा 'सिख फॉर जस्टिस' नामक संगठन ने दायर कर रखा था।

सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) का सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नून के सिर पर खालिस्तान पर मतसंग्रह कराने का जुनून सवार है। इस वास्ते उसे पाकिस्तान और आज़ाद कश्मीर लॉबी का पूरा समर्थन है। 31 दिसंबर, 2021 को ब्रिटेन के लीड्स और ल्यूटन में हुए मतसंग्रह में 20 हज़ार वोट डले थे। एसएफजे ने 31 अक्टूबर, 2022 को लंदन में भी मतसंग्रह कराये थे। ब्रिटेन में खालिस्तान पर वह आठवें दौर का मतसंग्रह था। सिख फॉर जस्टिस का सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नून ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, उत्तर अमेरिका, यूरोप, मलयेशिया, केन्या, फिलीपींस, सिंगापुर और मिडल इस्ट कि देशों इस तरह के तथाकथित मतसंग्रह कराकर जो खेल करना चाहता है, उसे रोकने के वास्ते पीएम मोदी के पास क्या योजना है? 2019 में सिख फॉर जस्टिस को भारत सरकार ने प्रतिबंधित किया था। कायदे से गुरपतवंत सिंह पन्नून को अंतरराष्ट्रीय अतिवादी घोषित करना चाहिए था।

कनाडा की कुल आबादी का डेढ़ प्रतिशत सिख हैं। वहां सरकार उनकी न सुने, ऐसा संभव नहीं। भारत में सिखों की संख्या 1.7 प्रतिशत है। मानकर चलिये कि कुछ वर्षों में कनाडा में प्रवास करने वाले सिख भारत जितने हो जाएंगे। गुरपतवंत सिंह पन्नून ने 18 सितंबर, 2022 को कनाडा के ब्रैम्टन में खालिस्तान पर रेफ रंडम का आयोजन कराया। जिन एक लाख सिखों ने ब्रैम्टन के गोर मेडो कम्युनिटी सेंटर पर आयोजित मतसंग्रह में हिस्सा लिया, उनमें पाकिस्तान वाले कितने हैं, यह भी खोज का विषय है। खालिस्तान के वास्ते तथाकथित मतसंग्रह में एक चौथाई से भी कम सिखों ने हिस्सा लिया। चार लाख प्रवासी सिखों ने इस कार्यक्रम से दूरी बनाकर रखी थी।

ब्रैम्टन को 'मिनी खालिस्तान' कहा जाता है। टोरंटो से ब्रैम्टन की दूरी 44 किलोमीटर की है। लगभग आधे घंटे का सफ ़र। मेरी पत्रकार मित्र वी. राधिका टोरंटो में ही सेटल्ड हैं। एक दिन सुझाया कि कनाडा में सिख प्रवासियों को समझना है, तो आधे दिन के वास्ते ब्रैम्टन चले जाओ। यह 2004 की बात है। ब्रैम्टन सिख अलगाववादी राजनीति का अधिकेद्र देखते-देखते नहीं बना। खालिस्तान की आवाज को बुलंद कराने में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का पूरा समर्थन है। जस्टिन ट्रूडो ने बाकायदा बयान दिया कि खालिस्तान के वास्ते मतसंग्रह जबतक शांतिपूर्ण है, हम उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं सकते। यह कनाडा के क़ानून द्वारा प्रदत अधिकार है कि किसी विषय पर आप मत संग्रह करा सकते हैं।

जस्टिन ट्रूडो अपने कुतर्क में खु़द फंस जाएंगे। ओंटारियो गुरूद्वारा कमेटी बाकायदा आदेश जारी करती है कि हमारे धर्मस्थलों, ख़ुसूसन ब्रैम्टन के गुरूद्वारों में भारत सरकार का कोई अधिकारी प्रवेश नहीं करेगा। मगर, वेंकुवर के श्री दशमेश दरबार और सर्रे के गुरूनानक सिख गुरूद्वारे में पाकिस्तानी वाणिज्य दूत जंबाज़ ख़ान का ग्रैंड वेल्कम किया जाता है। अब कोई जस्टिन ट्रूडो से पूछे कि कनाडा की धरती पर मनचाहा धर्मादेश कैसे लागू हो सकता है? जस्टिन ट्रूडो जी-20 की बैठक में यदि भारत आते हैं, और कोई ऐसा-वैसा बयान खालिस्तान पर देते हैं, उसका ख़तरा बना रहेगा। लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग के बाहर सिख चरमपंथियों द्वारा प्रदर्शन, नारेबाज़ी और तोड़फोड़ पहली बार नहीं हुई है। केवल 2023 में खालिस्तानियों द्वारा इस तरह छठी वारदात थी।
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