तिरंगा फिहराने के लिए लाल किले को ही क्यों चुना गया?

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और इसी दिन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा फहराया.. और तब से ही लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराने की ये परंपरा जारी है... लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश की आजादी के दिन तिरंगा फहराने के लिए लाल किला ही क्यों चुना गया?;

Update: 2020-08-15 15:17 GMT

दिल्ली का लाल किला भारत में एक ऐतिहासिक धरोहर है. स्वतंत्रता दिवस पर हर साल देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर तिरंगा फहराकर देश को संबोधित करते हैं. आजादी के बाद से ही यह सिलसिला जारी है. तिरंगा और लाल किले की प्राचीर से इस दिन का खासा जुड़़ाव है. इस किले की सिर्फ प्राचीर ही खास नहीं है, बल्कि ये किला आज भी दुनियाभर में भारत की अमूल्य सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है. और लाल किले का इतिहास ही इस बात की वजह है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजादी मिलने के बाद इस स्थान को तिरंगा फहराने के लिए चुना.

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लाल किले में तिरंगा फहराने का इतिहास
आज के दिन प्रधानमंत्री के लाल किले पर तिरंगा फहराने को लेकर कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है. और ना ही संविधान में इसका कोई उल्लेख है. लाल किले से प्रधानमंत्री के तिरंगा फहराने के पीछे कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. यह बस एक परंपरा है, जो आजाद हिंदुस्तान की पहचान बन चुकी है. कहा जाता है कि जब भारत को आजादी मिली तो उसके बाद किसी ऐतिहासिक इमारत को जश्न मनाने और ध्वजारोहण के लिए चुना जाना था. पहले रायसीना हिल्स को इसके लिए चुना गया था, लेकिन उस दौरान वहां पर लॉर्ड माउंटबेटन रह रहे थे, ऐसे में उस इमारत पर तिरंगा फहराना सही नहीं माना गया. इसके बाद दूसरे महत्वपूर्ण स्थान की खोज शुरू हुई. जो लाल किले पर जाकर समाप्त हुई. और आजादी के बाद पहली बार जवाहरलाल नेहरू ने यही पर ध्वजारोहण किया.

लाल किले का इतिहास
लाल किले का निर्माण साल 1638 में शुरू हुआ था और यह करीब 10 साल में बनकर तैयार हुआ था. इसके बाद मुगलों ने करीब 200 सालों तक लाल किले से सत्ता का संचालन किया.  इस दौरान जब भी मुगलिया सल्तनत को उखाड़ने की कोशिश हुई तब दिल्ली का ये लाल किला ही केंद्र में रहा. हालांकि, अंग्रेजों के आने के बाद मुगलिया सल्तनत जरूर कमजोर हो गई. लेकिन लाल किले का रुतबा वैसा ही बना रहा.  1857 में हुए आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र भी लाल किला ही रहा. इतना ही नहीं, आजादी से कुछ सालों पहले सुभाष चंद्र बोस ने दिल्ली चलो का जो नारा दिया था, उसका मतलब लाल किले पर आकर अपनी ताकत दिखाना ही था.

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