उप्र सरकार को वन भूमि पर 26 साल तक चुप्पी साधने के लिए फटकारा

सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने जुलाई 1994 के आदेश का उल्लंघन कर वनभूमि पर निजी दावों की इजाजत देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की;

Update: 2019-09-19 19:58 GMT

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने जुलाई 1994 के आदेश का उल्लंघन कर वनभूमि पर निजी दावों की इजाजत देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की है।

अदालत ने यह बयान उत्तर प्रदेश सरकार की उस याचिका पर दिया है जिसमें सरकार ने 1994 के बाद वन निपटान अधिकारियों की ओर से जारी सभी आदेशों को खारिज करने के लिए एक व्यापक आदेश देने की मांग की है, जिसके तहत रेणुकूट-मिर्जापुर आरक्षित वन क्षेत्र में उद्योगों को संचालन की इजाजत दी गई थी ।

सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 1994 में अपने आदेश में कहा था कि कोई भी व्यक्ति या उद्योग आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण नहीं कर सकता।

उत्तर प्रदेश सरकार ने शीर्ष अदालत से बताया कि 1000 से ज्यादा व्यक्तियों और उद्योगों ने आरक्षित वन भूमि पर दावा किया है।

राज्य सरकार की आलोचना करते हुए अदालत ने बताया, "आप सोते रहिए। राज्य बीते 26 वर्षो से सो रहा है और अब आप हमसे सबको हटाने के लिए एकपक्षीय (एक्स-पार्टे) आदेश पारित करवाना चाहते हैं।"

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि इसके 'गंभीर दुष्परिणाम' होंगे और कहा कि वह आवंटियों के पक्ष को भी सुनना चाहती है।

अदालत ने राज्य सरकार की अपने अधिकारियों पर अनुशासनात्मक नियंत्रण नहीं रख पाने पर खिंचाई की। अदालत ने सरकार को पता लगाने के लिए कहा कि क्या वन निपटान अधिकारी अभी भी आदेश पारित कर रहे हैं और वनभूमि पर दावे की इजाजत दे रहे हैं।

अदालत ने सरकार से उन सभी उद्योगों और इकाईयों की एक सूची देने को कहा जिन्हें वन क्षेत्रों में अवैध रूप से भूमि मुहैया कराई गई है।

राज्य सरकार ने वन निपटान अधिकारियों और अतिरिक्त जिला न्यायाधिशों द्वारा 18 जुलाई 1994 के बाद पारित इस तरह के आदेशों को अमान्य घोषित करने की मांग की।

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