जौनपुर में कजगांव का ऐतिहासिक कजली मेला मनाया गया

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में स्थित कजगांव और राजेपुर के कजरी का ऐतिहासिक मेला सोमवार को हर्षोल्लास से मनाया गया;

Update: 2019-08-20 12:53 GMT

जौनपुर । उत्तर प्रदेश के जौनपुर में स्थित कजगांव और राजेपुर के कजरी का ऐतिहासिक मेला सोमवार को हर्षोल्लास से मनाया गया।

पश्चिमी संस्कृति के बढ़ते वर्चस्व के कारण जहां अनेक भारतीय लोक परम्परायें विलुप्तता के कगार पर है। उन्हीं लोक परम्पराओं में एक नाम है कजली जो विलुप्तता के कगार पर है। स्थानिय क्षेत्र के कजगांव और राजेपुर के कजरी का ऐतिहासिक मेला पिछले कई दशकों से भारतीय लोक गीत की पहचान बनाये हुए है। यह मेला प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी सोमवार को 101 वर्ष पूरा कर हर्षोल्लास के साथ मनाया गया । यह मेंला 1918 में शुुुरु हुुुआ था ।

कजली के इस ऐतिहासिक मेले में कहीं भी कजली का मुकाबला या कजली गायकों का जमघट दिखाई नही देता है। यह मेला कजली के नाम से विख्यात है। मेला अश्लीलता में शालीनता का भाव लिये शुरू और समाप्त होता है। इसमें जीजा, साला, साली, दुल्हन, दुल्हा जैसे रिश्ते को गाली- गलौज और अश्लील हरकतों से विदाई करने की बात कही जाती है। 

मेले में आश्चर्य तो तब होता है जब दोनों पड़ोसी गांव राजेपुर के एतिहासिक पोखरे के दो छोर पर हाथी, ऊंट, घोड़ा, गदहा पर सवार बैंण्डबाजे और आतिशबाजी के साथ अपने ही गांव,घर की महिलाओं के समक्ष अश्लील गालियां व अश्लील हाव भाव का  प्रदर्शन करते है ।

कजगांव निवासी हृदयनरायन गौड़ और राजेपुर निवासी आनन्द कुमार गुप्ता का कहना है कि इस मेले में अश्लीलता का समावेश होता है । कजगांव व राजेपुर गांव का प्रेम सौहार्द आपसी भाईचारा का गहरा संबंध है। मेले में सिर्फ प्यार और मुहब्बत का पैगाम का दर्शन मिलता है। दोनों गांव के लोग अश्लील शब्दों में अश्लील हरकतों की बौछार के बावजूद आपस में प्रेम और भाईचारा का पैगाम देते हैं। यहां के लोग समाज को इस परम्परागत कजरी के माध्यम से यह संदेश देते हैं ।

इस मेले के बारे में बुजुर्गों का मानना है कि राजेपुर के ऐतिहासिक पोखरे में कजगांव की कुछ बालिकायें जरई धोने गई थी उसी समय राजेपुर गांव की कुछ बालिकायें वहां पहूचती है और दोनों पक्षों में कजरी लोकगीत का दंगल शुरू हो गया जो दिन और रात तक चलता रहा। इससे प्रसन्न होकर जद्दू साव ने 1918 में कजगांव की बालिकाओं का आदर सम्मान करते हुए वस्त्राभूषण से सुसज्जित कर उनकी विदाई की। तभी से इस मेले का शुभारम्भ हुआ है जो आज भी जारी है। दोनों गांव के दुल्हे एक दुसरे गांव के बारातियों से दुल्हन की मांग करते हुए इस वर्ष भी कुंवारें ही लौट गए ।

Full View

Tags:    

Similar News