सुप्रीम कोर्ट ने किया भूमि अधिग्रहण रद्द, वेदांता और ओडिशा सरकार को फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा सरकार द्वारा वेदांता के लिए 6,000 एकड़ भूमि के अधिग्रहण को रद्द कर दिया है. अदालत ने अधिग्रहण के लिए कंपनी को दुर्भावनापूर्ण इरादों और सरकार को पक्षपात का दोषी ठहराया है.;

Update: 2023-04-15 05:04 GMT

कथित भूमि ओडिशा सरकार ने वेदांता के लिए 2007 में अधिग्रहित की थी. ओडिशा हाई कोर्ट ने इस अधिग्रहण को 2010 में ही रद्द कर दिया था लेकिन उद्योगपति अनिल अग्रवाल की कंपनी वेदांता ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है और वेदांता के अनिल अग्रवाल फाउंडेशन और ओडिशा सरकार दोनों को फटकार लगाई है.

क्या था मामला

अदालत ने जमीन को उसके असली मालिकों को वापस देने का आदेश भी दिया है, साथ ही फाउंडेशन पर पांच लाख रुपयों का जुर्माना भी लगाया है. जमीन करीब 6,000 किसानों की थी जिनके परिवार के सदस्यों को मिला कर अधिग्रहण से प्रभावित लोगों की संख्या 30,000 के आस पास है.

2006 में वेदांता ने ओडिशा सरकार से कहा था कि कंपनी राज्य में एक विश्वविद्यालय बनाना चाह रही है जिसके लिए उससे 15,000 एकड़ जमीन की जरूरत है. यह जमीन पुरी जिले में बालूखंड वन्यजीव अभयारण्य के पास स्थित थी.

राज्य सरकार की सलाह पर फाउंडेशन को निजी कंपनी से सार्वजनिक कंपनी बनाया गया, उसके बाद शिक्षण संस्थान बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण के योग्य बताया गया और फिर सरकार ने भूमि अधिग्रहित कर ली.

इसके बाद इस अधिग्रहण को चुनौती देते हुए जमीन के मूल मालिकों ने हाई कोर्ट में दो याचिकाएं दायर कीं. सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने पाया कि अधिग्रहण की प्रक्रिया में भूमि अधिग्रहण कानून के कई प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है, राज्य सरकार के साथ धोखाधड़ी हुई है और पूरी प्रक्रिया ही विकृत है.

वेदांता और सरकार को फटकार

हाई कोर्ट ने इस जमीन और इसके अलावा अतिरिक्त सरकारी जमीन के अधिग्रहण को रद्द करने का आदेश दिया था. इसी आदेश को फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. फाउंडेशन की अपील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया.

साथ ही फाउंडेशन को जुर्माने के रूप में अदालत के पास पांच लाख रुपए जमा करवाने का आदेश भी दिया, जो ओडिशा स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को दे दिए जाएंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि जिस जमीन से दो नदियां हो कर गुजरती हैं, जिसके सिर्फ सड़क पार करने के बाद एक वन्य जीव अभयारण्य स्थित है, ऐसी जमीन एक फ्रॉड प्रक्रिया के तहत निजी उद्देश्य के लिए दिलवाने में सरकार ने "दिमाग नहीं लगाया."

अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में सरकार को निजी जमीन - वो भी कृषि जमीन - का अधिग्रहण करना था, ऐसे में कानून के तहत सरकार को यह पता करने की कोशिश करनी चाहिए थी कि इस जमीन को खरीदने में और किसी की भी रुचि है या नहीं. सिर्फ एक कंपनी के लिए सरकार ने प्रक्रिया का उल्लंघन किया और कंपनी को कई तरह के अनुचित लाभ पहुंचाए.

इनमें दाखिले, फीस, पाठ्यक्रम और स्टाफ की नियुक्ति में पूरी स्वायत्तता, राज्य सरकार के आरक्षण संबंधी कानूनों से पूरी छूट, नियामकों से अप्रूवल लेने में पूरी मदद, राजधानी से प्रस्तावित विश्वविद्यालय तक चौड़ी सड़क बनाने का वादा, लगभग सभी तरह के करों से छूट आदि शामिल है.

इन सब तथ्यों के आधार पर अदालत ने राज्य सरकार को फाउंडेशन के प्रति पक्षपात का दोषी ठहराया. वेदांता इससे पहले भी भूमि अधिग्रहण को लेकर कई विवादों में फंस चुकी है.

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