कार्ल मार्क्स की 200वीं जयंती पर विशेष: विचार जिसने दुनिया में लाई क्रान्ति
जब हम विश्व इतिहास के पन्नों में किसी ऐसे दार्शनिक-चिंतक की तलाश करेंगे, जिनके विचारों ने दुनिया पर सबसे ज्यादा प्रभाव डाला तो उनमें कार्ल मार्क्स का नाम सबसे पहले आएगा;
नई दिल्ली। जब हम विश्व इतिहास के पन्नों में किसी ऐसे दार्शनिक-चिंतक की तलाश करेंगे, जिनके विचारों ने दुनिया पर सबसे ज्यादा प्रभैाव डाला तो उनमें कार्ल मार्क्स का नाम सबसे पहले आएगा। विश्व इतिहास की सम्पूर्ण धारणा में ही वह क्रांति है, जो मानव समाज ने समय-समय पर सम्पन्न की- इस विचारधारा को फैला कर पूंजीवादी तंत्र के शोषण की तस्वीरों को सामने रखने वाले शख्स थे 200 साल पहले जर्मनी के ट्रियर शहर में जन्मे कार्ल मार्क्स।
कार्ल हेनरिख मार्क्स एक ऐसा नाम जिसने उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप में ज़िंदगी गुज़ारी। वह दौर औद्योगिक क्रांति का था, जिसमें सामंतवाद की जड़ें कमजोर हो रही थीं और सत्ता पूंजीवाद के हाथों में जा रही थी। इसी के साथ-साथ उपनिवेशवाद सारी दुनिया में अपनी पकड़ बना रहा था। अपने से कमजोर को दबाकर सत्ता हथियाने का लक्ष्य ही एसे पूंजीवाद को जन्म देता है जिसकी जड़ें कमजोर के शोषण से बनी हैं।
पूंजीवाद के इस दौर में मार्क्स ने सिद्ध कर दिया है कि अब तक का सारा इतिहास वर्ग-संघर्षों का इतिहास है। मार्क्स ने यह कहा कि मनुष्यों को सबसे पहले खाना-पीना, ओढ़ना, पहनना और सिर के ऊपर साया चाहिए, इसलिए पहले उन्हें लाजमी तौर पर काम करना होता है, जिसके बाद ही वे प्रभुत्व के लिए एक-दूसरे से झगड़ सकते हैं, और राजनीति, धर्म, दर्शन आदि को अपना समय दे सकते हैं। इससे पता लगा कि पहले के सम्पूर्ण इतिहास की गति वर्ग-विरोधों और वर्ग-संघर्षों के बीच में रही है।
दो सौ साल पहले की दुनिया और आज की दुनिया में काफी समानता है। यह समानता ही वह कारण है कि मार्क्स आज भी एक चिंतक, अर्थशास्त्री और क्रांतिकारी के रूप में प्रासंगिक बने हुए हैं। जर्मन के इस दार्शनिक ने कभी भारत की सरज़मी पर पैर तो नही रखा लेकिन भारत का इतिहास मार्क्स के विचारधाराओं से अछूता नही रहा। भारत जैसे देशों में जहां अभी भी गरीबी, अशिक्षा और वर्गों एवं जातियों के बीच सामाजिक-आर्थिक विषमता बनी हुई है और राष्ट्र की पूंजी एवं संसाधनों पर मुट्ठी भर लोगों का स्वामित्व घटने के बजाय बढ़ता जा रहा है, वहां मार्क्स की प्रासंगिकता भी बढ़ी है।
मार्क्स का लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की प्रक्रिया के वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं को बदलने का था। भारत में साम्प्रदायिक टकराव की स्थितियां लगातार पहले से अधिक गंभीर होती जा रही हैं और इस समय पर मार्क्स की विचारधारा से इसका हल ढू़ढने का भी भरपूर प्रयास किया जा रहा है। यहां की कम्युनिस्ट पार्टियों का भी लक्ष्य अधिसंख्यक देशवासियों को समतामूलक समाजव्यवस्था और अर्थतंत्र उपलब्ध कराना है। इसलिए आज भी उन चन्द लोगों के हाथों से सत्ता और पूंजी की तानाशाही को छिनकर श्रम करने वालों के हाथो में सौंपने का मार्क्सवादी लक्ष्य आज भी वैध है। पिछली दो शताब्दियों में भारत ने उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष करके राजनीतिक आजादी हासिल की यह कार्ल मार्क्स के विचारों का प्रभाव ही है।
मार्क्स ने गरीबी,शिक्षा और शोषण जैसे मुद्दों को उठाया और साम्यवादी विचारधारा को जन्म दिया। जिसको प्रभाव न सिर्फ भारत में हैं अपितु चीन में भई इसका सफल प्रभाव देखा जा सकता है। इस साम्यवादी विचारधारा को अपनाकर लेनिन जैसे विचारकों ने रुस में क्रान्ति के बीज बोए।