रविशंकर ने चिदम्बरम द्वारा मोदी को लिखे पत्र पर किया सवाल

केन्द्रीय विधि मंत्री ने रोहिंग्या लोगों के बारे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चिदम्बरम द्वारा प्रधानमंत्री को पत्र लिखने पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को कैसे भूल सकते हैं;

Update: 2017-10-13 21:30 GMT

नयी दिल्ली। केन्द्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रोहिंग्या लोगों के बारे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखने पर आश्चर्य जताते हुए आज कहा कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को कैसे भूल सकते हैं।

श्री प्रसाद ने यहां संवाददाताओं से कहा कि श्री चिदम्बरम राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को कैसे भूल सकते हैं जबकि 26 नवम्बर 2008 की घटना के बाद श्री शिवराज पाटिल के स्थान पर वह गृहमंत्री बनाये गये थे। उन्होंने कहा कि यह एक बहुत बड़ा सवाल है।

श्री प्रसाद उस पत्र को लेकर पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे, जिसमें श्री चिदम्बरदम तथा उनकी ही पार्टी के एक अन्य नेता शशि थरूर ने प्रधानमंत्री से रोहिंग्या लोगों के मुद्दे पर सरकार के रुख पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। इन नेताओं ने पत्र में कहा है,“ इक्कीसवीं शताब्दी के एक महत्वाकांक्षी वैश्विक नेता के रूप में भारत एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय संकट बन चुकी रोहिंग्या लोगों की समस्या के प्रति संकीर्ण रुख नहीं अपना सकता है। हमारे कार्य हमारी आकांक्षाओं के साथ जुड़े होने चाहिए। मजबूत अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व की अनुपस्थिति में भारत के पास अवसर है कि वह एक साहसिक और नया रवैया अपनाये और नये तरह के नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त करे।”

इस पत्र पर पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव जी के पिल्लै, वकील प्रशांत भूषण, राष्ट्रवादी कांग्रस पार्टी के नेता डी पी त्रिपाठी, वकील कामिनी जायसवाल और मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर के भी हस्ताक्षर हैं। श्री प्रसाद ने पत्र पर श्री थरूर के हस्ताक्षर के संबंध में कहा कि वह अक्सर ‘ बड़े बोल’ बोलते हैं लेकिन श्री चिदम्बरम जैसे व्यक्ति को इसमें अपना नाम देने की क्या जरूरत थी। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय में कहा था कि रोहिंग्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं और सरकार उन्हें देश में रुकने की इजाजत नहीं दे सकती।

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा गया है कि म्यांमार के रखीन क्षेत्र में सुरक्षाकर्मियों के हमलों को रोकने ,कानून के शासन का सम्मान करने तथा म्यांमार वापस लौटने के इच्छुक रोहिंग्या लोगों की सुरक्षित और निर्विघ्न वापसी के लिए भारत सरकार को म्यांमार सरकार पर दबाव डालने के वास्ते कूटनीति का इस्तेमाल करना चाहिए।

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