राजनीतिक दलों के लिए नोटा बड़ी चुनौती
यह सोचना बिल्कुल गलत है कि ग्रामीण एवं आदिवासी इलाकों में लोग गलती से ईवीएम में नोटा बटन दबा रहे है;
रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में पिछले रिकार्ड़ो को देखते हुए राजनीतिक दलों के लिए नोटा (इनमें से कोई नही) को मिलने वाले मत बड़ी चुनौती बन गए है। इससे उनकी चुनावी संभावनाओं पर सीधा असर पड़ रहा है।
छत्तीसगढ़ संभवतः इकलौता राज्य है जहां पिछले तीन चुनावों से सत्तारूढ़ दल एवं मुख्य विपक्षी दल के बीच का दो प्रतिशत के आसपास रहा है। राज्य में 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में दोनों दलों के बीच मतों का अन्तर आधा प्रतिशत के लगभग ही रह गया था।
वहीं नोटा के साथ तीन प्रतिशत से अधिक मतदाता गए थे। साफ है कि अगर यह मत दोनो मुख्य दलों के प्रत्याशियों को मिलते तो चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते थे।
राज्य की 90 सीटों में से 34 सीटो पर पिछले चुनाव में नोटा तीसरे स्थान पर तथा 33 सीटो पर चौथे नम्बर पर था। इनमें से 17 सीटो पर नोटा को पांच हजार से अधिक मत हासिल हुए थे।
नौ सीटो पर हार जीत का अन्तर नोटा से मिले मतों से काफी कम था।राज्य में चार लाख से अधिक मत नोटा को मिले थे जोकि कुल पड़े मतो का तीन प्रतिशत से अधिक था।
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध के अनुसार नोटा को ज्यादा समर्थन ग्रामीण एवं आदिवासी इलाकों में मतदाताओं की बढ़ती राजनीतिक समझ एवं जागरूकता का परिणाम है। इससे यह भी साफ है कि अब पार्टी गौण हो रही है और प्रत्याशी अहम हो रहे है।
राजनीतिक दलों को मतदाता एक तरह से योग्य एवं सही प्रत्याशी उतारने के लिए आगाह कर रहे है। जिसे उन्हे आज नही कल समझना ही होगा।